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सोमवार, 24 दिसंबर 2012

और कैसे होगा लोकतंत्र का बलात्कार ?


अब देखिये इस चित्र को और बताइये ये किस बर्बरता से कम है……कल को कहीं फिर से जलियाँवाला बाग कांड भी हो जाये तो कोई हैरानगी नहीं होगी







इसे क्या कहेंगे आप ?
पुलिस की बर्बरता या सरकार का फ़रमान या अनदेखी या लोकतंत्र का बलात्कार राजशाही द्वारा …………जहाँ न्याय की माँग करने पर पैरों से रौंदा जाता है ………धिक्कार है !!!!!!!!




बर्बरता शब्द भी आज रो उठा
देखा जो हाल इंडिया गेट पर
कैसा देश कैसा लोकतंत्र
ये तो बन गया कठपुतली तंत्र
सुना है कृष्ण ने उद्धार हेतु
किया था भौमासुर का संहार
और किया था मुक्त सोलह हजार को
वो भी तो दानव था ऐसा
जो बलात कन्या अपहृत करता था
उनको कृष्ण ने  न्याय दिया
राजा का धर्म निभा दिया
आज कैसे राजा राज करते हैं
जो बलात्कारियों को ही संरक्षण देते हैं
और विरोध करने वालों पर ही
अत्याचार करते हैं
सुना है जब अधर्म की अति होती है
तभी कोई नयी क्रांति होती है
इस बार जो बीज बोये हैं
फ़सल उगने तक इन्हें सींचना होगा
हौसलों को ना पस्त होने देना होगा
मेरे देश के बच्चों …कल तुम्हारा है
बस ये याद रखना होगा
जो कदम आगे बढे
उन्हें ना पीछे हटने देना होगा
फिर देखें कैसे ना तस्वीर बदलेगी
कैसे ना पर्वत से गंगा निकलेगी
बेशक आज अन्याय की छाती चौडी है
मगर न्याय की डगर से भी ना दूरी है
बस इस बार ना कदम पीछे करना
और इस देश के नपुंसक तंत्र को उखाड देना
बस न्याय मिल जायेगा
हर दामिनी का चेहरा गर्व से दमक जायेगा 


24 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सशक्त रचना ..... कुंभकरण भी 6 महीने बाद जाग जाता था .... पर यह सरकार तो न जाने कौन सी नींद सोयी हुई है ।

अरुन अनन्त ने कहा…

सत्य कहा है आपने आदरणीया आखिर कब तक ये सब यूँ ही चलता रहेगा, कब तक हम सहते और दबते रहेंगे, वर्तमान परिस्थिति को सहजता के साथ लिखी सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें

सदा ने कहा…

आँख नम है
न्‍याय की माँग में
जुल्‍म देख

Onkar ने कहा…

उम्मीद है, इस बार का जन-आक्रोश किसी सकारात्मक परिणाम को जन्म देगा

संध्या शर्मा ने कहा…

अन्याय के खिलाफ उठी आवाज़ को बुलंद करती सशक्त अभिव्यक्ति... आभार

Madan Mohan Saxena ने कहा…

चलती बस में लड़की के साथ बलात्कार
पुलिस प्रशाशन की नाकामी और हार
युबा और युब्तियों की हमदर्दी और न्याय के लिए प्रदर्शन
सोनिया राहुल शिंदे शीला पुलिस कमिश्नर का निन्दनीय आचरण
हमेशा की तरह आन्दोलन को दवाने की साजिश
पुलिस का ब्यबहार गैरजरूरी और शरमशार
भारत और दिल्ली की जनता एक बार फिर से लाचार .

अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पोरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं

नाज हमको था कभी पर आज सर झुकता शर्म से
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सारे ढह गए हैं

Madan Mohan Saxena ने कहा…

सशक्त रचना

अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पोरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं

अशोक सलूजा ने कहा…

धिक्कार है ...आजकल की इस व्यवस्था पर !!!

