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मंगलवार, 8 जनवरी 2013

कल , आज और कल

पता नहीं क्यों
आदत हो गयी है हमें
इतिहास से फूल चुनने की
और काँटों पर शयन करने की
आखिर क्यों हम बार- बार
पलट कर देखते हैं
जबकि वक्त ना जाने कितनी
करवटें बदल चुका है
ना वैसा आलम रहा
ना वैसा आचरण
ना वैसे संस्कार
तो फिर क्यों हम
आज की तुलना
बीते कल से करते हैं
और खोजते हैं
अपना बीता वक्त आज में
जबकि जो बीत चुका
वो वापस नहीं आता
कालातीत हो चुका होता है जो
क्यों उसे ज़िन्दा करने की
उसे कुरेदने की कोशिश करते हैं
फिर चाहे समाज की कुरीतियाँ हों
या मन के दंश
या घर की औरतें
खींच लाते हैं उन्हें अतीत से वर्तमान में
और थोपने लगते हैं
कल के पलों पर आज के जंगल
ढूँढने लगते हैं अमरबेलें
जो कभी मुरझाएं नहीं
ज़िन्दा रखते हैं हम उन्हें
अपनी यादों में चिताओं की अग्नि जलाये
क्यों नहीं इतना समझते
कल के सन्दर्भ कल के माहौल
को इंगित करते हैं .........आज को नहीं
फिर कैसे उम्मीद कर लें
बीता कल आज बन जाए
क्यों नहीं समझते
कल काल कवलित हो चुका
और आज भी सिर्फ आज है
दिन गुजरते ही ये भी
काल कवलित हो जायेगा
तो क्यों ना उसके गुजरने से पहले
कुछ ऐसे दस्तावेज़ लिख दें
कि आने वाले कल में कोई
आज जो  बीत कर कल बन जायेगा
उसकी परछाइयाँ ना देखे
लिख दें ऐसा पल स्वर्णिम अक्षरों में
जो कभी काल कवलित ना हो
फिर चाहे कल , आज और कल हो
हर युग में प्रासंगिक हो ..............

14 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

माफ नहीं करता कभी, है अतीत इतिहास।
किन्तु आज के पथिक को, होता ना आभास।।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अतीत को पन्ने में उतार दें ...
पर अगर फिर भी आगे नहीं देखना तो व्यर्थ है ये सब ...

इमरान अंसारी ने कहा…

शत प्रतिशत सहमत.......वक़्त के साथ परिवर्तन प्रकृति का नियम है जो अतीत से चिपक जाता है वो मुक्त नहीं हो सकता........सुन्दर पोस्ट।

वक़्त मिले तो जज़्बात पर भी आयें ।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सही कहा, शुभकामनाएं.

रामराम.

ZEAL ने कहा…

waah..very nice creation.

Vinay ने कहा…

अति सुंदर कृति
---
नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

अजय कुमार ने कहा…

hamesha prasangik ho aisa pal----
sundar sandesh

kavita verma ने कहा…

atit ko sahi pariprekshy me dekhna bataya aapne..sundar rachna..

बेनामी ने कहा…

सही कहा - अतीत से वर्तमान की तुलना प्रासंगिक नहीं कही जा सकती

Arun sathi ने कहा…

satik/sarthak

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कई बार आपको पढ़ते हुए मैं आपकी बगल में बैठ जाती हूँ - चेहरे की हर रेखाओं को पढने के लिए

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रासंगिक रचना ... सहमत आपकी बात से ..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कल तरंगें काल के सागर पे डोलेंगी..

रचना दीक्षित ने कहा…

आज जो बीत कर कल बन जायेगा
उसकी परछाइयाँ ना देखे
लिख दें ऐसा पल स्वर्णिम अक्षरों में
जो कभी काल कवलित ना हो.

बेहतरीन सन्देश सुंदर भाव.

लोहड़ी, मकर संक्रान्ति और माघ बिहू की शुभकामनायें.