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गुरुवार, 3 मई 2012

अभी तो तुमने सिर्फ शुक्ल पक्ष देखा है

अभी तो तुमने
सिर्फ शुक्ल पक्ष देखा है
उजाला पाक कहते है ना
जिसमे सब हरा ही हरा
नज़र आता है
महबूब का हर रंग
खूब नज़र आता है
मगर अभी तुमने
कृष्ण पक्ष तो देखा ही नहीं
जिसमे अमावस भी आती है
और चन्द्रमा की चाँदनी पर
श्राप सी पड़ जाती है
उसमे कभी देखना
नहीं मिलेगा तुम्हें
उसमे मेरा वजूद
जिसे तुम दिल का
उजाला कहा करते थे
जिसमे तुम एक जीवन
जिया करते थे
जिसमे सिर्फ सुनहरी
मीठी मीठी धूप ही
चमका करती थी
कभी उसे देखना
अंधियारे पक्ष में
सारे महल ढह जायेंगे
वो नींव भी हिल जाएगी
जिस पर ईमारत की
बुलंदी का अहसास होता था
हर पूर्णिमा के बाद
अमावस जैसे आती है
वैसे ही उजाले में छुपे
अँधेरे ही और उन
अंधेरों में छुपे सच ही
ज़िन्दगी का आईना होते हैं
ताकना कभी उस आईने में
सारे सच बदल जायेंगे
और आसमाँ में सिर्फ
काले बादल ही रह जायेंगे
कृष्ण पक्ष में छुपे राज
जानने के लिए एक उम्र भी कम होती है 
और यहाँ तो एक मुद्दत से 
अमावस ने डेरा लगा रखा है 

30 टिप्‍पणियां:

Arun sathi ने कहा…

विचारनीय एवं गंभीर

सारगर्भित..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कुछ लोगों के हिस्से कृष्ण पक्ष ही होता है , शुक्ल पक्ष के लिए तरसते रह जाते हैं .... हाँ शुक्ल से कृष्ण और कृष्ण से शुक्ल पक्ष में जाना अलग अलग अनुभव होगा

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

जीवन के दोनों रंग दिखा दिए आपने... सुन्दर कविता... द्वन्द भी संतुलन भी..

mridula pradhan ने कहा…

badi sunderta se donon 'pakch' ko prastut kar din .....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

कृष्ण पक्ष में छुपे राज जानने के लिए एक उम्र भी कम होती है और यहाँ तो एक मुद्दत से अमावस ने डेरा लगा रखा है,....

जीवन के दोनों रंग दिखाती भावपूर्ण सुंदर रचना,.
बेहतरीन प्रस्तुति,..वंदनाजी,...बधाई

MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

Ramakant Singh ने कहा…

जीवन का रंग ऐसा ही होता है .
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष द्वारा आपने सुन्दर उतार
चदाव को बुझाने का प्रयास किया है .बधाई .

सदा ने कहा…

गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्‍तुति।

बेनामी ने कहा…

कृष्ण और शुक्ल पक्षों के माध्यम से जीवन के स्याह और सफ़ेद का बेहतरीन खाका खींचा है.....शानदार पोस्ट ।

संध्या शर्मा ने कहा…

कृष्ण पक्ष में छुपे राज जानने के लिए एक उम्र भी कम होती है...
जवाब नहीं आपके लेखन का... शब्द-शब्द अनमोल है...बहुत सुन्दर रचना

M VERMA ने कहा…

शुक्ल और कृष्ण पक्ष तो परिवर्तनीय हैं
सुन्दर भाव

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!

Unknown ने कहा…

बेहतरीन रचना |

pran sharma ने कहा…

AAPKEE KAVITA SHRESHTH HAI . JEEWAN
KE DO RANG PADH KAR SUKHAD ANUBHUTI
HUEE HAI .

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

poornima aur amawas ke rango ka lekhs jokha kar diya.

shikha varshney ने कहा…

सुन्दर कविता.

अशोक सलूजा ने कहा…

बहुतों को बहुत कुछ कह रही है ...आप की ये पोस्ट ...\शुभकामनाएँ!

एक अपील ...सिर्फ एक बार ?

मनोज कुमार ने कहा…

काले बादल छट भी जाएंगे।

***Punam*** ने कहा…

विरोधाभास जीवन के लिए ज़रूरी है.....!
अमावस्या के बाद ही पूर्णिमा भी आती है बहना....!!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सूचनार्थ: ब्लॉग4वार्ता के पाठकों के लिए खुशखबरी है कि वार्ता का प्रकाशन नित्य प्रिंट मीडिया में भी किया जा रहा है, जिससे चिट्ठाकारों को अधिक पाठक उपलब्ध हो सकें। 

Human ने कहा…

अदभुत रूप से अपने भावोँ को शब्दबद्ध किया है आपने । अभी मोबाइल पर हूँ फिर भी एक कोशिश दादस्वरूप - अंधेरोँ की उड़ान उजालोँ तक है तो उजालोँ की अंधेरे क्या ? महसूस करके ताजगी सोचती हैँ किरणेँ सवेरे क्या । मानस पटल पर खीचीँ कल्पना की रेखा समुन्दर की रेत जैसी सही पर रेत तो नहीँ होती । रेत फिर समुन्दर मेँ मिल जानी है पर कल्पना तो लिख जानी है ।कल्पना के वजूद से ही भावनाएँ है,शब्द हैँ ।और कल्पना सबसे ज्यादा तब चमकती है जब अंधेरोँ मेँ ताजगी पाती है ।

केवल राम ने कहा…

जीवन के दोनों पक्षों को समेटे यह रहना बेहतरीन है ......प्रेम भी और द्वंद्व भी ..!

sangita ने कहा…

एक विचार आता है और कविता बन जाता है भावभीनी पोस्ट ।मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के कम से कम दिन तो निर्धारित होते हैं लेकिन ज़िंदगी मेँ न जाने कितनी लंबी अमावस हो और कितने उजले दिन ... सुंदर प्रस्तुति

virendra sharma ने कहा…

Your poetic expression depicts dailectical MATERIALISM ,dilema.BHAUTIK DVANDV .
good expression .Thanks.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन की रातें कहाँ किसी को दिखायी पड़ती हैं, प्रभावी कविता

हरीश जयपाल माली ने कहा…

सत्य की साक्षी सी लगती है रचना दीदी जी...
एक लम्बे अरसे के बाद आपकी दुनिया में भ्रमण कर पाया हूँ....

Rakesh Kumar ने कहा…

वाह रे कृष्ण पक्ष.
आपका कान्हा काला,काली रात में आया
तो सब कुछ काला ही काला.

कृष्ण ही दीखे सब ओर,तो फिर शुक्ल पक्ष
हो या कृष्ण पक्ष,क्या फर्क पड़ता है.

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया रचना ...
शुभकामनायें आपको !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दोनों पक्षों का अपना आनद और दुःख है ... बस अपने अपने हिस्से की बात है ..

Saleem Khan ने कहा…

As usual superhit!!!