अभी तो तुमने
सिर्फ शुक्ल पक्ष देखा है
उजाला पाक कहते है ना
जिसमे सब हरा ही हरा
नज़र आता है
महबूब का हर रंग
खूब नज़र आता है
मगर अभी तुमने
कृष्ण पक्ष तो देखा ही नहीं
जिसमे अमावस भी आती है
और चन्द्रमा की चाँदनी पर
श्राप सी पड़ जाती है
उसमे कभी देखना
नहीं मिलेगा तुम्हें
उसमे मेरा वजूद
जिसे तुम दिल का
उजाला कहा करते थे
जिसमे तुम एक जीवन
जिया करते थे
जिसमे सिर्फ सुनहरी
मीठी मीठी धूप ही
चमका करती थी
कभी उसे देखना
अंधियारे पक्ष में
सारे महल ढह जायेंगे
वो नींव भी हिल जाएगी
जिस पर ईमारत की
बुलंदी का अहसास होता था
हर पूर्णिमा के बाद
अमावस जैसे आती है
वैसे ही उजाले में छुपे
अँधेरे ही और उन
अंधेरों में छुपे सच ही
ज़िन्दगी का आईना होते हैं
ताकना कभी उस आईने में
सारे सच बदल जायेंगे
और आसमाँ में सिर्फ
काले बादल ही रह जायेंगे
सिर्फ शुक्ल पक्ष देखा है
उजाला पाक कहते है ना
जिसमे सब हरा ही हरा
नज़र आता है
महबूब का हर रंग
खूब नज़र आता है
मगर अभी तुमने
कृष्ण पक्ष तो देखा ही नहीं
जिसमे अमावस भी आती है
और चन्द्रमा की चाँदनी पर
श्राप सी पड़ जाती है
उसमे कभी देखना
नहीं मिलेगा तुम्हें
उसमे मेरा वजूद
जिसे तुम दिल का
उजाला कहा करते थे
जिसमे तुम एक जीवन
जिया करते थे
जिसमे सिर्फ सुनहरी
मीठी मीठी धूप ही
चमका करती थी
कभी उसे देखना
अंधियारे पक्ष में
सारे महल ढह जायेंगे
वो नींव भी हिल जाएगी
जिस पर ईमारत की
बुलंदी का अहसास होता था
हर पूर्णिमा के बाद
अमावस जैसे आती है
वैसे ही उजाले में छुपे
अँधेरे ही और उन
अंधेरों में छुपे सच ही
ज़िन्दगी का आईना होते हैं
ताकना कभी उस आईने में
सारे सच बदल जायेंगे
और आसमाँ में सिर्फ
काले बादल ही रह जायेंगे
कृष्ण पक्ष में छुपे राज
जानने के लिए एक उम्र भी कम होती है
और यहाँ तो एक मुद्दत से
अमावस ने डेरा लगा रखा है
30 टिप्पणियां:
विचारनीय एवं गंभीर
सारगर्भित..
कुछ लोगों के हिस्से कृष्ण पक्ष ही होता है , शुक्ल पक्ष के लिए तरसते रह जाते हैं .... हाँ शुक्ल से कृष्ण और कृष्ण से शुक्ल पक्ष में जाना अलग अलग अनुभव होगा
जीवन के दोनों रंग दिखा दिए आपने... सुन्दर कविता... द्वन्द भी संतुलन भी..
badi sunderta se donon 'pakch' ko prastut kar din .....
कृष्ण पक्ष में छुपे राज जानने के लिए एक उम्र भी कम होती है और यहाँ तो एक मुद्दत से अमावस ने डेरा लगा रखा है,....
जीवन के दोनों रंग दिखाती भावपूर्ण सुंदर रचना,.
बेहतरीन प्रस्तुति,..वंदनाजी,...बधाई
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
जीवन का रंग ऐसा ही होता है .
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष द्वारा आपने सुन्दर उतार
चदाव को बुझाने का प्रयास किया है .बधाई .
गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
कृष्ण और शुक्ल पक्षों के माध्यम से जीवन के स्याह और सफ़ेद का बेहतरीन खाका खींचा है.....शानदार पोस्ट ।
कृष्ण पक्ष में छुपे राज जानने के लिए एक उम्र भी कम होती है...
जवाब नहीं आपके लेखन का... शब्द-शब्द अनमोल है...बहुत सुन्दर रचना
शुक्ल और कृष्ण पक्ष तो परिवर्तनीय हैं
सुन्दर भाव
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
बेहतरीन रचना |
AAPKEE KAVITA SHRESHTH HAI . JEEWAN
KE DO RANG PADH KAR SUKHAD ANUBHUTI
HUEE HAI .
poornima aur amawas ke rango ka lekhs jokha kar diya.
सुन्दर कविता.
बहुतों को बहुत कुछ कह रही है ...आप की ये पोस्ट ...\शुभकामनाएँ!
एक अपील ...सिर्फ एक बार ?
काले बादल छट भी जाएंगे।
विरोधाभास जीवन के लिए ज़रूरी है.....!
अमावस्या के बाद ही पूर्णिमा भी आती है बहना....!!
सूचनार्थ: ब्लॉग4वार्ता के पाठकों के लिए खुशखबरी है कि वार्ता का प्रकाशन नित्य प्रिंट मीडिया में भी किया जा रहा है, जिससे चिट्ठाकारों को अधिक पाठक उपलब्ध हो सकें।
अदभुत रूप से अपने भावोँ को शब्दबद्ध किया है आपने । अभी मोबाइल पर हूँ फिर भी एक कोशिश दादस्वरूप - अंधेरोँ की उड़ान उजालोँ तक है तो उजालोँ की अंधेरे क्या ? महसूस करके ताजगी सोचती हैँ किरणेँ सवेरे क्या । मानस पटल पर खीचीँ कल्पना की रेखा समुन्दर की रेत जैसी सही पर रेत तो नहीँ होती । रेत फिर समुन्दर मेँ मिल जानी है पर कल्पना तो लिख जानी है ।कल्पना के वजूद से ही भावनाएँ है,शब्द हैँ ।और कल्पना सबसे ज्यादा तब चमकती है जब अंधेरोँ मेँ ताजगी पाती है ।
जीवन के दोनों पक्षों को समेटे यह रहना बेहतरीन है ......प्रेम भी और द्वंद्व भी ..!
एक विचार आता है और कविता बन जाता है भावभीनी पोस्ट ।मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत है
।
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के कम से कम दिन तो निर्धारित होते हैं लेकिन ज़िंदगी मेँ न जाने कितनी लंबी अमावस हो और कितने उजले दिन ... सुंदर प्रस्तुति
Your poetic expression depicts dailectical MATERIALISM ,dilema.BHAUTIK DVANDV .
good expression .Thanks.
जीवन की रातें कहाँ किसी को दिखायी पड़ती हैं, प्रभावी कविता
सत्य की साक्षी सी लगती है रचना दीदी जी...
एक लम्बे अरसे के बाद आपकी दुनिया में भ्रमण कर पाया हूँ....
वाह रे कृष्ण पक्ष.
आपका कान्हा काला,काली रात में आया
तो सब कुछ काला ही काला.
कृष्ण ही दीखे सब ओर,तो फिर शुक्ल पक्ष
हो या कृष्ण पक्ष,क्या फर्क पड़ता है.
बढ़िया रचना ...
शुभकामनायें आपको !
दोनों पक्षों का अपना आनद और दुःख है ... बस अपने अपने हिस्से की बात है ..
As usual superhit!!!
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