दिल गुलशन
गुलशन हो गया
जब दोस्तों का साथ मिल गया
किताबों से नाता जुड गया
यूँ मन का
कँवल खिल गया
कल पुस्तक मेले के सफ़र में सबसे पहले अन्दर कदम रखते ही आनन्द द्विवेदी जी से मुलाकात हो गयी वो जा रहे थे वापस और हम तो अभी आये ही थे लेकिन छोटी सी मुलाकात ही काफ़ी खुशगवार रही…………वैसे भी दोस्तों से मुलाकात कैसी भी हो खुशगवार ही होती है………उसके बाद हाल 12 से हमने अपने सफ़र की शुरुआत की और पहुँचे सीधे हिंद युग्म के स्टाल पर जहाँ अपने दोस्तों की पुस्तकों का तो अवलोकन किया ही उनसे मुलाकात भी हुयी जिनमें मुकेश कुमार सिन्हा, इंदु सिंह , राकेश कुमार जी, सुनीता शानू आदि शामिल थे ………उसके बाद हमारे कदम बढ गये बोधि प्रकाशन की तरह ………वहाँ से कुछ पुस्तकों को अपना साथी बनाया ………जैसा नाम वैसा काम को चरितार्थ करता बोधि प्रकाशन का स्टाल ……कम कीमत में काफ़ी बढिया रचनाकारों की किताबें हमें मिल गयीं जो अपने आप में एक मिसाल बन रहा है ……सिर्फ़ 100 रुपये में दस किताबों का सैट और बाकि की किताबें भी कोई ज्यादा कीमत की नहीं थीं जो आज के दौर में अपनी पहचान बना रही हैं बेशक सराहनीय और संग्रहणीय हैं ………उसके बाद विभिन्न स्टाल्स पर घूमते घूमते कुछ किताबें खरीदते खरीदते पेट मे चूहों ने हमला बोल दिया तो जलपान के लिये चल दिये और एक ब्रेक के बाद फिर सफ़र पर निकल पडे जहाँ हमने कहीं से अमृता को तो कहीँ से बुल्लेशाह को तो कहीं से कान्हा को लिया और आखिर में ज्योतिपर्व प्रकाशन पर जो हमारा साझा काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ है उसके विमोचन के लिये गये मगर वहाँ तो अभी देर थी इसलिये कुछ इंगलिश बुक्स बिटिया को दिलाने निकल पडे और इसी बीच मे कवि महोदय ने आकर जल्दी से विमोचन भी कर दिया और हम वहाँ तक पहुँच भी नहीं सके क्योंकि कवि उदभ्रांत जी सुना है बहुत जल्दी में थे ………और इस प्रकार आखिर में आकर हमने अपनी एक प्रति ली और घर की ओर रवाना हो गये ……मगर इस सफ़र का अपना ही मज़ा रहा ………जो सबसे बडी बात नोटिस की वो ये कि इस बार पाठक पुस्तकें खरीद रहे थे जो एक शुभ संकेत है …………चलिये कुछ चित्रों के माध्यम से आप भी आनन्द लीजिये हमारे सफ़र का
खिलते गुलाब
दो दिल मिल रहे हैं
हिन्द युग्म पर
ज्योतिपर्व प्रकाशन पर एक शाम
माया के मृग ने मन मोह लिया
गिरिराज शरण जी के साथ
मैं और मेरी परछाईं मन पखेरु के साथ
आ गये आ गये आ गये रंग जमाने वाले
जहाँ मिल जायें चार यार
तेरे मेरे बीच मे कैसा है ये बंधन अंजाना
यूँ चलते चलते वैलकम कर दिया
सुमित प्रताप के संग
ऐसे भी बातें होती हैं
यूँ भी मुलाकातें होती हैं
तुम और मैं खुश हैं यूँ आज मिल के
क्या अदा क्या जलवे तेरे
एक स्टाइल ये भी
शब्दों की चहलकदमी का विमोचन हो गया्………जिसमें कुछ शब्द मेरे भी हैं
( फ़ोटो राजीव तनेजा जी ,सरस दरबारी जी से साभार और कुछ मेरे )
29 टिप्पणियां:
bahut khub vandana ji aapne to gagar mein sagar bhar diya ghar baithe hi laga mele mein ho aaye....
aap 10 feb ko aa rahi hain kuch aur ke sath aapse bhi milna ho jayega
hain to ham bhi barsati paudhe par gaur kijiyega.....shukriya
गुज़ारिश : ''......यह तो मौसम का जादू है मितवा......''
अद्भुत और यादगार क्षण |इस लेख /रिपोर्ट के बहाने हम भी जुड़ गये |दिल्ली में कोई अच्छा काम तो हुआ |
हम भी मिल लिए सबसे
आपकी पोस्ट के माध्यम से मेरा घूमना भी हो गया .
आभार ये क्या कर रहे हैं दामिनी के पिता जी ? आप भी जाने अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस
चलो जी आपके साथ हम भी घूम आये
Nice collection of pictures & presentation also.
पुस्तक मेले की शानदार और जानदार प्रस्तुति !
6th ko hum bhi gaye the ....par kisise mulakat nahin hui.aapne to khoob maze kiye.
ज्ञान के भंडार के बीच बैठे..सुन्दर चित्र..
एक बौछार था वो शख्स - ब्लॉग बुलेटिन ग़ज़ल सम्राट स्व॰ जगजीत सिंह साहब को समर्पित आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बधाई हो!
अगली बार आपकी भी पुस्तक का पुस्तक मेले में विमोचन हो!
बधाई वन्दना जी ...
पुस्तक मेले का सुन्दर चित्रण...
शुभकामनाएँ आप सभी को...
:-)
अच्छी रिपोर्ट प्रस्तुत की ...सुंदर चित्र
यादगार क्षणों के लिए और खुबसूरत संस्मरण के लिए बधाई अरे मैं तो विमोचन और पुस्तक मेले की तो बात ही भूल गया . चलिए मज़ा आ गया ...
इस लेख के अलावा मैंने आपकी कई कविताएं पढी, सभी दिल को छूने वाली हैं, साथ ही मेरी पोस्ट चर्चा मंच पर लगाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
आपके इस लेख के अलावा मैंने आपकी कई कविताएं पढी, सभी दिल को छूने वाली हैं, साथ ही मेरी पोस्ट चर्चा मंच पर लगाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
पुस्तक मेले की सुंदर झाकी,यादगार चित्र।
बधाई जी। चित्रों के साथ सभी के नाम भी दिए जाते तो हमें भी ज्यादा आनन्द आता। दिल्ली में नहीं रहने का नुकसान दिखायी दे रहा है हमें तो।
बिना गए ही हमारा भ्रमण हो गया...!
शुक्रिया....!!
बढिया..
चलिए इसी बहाने हमारी भी बैठा-ठाले मुलाकात हो गयी ......
चलिए वंदना जी आपके साथ हम भी मेले में घूम लिए मेरी तो 'बुक हृदय के उद्द्गार' भी ज्योतिपर्व प्रकाशन पर होगी जाने का पूरा प्रोग्राम था किन्तु किसी कारण वश पहुँच नही पाई और आप सब से मिल नही पाई इसका खेद रहेगा फिर कभी ना कभी जरूर मुलाकात होगी आपको अपनी बुक के लिए ढेरों बधाई
पुस्तक मेले की सुंदर झाकी
waah bahut badhiya ...
bahut bahut badhai ...photos ko dekh kar dil baag baag ho gya ...
Darshneey mela .
Darshneey mela .
एक टिप्पणी भेजें