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बुधवार, 23 मई 2012

बाबुल मेरो नैहर छूटो ही जाये


यादों की कस्तूरी कैसे छुपाऊँ
ज़ेहन में बसी याद कैसे मिटाऊँ
जीवन के वो पल कैसे भुलाऊँ
जहाँ सफ़र का पहला कदम पड़ा
जहाँ रूह को इक जीवन मिला



टिमटिमाता दिया बुझने की कगार पर है
आ सहेज लूं पलों को रौशनी के कतरे सा 

कौन जाये दिल्ली की गलियाँ छोड़कर 
मगर परदेसियों को तो इक दिन है जाना 

हर मौसम की साक्षी बनी 
मगर अपनी दुर्दशा पर आखिर पहुँच ही गयी

यहीं तो मेरी रूह थी बसी
जहाँ मै जन्मी पली और बढी

वक्त हाथ से फिसलता रहा
धूल कपड़ों पर चढ़ती रही

ज़िन्दगी सीढियाँ चढती गयी
उम्र हाथ से फ़िसलती गयी

सूखे पत्ते हैं मिट जायेंगे
बस यादों की धरोहर बन जायेंगे

आस्था जहाँ परवान चढी
ये है वो मेरे मन की गली

तस्वीर चाहे हट जायेंगी
मगर यादें बताओ किधर जायेंगी

ज़िन्दगी धूप छांव का खेल ही सही
हार जीत का कोई गम नही
बस इस खेल के किरदार हम बने
सोच आँखे हुयी नम ही सही

कभी जहाँ बसती थी इक बसती
ज़िन्दापरस्तों की
आज बंद दरवाज़ों पर लगे ताले
अपना हाल बताते हैं

किसे आवाज़ दूँ कौन सा अब दरख्त सींचूँ
गुजरे ज़माने को कैसे मै हथेली मे भींचूँ 

रहेंगी सब ख्वाबों ख्यालों की बातें
कैसे भुलाऊँगी वो जीवन की रातें 

बाबुल का आंगन हो जायेगा स्वप्नवत

मिटना शाश्वत सत्य सही
फिर भी ना जीने की हसरत गयी

छज्जे के चारों तरफ़ बिखरा उजास
कहता आ जरा बैठ मेरे पास
कुछ यादों के गोले बुन ले
सर्दी की धूप और गर्मी की तपिश का कुछ तो मज़ा ले


इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल 

जाने वाले फिर नही आते
जाने वालों की याद आती है

रंग चाहे उड जाये रूप चाहे मिट जाये
पर यादों के बटुये मे मन पंछी कैसा फ़डफ़डाये

दरो दीवार चाहे बदल जाये
गुजरी यादें ना बिसरी जायें

मिट्टी मेरे आँगन की ये आवाज़ देती है
कर ले तिलक माथे पर अब सिर्फ़ यही कहती है

 भोर होते कागा शोर मचाता 
किसी परदेसी का संदेसा दे जाता 
शाम का आलम शरमा जाता 
जब छत पर मौसम बदल जाता
कभी बारिश मे तनमन भीग जाता 
कभी पतंगों संग उड जाता 
कभी रात को रेहन रख जाता 
कभी पुरवाई सा मचल जाता 
कभी खेलों मे बदल जाता
कभी छुपन छुपाई का रंग दिखाता 
कभी चारपाई पर रात मे तारे गिनता 
कभी सप्तॠषियों को ढूँढता 
कभी हाथों से पंखा झलता 
कभी पुरों के नाम गिनता
कभी अंताक्षरी चुटकुलों की महफ़िलें सजतीं 
कभी लडाइयों की महाभारत होती 
ये छत के मौसम जब भी बदलते 
जीवन मे नये रंग भरते
मिट्ने की कगार पर हूँ
हाँ ....मै इंतज़ार मे हूँ 

कभी ईमारत बुलंद थी नक्शा बताता है
दरो दीवार की मजबूती भी दिखाता है 

उम्र के आखिरी पड़ाव पर 
अपनी जर्जर अवस्था में वीराना 

कभी आबाद था जो आशियाना
आज बना है देखो वीराना

यादों के ठीकरों पर वक्त की कैसी साजिश हुई
जो कल तक मेरा था रूहों का वहाँ डेरा हुआ 

