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गुरुवार, 10 मई 2012

तो फिर तुम्हे कैसे निर्वस्त्र कर दूँ।

  पता है
कभी कभी क्या होता है
जब भी तुम्हे
तुम्हारे ख्याल
तुम्हारी बातें
कविता मे उतरती हैं
यूँ लगता है
जैसे मेरी चोरी
किसी ने पकड ली हो
तुम
जो सिर्फ़ मेरे हो
मेरी अमानत
मेरी मोहब्बत की इंतहा
जिसे सिर्फ़ मै ही
पढ सकती हूँ
मै ही लिख सकती हूँ
और मै ही जिसमे उतर सकती हूँ
उसे जैसे किसी ने
चौराहे पर खडा कर दिया हो
नीलामी के लिये
और तुम जानते हो ना
मै तुम्हारी बोली लगते नही देख सकती
जानते हो ना
तुम्हारा सौदा मुझे मंजूर नही
यहाँ तक कि अपनी
परछाईं से भी नही बांट सकती तुम्हे
फिर कहो कैसे
धडकनें यूँ बेआबरू हो जाती हैं
कि हर आईने मे नज़र आती हैं
देखो
तुम यूं ना आया करो
कवितायें तो सिर्फ़ कागज़ी होती हैं
ख्यालों की तहरीर
मगर तुम
तुम सिर्फ़ तहरीर नही
तुम कविता नही
तुम कोई सामान नही
तुम तो बस मेरी
रूह मे बजता वो संगीत हो
जिसकी धुन पर मेरी
ज़िन्दगी थिरकती है
जिसकी ताल पर मेरा
वजूद सांस लेता है
जिसकी सांस के साथ
मेरी सांस चलती है
तो बताओ तो ज़रा
कभी सांस भी सांस से जुदा हुई है
या सांसो को किसी ने देखा है
तो फिर तुम्हे कैसे निर्वस्त्र कर दूँ।

31 टिप्‍पणियां:

शिवा ने कहा…

वंदना जी बहुत सुंदर कविता ......

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह.......................

बहुत सुंदर वंदना जी.................
कितने सुंदर एहसासों से सजायी आपने ये कविता.......

बहुत अच्छी लगी हमें.....

अनु

HAKEEM YUNUS KHAN ने कहा…

उम्दा ख़याल .

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

कभी सांस भी सांस से जुदा हुई है
या साँसों को किसी ने देखा है
तो फिर तुम्हें कैसे निर्वस्त्र कर दूँ |
आपकी मोहब्बत की इंतहा झलक रही है .... !!

omiyk ने कहा…

अनछुई समवेदनाओं का अनुपम चित्रण, बहुत सुंदर। प्रेम की पराकाष्ठा। हमारी हार्दिक शुभ कामनाएँ।

omiyk ने कहा…

बहुत सुंदर, प्रेम की पराकाष्ठा एवं अनछुई संवेदनाओं का अनुपम चित्रण है आपकी कविता मेन। वंदना जी हमारी हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत खयाल को ले कर बुनी रचना ...

ZEAL ने कहा…

BEAUTIFULLY EXPRESSED...AWESOME CREATION !

shikha varshney ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन ख्याल और खूबसूरत ताना बाना.

Aruna Kapoor ने कहा…

सुन्दर मनोभाव....सुन्दर अभिव्यक्ति!

बेनामी ने कहा…

गहन सोच और अन्दर कुछ उधेड़बुन के साथ चलती ये पोस्ट शानदार लगी।

शेखचिल्ली का बाप ने कहा…

jawani to diwani hoti hi he.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तुम सिर्फ़ तहरीर नही
तुम कविता नही
तुम कोई सामान नही
तुम तो बस मेरी
रूह मे बजता वो संगीत हो
जिसकी धुन पर मेरी
ज़िन्दगी थिरकती है... लरजते एहसास

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

विचारों का अन्तर्द्वन्द!

Saleem Khan ने कहा…

कविता का भाव अच्छा है.

वंदना जी मुआफ़ी चाहूँगा कि मैं आपकी कवितायेँ पढता तो हूँ मगर कमेन्ट नहीं दे पाता. इंशाअल्लाह अब मसरूफियत से थोड़ी छुट हासिल होते ही अपनी अभिव्यक्ति आपके ब्लॉग पर अवश्य दिया करूँगा !

आपका छोटा भाई !

सलीम ख़ान
www.zindagikiaarzoo.blogspot.in

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

prem को अभिव्यक्त करती हुई खूबसूरत कविता .

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

आपकी पोस्ट मे दम है.

virendra sharma ने कहा…

अनुभूति से सहज निसृत झरने सी बहती है यह कविता .बधाई स्वीकार करें .
कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर

http://veerubhai1947.blogspot.in/2012/05/blog-post_09.html#comments

yashoda Agrawal ने कहा…

कल 012/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .

धन्यवाद!

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन और अदभुत अभिवयक्ति....

Kailash Sharma ने कहा…

लाज़वाब अहसास...बहुत भावमयी प्रस्तुति...

सत्य गौतम ने कहा…

सुन्दर शब्द योजना .

Ramakant Singh ने कहा…

beautiful lines with deep feelings and flowless emotions.

Onkar ने कहा…

bahut sundar kriti

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

तुम सिर्फ़ तहरीर नही
तुम कविता नही
तुम कोई सामान नही
तुम तो बस मेरी
रूह मे बजता वो संगीत हो
जिसकी धुन पर मेरी
ज़िन्दगी थिरकती है...

विचारों का अन्तर्द्वन्द करती बेहतरीन पोस्ट ,...

MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

मनोज कुमार ने कहा…

एक आध्यात्मिक सोच लिए हुए सांसारिक कविता।
आदमी जब खुद को बे-परदे के देख ले तो समझो वो हासिल हो गया।

mridula pradhan ने कहा…

behad khoobsurat.....

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

.


तुम सिर्फ़ तहरीर नही
तुम कविता नही
तुम कोई सामान नही
तुम तो बस मेरी
रूह मे बजता वो संगीत हो
जिसकी धुन पर मेरी
ज़िन्दगी थिरकती है
जिसकी ताल पर मेरा
वजूद सांस लेता है
जिसकी सांस के साथ
मेरी सांस चलती है



बहुत ख़ूब !
वंदना जी
बहुत सुंदर !

देह से इतर सोचना - स्वीकारना होता है निःसंदेह !
प्रिय के अस्तित्व को महत्व न दे वहां प्रेम कहां ! संबंध कहां ?!
हाथ बढ़ा कर थामना होता है रिश्ते को !
जिन जिन की समझ में अपरिपक्वताजनित स्वार्थपरकता होती है वहीं संबंधों में दरार और असंतुष्टि पाई जाती है …

रचना दीक्षित ने कहा…

कवितायें तो सिर्फ़ कागज़ी होती हैं
ख्यालों की तहरीर
मगर तुम
तुम सिर्फ़ तहरीर नही.

यह तहरीर लेकिन बहुत उम्दा है. मुबारकबाद.

Shanti Garg ने कहा…

बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लिखा है, सुन्दर रचना!
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.

माँ के लिए ये चार लाइन

ऊपर जिसका अंत नहीं,
उसे आसमां कहते हैं,
जहाँ में जिसका अंत नहीं,
उसे माँ कहते हैं!

****************
माँ है मंदिर मां तीर्थयात्रा है,
माँ प्रार्थना है, माँ भगवान है,
उसके बिना हम बिना माली के बगीचा हैं!

संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी

आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
आपका
सवाई सिंह{आगरा }