हाँ
मत खोलना
मेरी मोहब्बत के लिबासों को
बहुत कस के बंध बाँधे हैं मैंने इस बार
सदियाँ गुजर गयीं
लिबास बदलते बदलते
मगर मोहब्बत मेरी अधूरी ही रही
एक जन्म की प्यास
हर जन्म में अधूरी ही रही
कपडे फटते रहे
नए चढ़ते रहे
मगर मोहब्बत को ना मुकाम मिला
वो हमेशा वस्त्रहीन ही होती रही
मगर इस बार
हर जन्म की अधूरी
बिछड़ी मोहब्बत के हर रेशे को
हर कतरे को
इस तरह संजोया है
और बांधा है कि
अगले जन्म की मोहताज ना रहे
रेशम के तारों से नहीं बांधा
रेशमी तार थे ना
कब फिसल जाते थे और
कब खुल जाते थे
पता ही नहीं चलता था
तभी कहती हूँ
इस बार लिबास नहीं बदलेगी
मेरी मोहब्बत
क्योंकि
बांधा है मैंने उसे
सूत के कच्चे तारों से
और कच्चे तारों से बने धागे ही मजबूत होते हैं
उनके लिबास उम्र भर नहीं उधड़ते ..........है ना !!!!
19 टिप्पणियां:
बांधा है मैने
उसे सूत के कच्चे तारों से
वाह ..अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...आभार ।
KYA KHOOBSOORAT AUR MAJBOOT ZAZBAA
HAI !
खूबसूरत कविता.. प्रेम को संजोना कोई आपसे सीखे...
एक नयापन और कशिश है इस कविता में..
सब कुछ कह गयी पंक्तिया....... बहुत ही खूबसूरती स वयक्त किया है मन के भावो को.......
अनुपम बिम्ब..
वाह...!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत सुंदर भाव वंदना जी.....
हाँ सच कहा है सादे सूत से बंधे बन्ध ही मजबूत रहते हैं......
अनु
यूँ तुम खोलना भी चाहो तो अबकी खुलेंगे नहीं .... आँखों की बूंदों से , प्यार भरी दुआओं से जो बाँधा है
सचमुच रेशमी धागे से सूती धागों में ज्यादा ताकत होती है .
यही तो प्यार पांश है
बंध मज़बूत न हुए तो फिर बंध कैसे
कुछ नए बिम्बों के साथ अनूठा प्रयोग।
वाह ,,,, बहुत अच्छी भाव पुर्ण प्रस्तुति,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
kya khoobsurat kavita hai......
बहुत सुन्दर 'प्रेम' अभिव्यक्ति!
‘रेशमी तारों‘ और ‘सूती तारों‘ जैसे नवीन प्रतीकों के प्रयोग ने कविता के कथ्य को सजीव कर दिया है।
प्रेम के बहुत सुन्दर भाव हैं । लेकिन जरूरी नही कि वे प्रतिफलित हों ही । हाँ आप इन भावों को अनवरत बनाए रखें । यही प्रेम की नियति है ।
bahut pyaari nazm.. mohabbat ko baand hi li jaaye ..
vijay
गाँठ न इतनी कस भी जाये, लेने को कुछ साँस न आये..
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