अब यादों के पुलों पर ही बसेरा होगा
यहाँ न अब चिडियों का डेरा होगा

कभी ईमारत बुलंद थी नक्शा बताता है
दरो दीवार की मजबूती भी दिखाता है 

आने वाले को जाना होगा 
बस तस्वीरों में ही ठिकाना होगा 

कहो अपनी क्या पहचान दूँ
आज हूँ कल रहूँ ना रहूँ 

मुस्कुराया था कभी यहाँ भी जीवन
आज खुद मिटने की कगार पर हूँ

देख लो आज हमको जी भर के
कोई आता नही है फिर मर के

उखडी पपडियाँ , उडा रंग रोगन
रहता था कभी यहां भी जीवन

इमारत आज भी अहसास कराती है
कभी बुलन्द रही होगी इमारत 

उम्र के आखिरी पडाव पर भी बुलन्दी का अहसास कराती हैं
सीढियाँ जो घर को जाती हैं 

दहलीज
देखी जिसने हर रंगत

ये है मेरा घर जहां बीता मेरा बचपन ………कभी जहाँ महफ़िलें सजती थीं  चहल पहल होती थी  अपने पराये का  भेद ना था  आज वीरान हो चुका है ……200 साल पुराना है ये घर जो अब जल्द ही बिक जायेगा ………सब छोड कर जा चुके मगर उन यादों का क्या करूँ इसलिये समेट लायी अपने साथ तस्वीरों मे …………कल बन जायेगी यहाँ नयी इमारत नामो निशान मिट जायेगा बस घर का नम्बर नही बदल पायेगा सिर्फ़ बाकी यही निशान रह जायेगा

यूँ तो जिस दिन बाऊजी छोड कर गये उसी दिन पीहर छूट गया था मगर अब तो निशान भी बाकी नही रहेगा ……ऐसे मे अश्रुपूरित मन यही तो कहेगा

बाबुल मेरो नैहर छूटो ही जाये


39 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तस्वीरों के साथ टेक लगाकर भाव बैठ गए हैं ...

vandana gupta ने कहा…

@रश्मि प्रभा जी जब तस्वीरों से ये हाल है तो समझ सकती हैं जो हम पे है गुजरी हमी जानते हैं :(

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

संस्मरण के रूप में दिया गया फोटोफीचर बहत ही मार्मिक है।
यही वो धरोहर होती हैं जिनको भुलाया नहीं जा सकता।

Shah Nawaz ने कहा…

आपके अहसासों का कुछ हिस्सा तो हमारे भी नसीब में था.... यह पोस्ट देखकर आपके कुछ-कुछ अहसास हम तक भी पहुच गए....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

ऐसे ही अपने ननिहाल की तस्वीर हमने भी सहेज ली है.................
जब रिश्ते ना सहेज सके तो तस्वीर ही सही...यादें ही सही.....

मन भीग गया वंदना जी....

अनु

kshama ने कहा…

Kuchh yaden mitaye nahee mittee....kuchh dard bhulaye nahee bhoolte....behad sundar rachana!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

दिल की बात
आसान अल्फ़ाज

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यादें पाइबस्त हैं हर चित्र के साथ ... बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण

shikha varshney ने कहा…

उफ़...समझ सकते हैं आपके दिल पर क्या गुजरी होगी ..

संध्या शर्मा ने कहा…

ये वो जगह जो कभी भुलाये ना भूलेगी, ईमारत मिट जाये तो क्या यादों में हमेशा बुलंद रहेगी... मार्मिक अभिव्यक्ति ...

Ramakant Singh ने कहा…

khubsurat yaden.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सिर्फ यादे रह जाती है,,,,,
फोटो फीचर के साथ बहुत यादगार मार्मिक प्रस्तुति,,,,

MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

शब्द और चित्र मन को छू गए..... भावुक करती पोस्ट

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही भावुक करता संस्मरण |

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट 24/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा - 889:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

vijay kumar sappatti ने कहा…

bahut kuch yaad dila gaya vandna ..man kahi apne ghar me kho gaya ..aur sach kahun to aankhe bheeghi gayi hai , apne puraane ghar kee yaad me.

