यादों की कस्तूरी कैसे छुपाऊँ
ज़ेहन में बसी याद कैसे मिटाऊँ
जीवन के वो पल कैसे भुलाऊँ
जहाँ सफ़र का पहला कदम पड़ा
जहाँ रूह को इक जीवन मिला
टिमटिमाता दिया बुझने की कगार पर है
आ सहेज लूं पलों को रौशनी के कतरे सा
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कौन जाये दिल्ली की गलियाँ छोड़कर
मगर परदेसियों को तो इक दिन है जाना
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हर मौसम की साक्षी बनी
मगर अपनी दुर्दशा पर आखिर पहुँच ही गयी
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यहीं तो मेरी रूह थी बसी जहाँ मै जन्मी पली और बढी |
वक्त हाथ से फिसलता रहा
धूल कपड़ों पर चढ़ती रही
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ज़िन्दगी सीढियाँ चढती गयी उम्र हाथ से फ़िसलती गयी |
सूखे पत्ते हैं मिट जायेंगे बस यादों की धरोहर बन जायेंगे |
आस्था जहाँ परवान चढी ये है वो मेरे मन की गली |
तस्वीर चाहे हट जायेंगी मगर यादें बताओ किधर जायेंगी |
ज़िन्दगी धूप छांव का खेल ही सही हार जीत का कोई गम नही बस इस खेल के किरदार हम बने सोच आँखे हुयी नम ही सही |
कभी जहाँ बसती थी इक बसती
ज़िन्दापरस्तों की
आज बंद दरवाज़ों पर लगे ताले
अपना हाल बताते हैं
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किसे आवाज़ दूँ कौन सा अब दरख्त सींचूँ गुजरे ज़माने को कैसे मै हथेली मे भींचूँ |
रहेंगी सब ख्वाबों ख्यालों की बातें कैसे भुलाऊँगी वो जीवन की रातें |
बाबुल का आंगन हो जायेगा स्वप्नवत |
मिटना शाश्वत सत्य सही फिर भी ना जीने की हसरत गयी |
छज्जे के चारों तरफ़ बिखरा उजास कहता आ जरा बैठ मेरे पास कुछ यादों के गोले बुन ले सर्दी की धूप और गर्मी की तपिश का कुछ तो मज़ा ले |
इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल |
जाने वाले फिर नही आते जाने वालों की याद आती है |
रंग चाहे उड जाये रूप चाहे मिट जाये पर यादों के बटुये मे मन पंछी कैसा फ़डफ़डाये |
दरो दीवार चाहे बदल जाये गुजरी यादें ना बिसरी जायें |
मिट्टी मेरे आँगन की ये आवाज़ देती है कर ले तिलक माथे पर अब सिर्फ़ यही कहती है |
भोर होते कागा शोर मचाता
किसी परदेसी का संदेसा दे जाता
शाम का आलम शरमा जाता
जब छत पर मौसम बदल जाता
कभी बारिश मे तनमन भीग जाता
कभी पतंगों संग उड जाता
कभी रात को रेहन रख जाता
कभी पुरवाई सा मचल जाता
कभी खेलों मे बदल जाता
कभी छुपन छुपाई का रंग दिखाता
कभी चारपाई पर रात मे तारे गिनता
कभी सप्तॠषियों को ढूँढता
कभी हाथों से पंखा झलता
कभी पुरों के नाम गिनता
कभी अंताक्षरी चुटकुलों की महफ़िलें सजतीं
कभी लडाइयों की महाभारत होती
ये छत के मौसम जब भी बदलते
जीवन मे नये रंग भरते
मिट्ने की कगार पर हूँ हाँ ....मै इंतज़ार मे हूँ |
कभी ईमारत बुलंद थी नक्शा बताता है
दरो दीवार की मजबूती भी दिखाता है
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उम्र के आखिरी पड़ाव पर
अपनी जर्जर अवस्था में वीराना
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कभी आबाद था जो आशियाना आज बना है देखो वीराना |
यादों के ठीकरों पर वक्त की कैसी साजिश हुई
जो कल तक मेरा था रूहों का वहाँ डेरा हुआ
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अब यादों के पुलों पर ही बसेरा होगा यहाँ न अब चिडियों का डेरा होगा |
कभी ईमारत बुलंद थी नक्शा बताता है
दरो दीवार की मजबूती भी दिखाता है
|
आने वाले को जाना होगा
बस तस्वीरों में ही ठिकाना होगा
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कहो अपनी क्या पहचान दूँ आज हूँ कल रहूँ ना रहूँ |
मुस्कुराया था कभी यहाँ भी जीवन आज खुद मिटने की कगार पर हूँ |
देख लो आज हमको जी भर के कोई आता नही है फिर मर के |
उखडी पपडियाँ , उडा रंग रोगन रहता था कभी यहां भी जीवन |
इमारत आज भी अहसास कराती है कभी बुलन्द रही होगी इमारत |
उम्र के आखिरी पडाव पर भी बुलन्दी का अहसास कराती हैं सीढियाँ जो घर को जाती हैं |
39 टिप्पणियां:
तस्वीरों के साथ टेक लगाकर भाव बैठ गए हैं ...