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति नारी महज एक शरीर नहीं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तंत्र ला बदलाव जरूरी है ...
ये कोई राजनीति की बात नहीं है ... अगर आने वाली सरकार भी ठीक नहीं तो उसे भी बदलना होगा ... प्रक्रिया जारी रखनी होगी ... हल तभी निकलेगा ...

बेनामी ने कहा…

बढ़िया,
जारी रहिये,
बधाई !!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

अन्याय के खिलाफ सशक्त अभिव्यक्ति ,,,,

recent post : समाधान समस्याओं का,

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सशक्त रचना...

जो हाथ उठा सकते हैं लाठी लड़की पर,
उन हाथों से रक्षा की आशा क्या होगी?
केवल आश्वासन देकर जो बहलाते हैं,
उनसे कठोर निर्णय की आशा क्या होगी?

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 25/12/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

:(

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

स्पष्ट भाव संप्रेषित करती रचना।

udaya veer singh ने कहा…

अन्याय के खिलाफ उठी आवाज़ को बुलंद करती सशक्त अभिव्यक्ति...

Unknown ने कहा…

सशक्त अभिव्यक्ति

sushila ने कहा…

ओज लिए सुंदर रचना । ये स्वर बधिर सरकार को ज़रूर जगाएँगे।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सभी पहलुओं पर विचार ज़रूरी है।
अत्यंत दुखद।

MANOJ KAYAL ने कहा…

सिसकती रही बेबस दामिनी

पर उन दरिंदो को जरा भी रहम ना आई

शर्मसार हो गयी सभ्यता सारी

छिन्न भिन्न हो गयी कायनात सारी

ढाये जालिमों ने ऐसे जुल्म

रूह शैतान की भी काँप गयी

बना अपनी हवस का शिकार

सरिया लोहे की खोख में उतार दी

फेंक दिया बीच राह नग्न कर

कुदरत भी लज्जा गयी

दिलाने इन्साफ अपने को

झुन्झ रही दामिनी मौत से

सुन उसकी आत्मा की अंतर्नाद

खुदा भी खुद खौफ जदा हो गयी

सुनो ये दुनियावालों

दामिनी है तुम्हे पुकार रही

रहनुमा ना बन सके

हमदर्द बन

इस रण में तुम भी शामिल हो जाओ

उसके इन्साफ के लिए

सरकार तो क्या

खुदा से भी तुम लड़ जाओ

कोई तो सच्चा मसीहा बन

ऐसी पुनरावृति से समाज को बचा लाओ
www.poemsbymanoj.blogspot.com

MANOJ KAYAL ने कहा…

सिसकती रही बेबस दामिनी

पर उन दरिंदो को जरा भी रहम ना आई

शर्मसार हो गयी सभ्यता सारी

छिन्न भिन्न हो गयी कायनात सारी

ढाये जालिमों ने ऐसे जुल्म

रूह शैतान की भी काँप गयी

बना अपनी हवस का शिकार

सरिया लोहे की खोख में उतार दी

फेंक दिया बीच राह नग्न कर

कुदरत भी लज्जा गयी

दिलाने इन्साफ अपने को

झुन्झ रही दामिनी मौत से

सुन उसकी आत्मा की अंतर्नाद

खुदा भी खुद खौफ जदा हो गयी

सुनो ये दुनियावालों

दामिनी है तुम्हे पुकार रही

रहनुमा ना बन सके

हमदर्द बन

इस रण में तुम भी शामिल हो जाओ

उसके इन्साफ के लिए

सरकार तो क्या

खुदा से भी तुम लड़ जाओ

कोई तो सच्चा मसीहा बन

ऐसी पुनरावृति से समाज को बचा लाओ
www.poemsbymanoj.blogspot.com

Akhil ने कहा…

बेहद नाज़ुक और ज़रूरी विषय पर सार्थक लेख

Madan Mohan Saxena ने कहा…

सुन्दर रचना .अन्याय के खिलाफ उठी आवाज़ को बुलंद करती सशक्त अभिव्यक्ति... आभार