सुनो
तुमसे सब कुछ कह देने के बाद भी
रह जाता है कुछ अनकहा
यूं तो हमारा रिश्ता
पहुँच चुका है भेद कर
ज़िन्दगी के हर मुकाम को
मगर फिर भी
न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा
दुनियादारी की बातें हों
या सामाजिक बातें
या हो कोई समस्या
हम बेबाकी से कर लेते हैं
बहस और समाधान उस पर
मगर फिर भी
जब बात आती है
हमारे अपने रिश्ते की
न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा
हम तुम इक दूजे के
न केवल जीवन साथी बने
बल्कि हमने तो जीवन को
मित्रवत भी जीया
अपने रिश्ते को
अपनेपन की ऊर्जा से
एक नया रूप दिया
तभी तो कर लेते हैं हम
दुनियाजहान की बातें
कार्यक्षेत्र हो या ज़िन्दगी
कर लेते हैं सबकी बातें
फिर भी न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा
जानते हो क्या है वो
हमारा अपना रिश्ता
जो हम मुखर नहीं कर पाते हैं
जिसे हम मौन में ही परिभाषित करते हैं
और मौन में ही जीना चाहते हैं
और हमारा रिश्ता मौन की चौखट पर खड़ा
मौन होने लगता है
मौन की चट्टान न जाने क्यूँ
हम तोड़ नहीं पाते हैं
जो इक दूजे से चाहते हैं
जाने क्यूँ कह नहीं पाते हैं
किसी औपचारिकता का मोहताज नहीं
यूं तो हमारा रिश्ता
फिर भी ना जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा
शायद ये रिश्ते का वो पड़ाव होता है
जहाँ मौन को मुखरता की जरूरत होती है
और हम समझ नहीं पाते हैं
या शायद अपने हाव भाव से
समझा नहीं पाते हैं
और साथी से सिर्फ यही चाहत होती हैं
जो मैं सोचूँ वो बिना कहे समझ जाए
जो मैं चाहूं वो बिना कहे कर जाए
इतना वक्त बीता क्या वो अब भी
ना मेरा मन समझा
ना जाने क्यूँ ये चाह बलवती रहती है
जो अच्छे खासे रिश्ते में
अदृश्य दीवार सी बनी रहती है
ना जाने क्यूँ फिर भी
कुछ अनकहा रह जाता है
उम्र का कोई भी पड़ाव हो
साथी के साथ तो रिश्ता ऐसा होता है
ज्यों नवयुगल का होता है
वहां न कोई पर्दा होता है
इसलिए चाहतें भी वहीँ फन उठती हैं
इक युगलप्रेमी से व्यवहार की
प्यार की , मनुहार की
इक दूजे को समझने की
वहीँ तो ज्यादा दरकार होती है
बस यही वो विषम झाड़ियाँ होती हैं
जो राहों को दुर्गम करती हैं
अच्छे भले रिश्ते में
गहरी खाइयाँ पैदा करती हैं
अबोलेपन की विषमता का जंगल
हम अपने रिश्ते में ही क्यूँ उगा लेते हैं
ये प्रेम की पराकाष्ठा होती है
या चाहत की इंतेहा कि
बिना कहे भी
साथी से ही सब कुछ पाने की चाह
इतनी बलवती होती है
इसलिए सब कुछ जानते समझते भी
फिर भी न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा…………
तुमसे सब कुछ कह देने के बाद भी
रह जाता है कुछ अनकहा
यूं तो हमारा रिश्ता
पहुँच चुका है भेद कर
ज़िन्दगी के हर मुकाम को
मगर फिर भी
न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा
दुनियादारी की बातें हों
या सामाजिक बातें
या हो कोई समस्या
हम बेबाकी से कर लेते हैं
बहस और समाधान उस पर
मगर फिर भी
जब बात आती है
हमारे अपने रिश्ते की
न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा
हम तुम इक दूजे के
न केवल जीवन साथी बने
बल्कि हमने तो जीवन को
मित्रवत भी जीया
अपने रिश्ते को
अपनेपन की ऊर्जा से
एक नया रूप दिया
तभी तो कर लेते हैं हम
दुनियाजहान की बातें
कार्यक्षेत्र हो या ज़िन्दगी
कर लेते हैं सबकी बातें
फिर भी न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा
जानते हो क्या है वो
हमारा अपना रिश्ता
जो हम मुखर नहीं कर पाते हैं
जिसे हम मौन में ही परिभाषित करते हैं
और मौन में ही जीना चाहते हैं
और हमारा रिश्ता मौन की चौखट पर खड़ा
मौन होने लगता है
मौन की चट्टान न जाने क्यूँ
हम तोड़ नहीं पाते हैं
जो इक दूजे से चाहते हैं
जाने क्यूँ कह नहीं पाते हैं
किसी औपचारिकता का मोहताज नहीं
यूं तो हमारा रिश्ता
फिर भी ना जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा
शायद ये रिश्ते का वो पड़ाव होता है
