करूँ क्या संवाद दिन से
बहुत से दिन बीते सखी रीते
नयापन न मिला दिन में
तब बाँझ हुईं आस मन में
न घट भरा न सुरा ने तृप्त किया
किस शुभ दिन के मोह में रहें जीते
आह ! मेरी दग्ध हुई चेतना
कौन से सावन से कहो बुझे
मिलन हो जिस पल प्रियतम से
उसी दिन की हो गणना जीवन में
जर्जर काया सुलग सुलग
करे निहोरा अब रिमझिम से
बेमौसम बरसे जब बदरा
रोम रोम की मिटे तब तृष्णा
हरियल हो जाए आस की कोख
करूँ तब सखी संवाद मैं दिन से
करूँ क्या संवाद दिन से
बहुत से दिन बीते सखी रीते
©वन्दना गुप्ता vandana gupta
1 टिप्पणी:
बहुत खूब
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