@रश्मि प्रभा जी जब तस्वीरों से ये हाल है तो समझ सकती हैं जो हम पे है गुजरी हमी जानते हैं :(
संस्मरण के रूप में दिया गया फोटोफीचर बहत ही मार्मिक है।
यही वो धरोहर होती हैं जिनको भुलाया नहीं जा सकता।
आपके अहसासों का कुछ हिस्सा तो हमारे भी नसीब में था.... यह पोस्ट देखकर आपके कुछ-कुछ अहसास हम तक भी पहुच गए....
ऐसे ही अपने ननिहाल की तस्वीर हमने भी सहेज ली है.................
जब रिश्ते ना सहेज सके तो तस्वीर ही सही...यादें ही सही.....
मन भीग गया वंदना जी....
अनु
Kuchh yaden mitaye nahee mittee....kuchh dard bhulaye nahee bhoolte....behad sundar rachana!
दिल की बात
आसान अल्फ़ाज
यादें पाइबस्त हैं हर चित्र के साथ ... बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण
उफ़...समझ सकते हैं आपके दिल पर क्या गुजरी होगी ..
ये वो जगह जो कभी भुलाये ना भूलेगी, ईमारत मिट जाये तो क्या यादों में हमेशा बुलंद रहेगी... मार्मिक अभिव्यक्ति ...
khubsurat yaden.
सिर्फ यादे रह जाती है,,,,,
फोटो फीचर के साथ बहुत यादगार मार्मिक प्रस्तुति,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
शब्द और चित्र मन को छू गए..... भावुक करती पोस्ट
बहुत ही भावुक करता संस्मरण |
आपकी पोस्ट 24/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा - 889:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
bahut kuch yaad dila gaya vandna ..man kahi apne ghar me kho gaya ..aur sach kahun to aankhe bheeghi gayi hai , apne puraane ghar kee yaad me.
परिवर्तन ही जीवन का नियम है ..तस्वीरों में हमेशा ताजा रहेंगी यादें !
:-(
बचपन कभी नहीं छूटता ... यादें ताज़ा रहती हैं ... धर बिक जाते अहिं टूट जाते हैं पर यादों कों कौन छीन सकता है ... मार्मिक पोस्ट ...
आपका घर देखकर अपना घर याद आ गया..
यादों की गली से गुजरते आँखें नम हो गयीं..बहुत मर्मस्पर्शी...
भावुक कर रही है रचना..जीवन से जुडी चीजों का यु मिटना बहुत सालता है... चित्र भी अपनी कहानी कह रहे हैं...
दुःख हुआ जानकार.....पर सच आपने इतनी अच्छी तस्वीरें ली हैं और उस पर शब्दों के माध्यम से जैसे सब कुछ कह दिया.....बहुत सुन्दर।
आपकी प्रस्तुति देख /पढ़ गला रुंध गया .....वह ग़ुबार उड़ता हुआ ....कुछ मुझे भी छू गया ...!!मर्मस्पर्शी !!!!!
लंबी कविता लिखने में आपको महारत हासिल है। कहीम से भी रोचकता खतम नहीं होती। इस तरह की यादें एक गहरी नदी के समान है और गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है।
बाबुल का गाँव स्मृतियों में रहेगा ..
बहुत भावपूर्ण लिखा है
और फिर चित्र तो मानों आपके मानस के चित्र हों
marmik......bhawbhini......
चित्र शब्दों क बयाँ कर रहे है.... या शब्द चित्र को बयाँ कर रहे है.... पर जो भी दिल के सारे एहसास उकेर कर शब्दों में आ गए है......
BAKAUL INDEEWAR -
ZINDGEE KAA SAFAR
HAI YE KAESAA SAFAR
KOEE SAMJHA NAHIN
KOEE JAANAA NAHIN
BAKAUL INDEEWAR -
ZINDGEE KAA SAFAR
HAI YE KAESAA SAFAR
KOEE SAMJHA NAHIN
KOEE JAANAA NAHIN
BAKAUL INDEEWAR -
ZINDGEE KAA SAFAR
HAI YE KAESAA SAFAR
KOEE SAMJHA NAHIN
KOEE JAANAA NAHIN
मार्मिक अभिव्यक्ति .
एक बार पढ़ना शुरु किया तो फिर अन्त में जाकर रुका....जैसे किसी फिल्म की रील चल रही हो
a great manifestation of nostalgia
वक़्त की नदी जाने क्या क्या बहा ले जाती है...
यादों का तूफ़ान समेटे सम्वेदनशील प्रस्तुति... हर फोटो इतिहास बता रहा है...
सादर.
बहुत पुराना घर है.. वाकई अनगिनत यादें जुडी होंगी.. और इन चित्रों और पंक्तियों में भाव भी अच्छे उकेरे हैं...
सादर
हम समझ सकते हैं आपकी तड़प....
कितनी यादें लिपट के रोती हैं
जब कोई शख्स घर बदलता है.....
कितनी यादें लिपट के रोती हैं
जब कोई शख्स घर बदलता है.....
I ghar ki mitti ko mera naman...
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