जहाँ मौन को मुखरता की जरूरत होती है
और हम समझ नहीं पाते हैं
या शायद अपने हाव भाव से
समझा नहीं पाते हैं
और साथी से सिर्फ यही चाहत होती हैं
जो मैं सोचूँ वो बिना कहे समझ जाए
जो मैं चाहूं वो बिना कहे कर जाए
इतना वक्त बीता क्या वो अब भी
ना मेरा मन समझा
ना जाने क्यूँ ये चाह बलवती रहती है
जो अच्छे खासे रिश्ते में
अदृश्य दीवार सी बनी रहती है
ना जाने क्यूँ फिर भी
कुछ अनकहा रह जाता है
उम्र का कोई भी पड़ाव हो
साथी के साथ तो रिश्ता ऐसा होता है
ज्यों नवयुगल का होता है
वहां न कोई पर्दा होता है
इसलिए चाहतें भी वहीँ फन उठती हैं
इक युगलप्रेमी से व्यवहार की
प्यार की , मनुहार की
इक दूजे को समझने की
वहीँ तो ज्यादा दरकार होती है
बस यही वो विषम झाड़ियाँ होती हैं
जो राहों को दुर्गम करती हैं
अच्छे भले रिश्ते में
गहरी खाइयाँ पैदा करती हैं
अबोलेपन की विषमता का जंगल
हम अपने रिश्ते में ही क्यूँ उगा लेते हैं
ये प्रेम की पराकाष्ठा होती है
या चाहत की इंतेहा कि
बिना कहे भी
साथी से ही सब कुछ पाने की चाह
इतनी बलवती होती है
इसलिए सब कुछ जानते समझते भी
फिर भी न जाने क्यूँ
रह जाता है कुछ अनकहा…………
20 टिप्पणियां:
अबोलेपन की विषमता का जंगल
हम अपने रिश्ते में ही क्यूँ उगा लेते हैं
ये प्रेम की पराकाष्ठा होती है
या चाहत की इंतेहा कि
बिना कहे भी
साथी से ही सब कुछ पाने की चाह
असल में हम यह सोच लेते हैं कि एक दूसरे को जब इतना समझते हैं तो बिना कहे ही मन की बात समझ लेनी चाहिए .... और इसी उम्मीद पर अबोले से हो जाते हैं ....
वैसे चाहे कितना ही कुछ कह लें पर अनकहा तो तब भी रह ही जाता है .... बहुत सुंदर भावा भिव्यक्ति
अनकहे में ही तो जिज्ञासा है और एक खोज ...
आदरेया वंदना जी बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
कविता के भाव एवं शब्द का समावेश बहुत ही प्रशंसनीय है
हर शब्द शब्द की अपनी अपनी पहचान बहुत खूब
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
सुनो तुमसे सब कुछ कह देने के बाद भी रह जाता है कुछ अनकहा........................................................................................................
बहुत खूब...
पूर्णता राह के अन्तिम सिरे में है..
बहुत खूब.
अबोलेपन की विषमता का जंगल
हम अपने रिश्ते में ही क्यूँ उगा लेते हैं
ये प्रेम की पराकाष्ठा होती है
या चाहत की इंतेहा कि
बिना कहे भी
साथी से ही सब कुछ पाने की चाह
मन की बात कहाँ पूरी होती है, कितना भी कहो सुनो कुछ न कुछ अनकहा तो रह ही जाता है...बहुत सुन्दर भाव...
बिल्कुल सच कहा आपने ... अनुपम भाव संयोजन
आभार
सत्य कहती खूबसूरत रचना |सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति |
आशा
आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 22 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
आप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
भूलना मत
htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।
सूचनार्थ।
शब्द सब-कुछ बोल भी तो नहीं पाते!
शब्द सब कुछ कह भी कहाँ पाते हैं !
ह्रदय को स्पर्श करती हुई सुन्दर रचना के लिए बधाई..
अनकहे की अभिव्यक्ति.......सुन्दर।
वाह वंदना जी , एक बेहद भीतरी मन को कुरेदती हुयी , संबंधों को व्यक्त करती कविता . बस कुछ पंक्तियाँ याद आती है .
- कहना तो बहुत कुछ है मगर
कुछ नहीं कहते ..
बस ... कुछ नहीं कहते .
बिना कहे भी
साथी से ही सब कुछ पाने की चाह ..beshak aisa hi hota hai
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
प्रेम की ये कैसी पराकाष्ठा.... कि जो दिल के सबसे नज़दीक है... उसके-हमारे बीच ही चुप की ऐसी कठोर दीवार...?
~सादर!!!
जिज्ञासा ही खोज में सफल होती है.
सुंदर भापूर्ण प्रस्तुति.
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