न रास्ता था न मंज़िल
न साथी न साहिल
और
एक दिन दृश्य बदल गया
कछुआ अपने खोल में सिमट गया
शब्द हिचकियाँ लेकर रोते रहे
अब बेमानी था सब
खोखली थीं वहां भावनाएं, संवेदनाएं
एक शून्य आवृत्त हो कर रहा था नर्तन
ये था ज़िन्दगी का क्रूरतम अट्टहास
1 टिप्पणी:
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