वाणी गीत ने कहा…

परिवर्तन ही जीवन का नियम है ..तस्वीरों में हमेशा ताजा रहेंगी यादें !

sonal ने कहा…

:-(

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बचपन कभी नहीं छूटता ... यादें ताज़ा रहती हैं ... धर बिक जाते अहिं टूट जाते हैं पर यादों कों कौन छीन सकता है ... मार्मिक पोस्ट ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपका घर देखकर अपना घर याद आ गया..

Kailash Sharma ने कहा…

यादों की गली से गुजरते आँखें नम हो गयीं..बहुत मर्मस्पर्शी...

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

भावुक कर रही है रचना..जीवन से जुडी चीजों का यु मिटना बहुत सालता है... चित्र भी अपनी कहानी कह रहे हैं...

बेनामी ने कहा…

दुःख हुआ जानकार.....पर सच आपने इतनी अच्छी तस्वीरें ली हैं और उस पर शब्दों के माध्यम से जैसे सब कुछ कह दिया.....बहुत सुन्दर।

Saras ने कहा…

आपकी प्रस्तुति देख /पढ़ गला रुंध गया .....वह ग़ुबार उड़ता हुआ ....कुछ मुझे भी छू गया ...!!मर्मस्पर्शी !!!!!

मनोज कुमार ने कहा…

लंबी कविता लिखने में आपको महारत हासिल है। कहीम से भी रोचकता खतम नहीं होती। इस तरह की यादें एक गहरी नदी के समान है और गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है।

M VERMA ने कहा…

बाबुल का गाँव स्मृतियों में रहेगा ..
बहुत भावपूर्ण लिखा है
और फिर चित्र तो मानों आपके मानस के चित्र हों

mridula pradhan ने कहा…

marmik......bhawbhini......

विभूति" ने कहा…

चित्र शब्दों क बयाँ कर रहे है.... या शब्द चित्र को बयाँ कर रहे है.... पर जो भी दिल के सारे एहसास उकेर कर शब्दों में आ गए है......

pran sharma ने कहा…

BAKAUL INDEEWAR -

ZINDGEE KAA SAFAR
HAI YE KAESAA SAFAR
KOEE SAMJHA NAHIN
KOEE JAANAA NAHIN

pran sharma ने कहा…

BAKAUL INDEEWAR -

ZINDGEE KAA SAFAR
HAI YE KAESAA SAFAR
KOEE SAMJHA NAHIN
KOEE JAANAA NAHIN

pran sharma ने कहा…

BAKAUL INDEEWAR -

ZINDGEE KAA SAFAR
HAI YE KAESAA SAFAR
KOEE SAMJHA NAHIN
KOEE JAANAA NAHIN

Kunwar Kusumesh ने कहा…

मार्मिक अभिव्यक्ति .

Anjani Kumar ने कहा…

एक बार पढ़ना शुरु किया तो फिर अन्त में जाकर रुका....जैसे किसी फिल्म की रील चल रही हो
a great manifestation of nostalgia

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

वक़्त की नदी जाने क्या क्या बहा ले जाती है...
यादों का तूफ़ान समेटे सम्वेदनशील प्रस्तुति... हर फोटो इतिहास बता रहा है...
सादर.

Madhuresh ने कहा…

बहुत पुराना घर है.. वाकई अनगिनत यादें जुडी होंगी.. और इन चित्रों और पंक्तियों में भाव भी अच्छे उकेरे हैं...
सादर

राहुल ने कहा…

हम समझ सकते हैं आपकी तड़प....

lori ने कहा…

कितनी यादें लिपट के रोती हैं
जब कोई शख्स घर बदलता है.....

lori ने कहा…

कितनी यादें लिपट के रोती हैं
जब कोई शख्स घर बदलता है.....

राकेश कुमार ने कहा…

I ghar ki mitti ko mera naman...