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मंगलवार, 19 मार्च 2013

मैं बालिग हूँ …………किसलिये ?

कभी कभी कुछ बातें समझ से परे होती हैं या कहो उन्हें समझ से परे बना दिया जाता है क्योंकि बनाने वालों को ही उसका सही औचित्य समझ नहीं आता फिर चाहे समाज की जिजीविषा का प्रश्न ही क्यों न हो , उसके सम्मान का प्रश्न ही क्यों न हो और इसी सन्दर्भ में हमारे देश के कर्णधार न जाने क्यों सोच और समझ को ताक  पर रखकर किसी भी मुद्दे को अलग ही नज़रिए से देखने पर तुले रहते हैं और उसी सन्दर्भ में सेक्स की उम्र को घटाने और बढ़ने पर बवाल मचा  रखा है जबकि होना तो ये चाहिए कि  कोई बालिग किस उम्र में होता है . दूसरी बात यदि बालिग होने की उम्र १ ६ करो तो भी खतरा है क्योंकि स्त्री शरीर इजाज़त ही नहीं देता  यौन सम्बन्ध स्थापित करने की यदि चिकित्सीय दृष्टि से देखा जाये तो फिर कैसे बालिग होने या यौन सम्बन्ध स्थापित करने की उम्र १ ६ की जाए और यदि कर भी दी जाए तो इससे क्या समाज में गलत सन्देश नहीं जाएगा कि १ ६ की उम्र हो गयी अब हमें छूट है हम जो चाहे कर सकते हैं फिर इसके लिए चाहे हम मानसिक रूप से परिपक्व हों या नहीं , शारीरिक रूप से सक्षम हों या नहीं, या ज़िन्दगी की जिम्मेदारियां उठाने के लिए भी सक्षम हैं या नहीं क्योंकि यदि यौन समबन्ध स्थापित करने की इजाज़त दे दी जाएगी तो विवाह भी फिर जल्दी होने लगेंगे कुछ लोग तो इसका फायदा जरूर उठाने लगेगे जो किसी भी दृष्टि से सही नहीं है  ............बाल विवाह की रोकथाम क्यों की गयी कभी सोचा है ? यही कारण  था छोटी उम्र में विवाह होना और शारीरिक रूप से सक्षम न होने पर भी मातृत्व के बोझ को झेलना तो क्या अब भी यही नहीं होगा ? १ ६ की उम्र तक स्त्री शरीर इस योग्य होता ही नहीं कि वो ये सब झेल सके और हमारे यहाँ तो उसे खुलेआम सेक्स की इजाज़त दी जा रही है कानून बनाकर क्या इससे समाज में स्वस्थ सन्देश जायेगा ? क्या नौजवान पीढ़ी इसका सही अर्थ समझ पायेगी कि किस सन्दर्भ में और कैसे इसका उपयोग करना चाहिए ?ये तो यूँ होगा कि आप समाज में सेक्स को खुलापन देने की इजाज़त दे रहे हैं मगर ये नही समझ रहे हैं कि इसका असर क्या होगा? बस कानून बना दो उसके परिणाम और दुष्परिणाम मत देखो . कभी १ ६ को सही कहते हैं कभी १ ८ को मगर चिकित्सक से नहीं पूछते कि क्या सही है और क्या गलत ? 

होना तो ये चाहिए की सिर्फ बालिग होने की उम्र का ही पैमाना तय किया जाये और सेक्स की इजाज़त यदि देनी भी है तो उसकी तय सीमा बढाई जानी चाहिए . बालिग होने के अर्थ को ज्यादा स्पष्ट किया जाना चाहिए . बालिग होने के अर्थ को सेक्स से न जोड़ा जाये बल्कि देश और समाज को देखने और समझने के नज़रिए से जोड़ा जाये , अपने निर्णय लेने की क्षमता से जोड़ा जाये न कि यौन सम्बन्ध स्थापित करने से तब जाकर एक नया दृष्टिकोण स्थापित होगा और सोच में कुछ परिवर्तन संभव होगा . नहीं तो इस तरह उम्र को घटाते  रहो और सेक्स की इजाज़त देते रहो तो क्या फर्क रह जायेगा पहले की आदिम सोच और आज में या कहो बाल विवाह जैसी कुरीति को दूसरे  नज़रिए से देखने में ? 

ये एक वृहद् विषय है जिस पर हर पहलू से ध्यान देना जरूरी है न कि आनन् फानन कानून बनाकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली जाए और अपनी पीठ थपथपा ली जाए कि हमने बहुत बड़ा काम कर दिया . क़ानून ऐसा हो जिसका डर  हो , जिसकी महत्ता को हर कोई समझे और सहर्ष स्वीकारे .

क्या सेक्स सम्बन्ध स्थापित करना ही बालिगता को प्रमाणित करता है ? अब जरूरत है इन दोनों बातों को अलग - अलग देखने की एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिये गर ऐसा नहीं हुआ तो ये तो बलात्कारियों को एक लाइसेंस तो देगा ही साथ ही ना जाने कितने छुपे वेशधारियों को स्त्री शोषण का अधिकार दे देगा कि 16 या 18 की उम्र थी बालिग थी तो सहमति से सेक्स किया और एक बार फिर मानवता शर्मसार होती दिखेगी .

मैं बालिग हूँ …………किसलिये ? यौन सम्बन्ध स्थापित करने के लिये या निर्णय लेने के लिये ………प्रश्न आज के सन्दर्भ में ये विचारणीय है ।

मैं बालिग हूँ यानि निर्णय लेने में सक्षम हूँ अपनी ज़िन्दगी को सही दिशा देने के , वोट देने का सही अर्थ समझने के और अपने कर्तव्यों का सही निर्वाह करने के मगर यौन सम्बन्ध स्थापित करने और उसे ज़िन्दगी भर निभाने के लिये अभी मुझे और परिपक्व होना है और अपने को इस लायक बनाना है ताकि जीवन सही ढंग से गुजार सकूँ जब तक ये मानसिकता नहीं पनपेगी या कहो ऐसी मानसिकता का प्रचार नहीं होगा तब तक उम्र को घटाने - बढाने का ना कोई औचित्य होगा । 

9 टिप्‍पणियां:

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


सही कहा आपने वंदना जी ,सेक्स बालिग़ होने कोई आधार नहीं .सेक्स १२ साल का बच्चा भी कर लेता है तो क्या वह वालिद है ?
latest post सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
latest postऋण उतार!

Unknown ने कहा…

bahut hi sundar,gambhir avm vicharniy prastuti,badhayee

Aditi Poonam ने कहा…

आपके विचारों से बिलकुल सहमत हूँ वन्दना जी ,
देश के ये कर्ण धार कहाँ पहुंचाएंगे देश को....
पुनःश्च-देश ने ,बहुमत ने आखिर
सही फैसला अपने पक्ष में लेकर दिखा दिया.....साभार......


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह...!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!
--
यहाँ मनसिकता कोई नहीं बदलेगा!

Jyoti khare ने कहा…

सार्थक और विचारपरक
सुंदर प्रस्तुति
बधाई

Unknown ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

सरकार में जो निर्णायक समिति है, शायद उसका दृष्टिकोण भारतीय नहीं है, इसलिए ऐसे प्रस्‍ताव आते हैं।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सार्थक विश्लेषण...पर हमारी सरकार में दूरदर्शिता कहाँ है?...

Unknown ने कहा…

Sahi he vndna ji