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शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

आखिर रुखसती के भी अपने रिवाज़ होते हैं……

आज एक धडकन तुम्हारे नाम गिरवीं रख रही हूँ
देखो ज़रा संभाल कर रखना अमानत मेरी
बस उस दिन लौटा देना जब रुखसत होउँ जहाँ से
मेरी चिता पर आखिरी आहुति दे देना
बस उस धडकन पर अपना नाम लिखकर
कोई ज्यादा कीमत तो नही मांगी ना ………
आखिर रुखसती के भी अपने रिवाज़ होते हैं……

39 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

अरे ये क्या है???? बिलकुल मैच नही कर रहा आपके ब्लॉग से :(

कविता रावत ने कहा…

कोई ज्यादा कीमत तो नही मांगी ना ………
आखिर रुखसती के भी अपने रिवाज़ होते हैं…

...कितने ही रिवाजों की बीच आखरी में रुखसती का रिवाज भी निभाना भी पड़ता है,,,,,,,,,
मर्म स्पर्शी भाव.,,,

Prakash Jain ने कहा…

kya khoob maang ki hai....heartfull

www.poeticprakash.com

mridula pradhan ने कहा…

kya kahoon kya na kahoon......awaak hoon......

Pallavi saxena ने कहा…

sach main kya kahun kya na kahun meri bhi samajh men nahi araha hai :-)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दुखी करती पंक्तियाँ।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

मर्मस्पर्शी !

kshama ने कहा…

Aapne to ekdam nishabd kar diya!

Arvind Mishra ने कहा…

गहन भावपूर्ण

संगीता पुरी ने कहा…

अभिव्‍यक्ति तो अच्‍छी है .. रिवाज के हिसाब से चलना ही पडता हैं !!

Onkar ने कहा…

मन को उद्वेलित करने वाली कविता

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर!
--
कल के चर्चा मंच पर, लिंको की है धूम।
अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अभी से रुखसत होने की बात कहाँ से आ गई जी ?

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

iss kya hai ye??
itna dard Vandana ke saath jam nahi raha
super dislike!

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

sach kaha rukhsati ke bhi aakhir apne riwaj hote hain.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हम्म ... अभी तो कहीं लिखा था आग हथेली पर लिए फिरते हैं :)

आज कल रिवाज़ तोड़ दिए जाते हैं ..

संध्या शर्मा ने कहा…

आखिर रुखसती के भी अपने रिवाज़ होते हैं…

रिवाज़ रुखसती के बहुत ही मर्म स्पर्शी भाव.... पवित्र प्रेम की परकाष्ठा...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मर्मस्पर्शी भाव......

Arun sathi ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति,
भावपूर्ण.
मर्मस्पर्सी

Gyan Darpan ने कहा…

मर्मस्पर्शी

Gyan Darpan
RajputsParinay

Unknown ने कहा…

सुन्दर रचना.

रविकर ने कहा…

रवि को रविकर दे सजा, चर्चित चर्चा मंच

चाभी लेकर बाचिये, आकर्षक की-बंच ||

रविवार चर्चा-मंच 681

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

बस मेरी चिता पर आखिरी आहुति दे देना
बस उस धड़कन पर अपना नाम लिख कर
आपने बहुत बड़ी कीमत तो नहीं मांगी... !
हिम्मत जबाब देजाये ऐसा रिवाज माँगा.... !!

Maheshwari kaneri ने कहा…

मर्मस्पर्शी भाव.....

***Punam*** ने कहा…

आपके साथ हमारी भी दुआ कुबूल हो...

बेनामी ने कहा…

शानदार प्रस्तुति........बहुत सुन्दर|

Kailash Sharma ने कहा…

आखिर रुखसती के भी अपने रिवाज़ होते हैं……

बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...अंतस को गहराई तक छू गयी...आभार

मनोज कुमार ने कहा…

ख्वाहिशें भी कुछ अलग सी होनी चाहिए, क़बूल हो तो बात क्या है!

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

चौंकानेवाली पोस्ट |निहितार्थ अबूझ सा लगा |

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

रुखसती के भी अपने रिवाज होते हैं....

गहन अर्थों को अभिव्यक्त करती अच्छी कविता।

प्रेम सरोवर ने कहा…

आपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

कुछ अलग सा अनदेखा/अबूझा. गहनाभिव्यक्ति...
सादर...

Udan Tashtari ने कहा…

ओह!!!

अनुपमा पाठक ने कहा…

मर्मस्पर्शी!

आशा बिष्ट ने कहा…

marmsparshi...kathan...
aap mujhse judi apka abhar....
aapke blog se jud kar aisa laga jaise akhir kar manjil mil gayi..tahedil se shukriya..

सदा ने कहा…

भावमय करते शब्‍द ।

कुमार राधारमण ने कहा…

हां,प्रेम का सिला प्रेम हो,तो प्रेम को भी अपनी सम्पूर्णता में घटने का मौक़ा मिले!

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

आखिर रुखसती के भी अपने रिवाज़ होते हैं…

very touching....

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

bhavpurn panktiya...