बरसात के बाद उग आये
कुकुरमुत्तों से हम
आज के दौर के
कवि कहलाते हैं
एक लाइक और एक टिपण्णी
पर फूले नहीं समाते हैं
एक पत्रिका में छपने पर
एक सम्मान पाने पर
एक जुगाड़ लगाने पर
बांछें खूब खिलाते हैं
मगर असलियत
नहीं जान पाते हैं
पल दो पल के जीवन सा
ये सोशल दरबार सजाया है
जिसने हर लिखने वाले को कवि बनाया है
जो छोटी -छोटी उपलब्धियों पर
उड़ान भरने लगता है
मगर एक दिन खुद को
कुएं के मेंढक सा
जब घिरा पाता है
तब हाथ मलके पछताता है
हाय सोशल मिडिया
तूने बड़ा दर्द दीन्हा
मेरा मुझमे जो
सुख चैन था
वो भी है छीना
अब न वो उड़ान
भर पाता हूँ
न मस्ती से जी पाता हूँ
बस कुछ न कुछ
जरूर लिखना है
चाहे साहित्यिक हो या नहीं
लिखने से न बच पाता हूँ
और ये सच भूल जाता हूँ
बरसाती कुकुरमुत्तों का
जीवन ना ज्यादा होता है
एक न एक दिन
उन्हें तो मिटना होता है
बिना किसी
पहचान के
हाय ! सोशल मिडिया
तूने बड़ा दुःख दीन्हा
कुकुरमुत्तों से हम
आज के दौर के
कवि कहलाते हैं
एक लाइक और एक टिपण्णी
पर फूले नहीं समाते हैं
एक पत्रिका में छपने पर
एक सम्मान पाने पर
एक जुगाड़ लगाने पर
बांछें खूब खिलाते हैं
मगर असलियत
नहीं जान पाते हैं
पल दो पल के जीवन सा
ये सोशल दरबार सजाया है
जिसने हर लिखने वाले को कवि बनाया है
जो छोटी -छोटी उपलब्धियों पर
उड़ान भरने लगता है
मगर एक दिन खुद को
कुएं के मेंढक सा
जब घिरा पाता है
तब हाथ मलके पछताता है
हाय सोशल मिडिया
तूने बड़ा दर्द दीन्हा
मेरा मुझमे जो
सुख चैन था
वो भी है छीना
अब न वो उड़ान
भर पाता हूँ
न मस्ती से जी पाता हूँ
बस कुछ न कुछ
जरूर लिखना है
चाहे साहित्यिक हो या नहीं
लिखने से न बच पाता हूँ
और ये सच भूल जाता हूँ
बरसाती कुकुरमुत्तों का
जीवन ना ज्यादा होता है
एक न एक दिन
उन्हें तो मिटना होता है
बिना किसी
पहचान के
हाय ! सोशल मिडिया
तूने बड़ा दुःख दीन्हा
27 टिप्पणियां:
kya andaz hai.......wah.
पर सारे दुखों के मध्य मैं हूँ तो कल्पनाशील .......... मरूंगी नहीं,
कवि कहो या बेकार - लेती रहूंगी आकार
...जी, वंदना जी!...कविताएँ कवि अपने लिए ही मानों लिखता है!...ऐसे में कहीं से दो-चार टिप्पणियाँ मिल जाती है तो मन प्रसन्न हो जाता है...यही सच्चाई है!
एक लाइक२ और एक टिपण्णी ...
हाय आपने मर्म छेड़ दिया !
वाह जी वाह | आपने तो सोशल मीडिया वालों की क्लास लगा दी | सुन्दर भाव | आभार |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
very true. well said
वंदना जी ब्लॉग वास्तव में एक पर्सनल डायरी मात्र है अंतर बस इंतना है की उस डायरी को हम सबको पढने के लिए उपलब्ध करा देते हैं और कुछ वाही वाही लूट लेते है और खुश होते हैं .साहित्य और असाहित्य , कविता और अकविता मात्र इसका उसका भ्रम है असली तो बस स्वयं की खुशी है बस और कुछ नहीं अब चाहे कविता लिखो या संकलन छापो और मुफ्त बांटो.
:-)))
मै अरुणा जी की टिप्पणी से सहमत हूँ,,,
अगर ऐसा नही है तो लोग कमेंट्स बाक्स बंद कर रखते,,,कमेंट्स ही रचना गढ़ने उत्साह बढाता है,,
RECENT POST बदनसीबी,
हम्म है तो ऐसा ही ..पर बुरा क्या है :)
इसमें मीडिया का क्या कसूर जी ... अपने दिल को समझा नहीं पाते हम ...
आपका ये निर्मल हास्य अच्छा लगा ....
पर सारे दुखों के मध्य मैं हूँ तो कल्पनाशील ......... बहुत सुन्दर ...
कितने सम्बन्ध बन जाते हैं, खिंचाव तो होना स्वाभाविक ही है वहाँ।
बहुत सही बात कही है आपने भावनात्मक अभिव्यक्ति राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
ये शोसल मीडिया भी बेचारा बलि का बकरा बन ही जाता है :)
कुरुबंश जी और धीरेन्द्र जी के कॉमेंट्स से मैं सहमत हूँ,सोशल मीडिया की खाल उधेड़ती सुंदर रचना।
कुरुबंश जी और धीरेन्द्र जी के कॉमेंट्स से मैं सहमत हूँ,सोशल मीडिया की खाल उधेड़ती सुंदर रचना।
हालात ही ऐसे हैं।
सोशल मीडिया भी तो मजबूर है!
सार्थकता लिये सशक्त लेखन ...
:):) .... इसी बहाने मन के कुछ भाव बाहर तो आते हैं .... थोड़ी शांति मिलती है ....
:) Baat To Sahi Hai....
:))) ... अपने दिल की बात खुद से कहते हैं ..... लिखकर एक अजब सा सुकून मिलता है ...
~सादर!!!
:))) ... अपने दिल की बात खुद से कहते हैं ..... लिखकर एक अजब सा सुकून मिलता है ...
~सादर!!!
:))) ... अपने दिल की बात खुद से कहते हैं ..... लिखकर एक अजब सा सुकून मिलता है ...
~सादर!!!
:))) ... अपने दिल की बात खुद से कहते हैं ..... लिखकर एक अजब सा सुकून मिलता है ...
~सादर!!!
बात पते की है !
aapaka gussa sahi hai .
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