एक हसरत के पाँव में
जैसे किसी ने आरजुओं के
घुंघरुओं को बांधा हो
उम्र के लिहाज को
जैसे किसी ने
उच्छंखरल नदी में डाला हो
रिश्ते की करवट ने
जैसे चाँद दिन में निकाला हो
मोहब्बत के चेनाब में
जैसे पक्का घड़ा उतारा हो
कुछ ऐसे मोहब्बत का धुआँ
मेरी रूह में पैबस्त हो गया है
बताओ तो अब सुलगने को क्या बचा ?
जैसे किसी ने आरजुओं के
घुंघरुओं को बांधा हो
उम्र के लिहाज को
जैसे किसी ने
उच्छंखरल नदी में डाला हो
रिश्ते की करवट ने
जैसे चाँद दिन में निकाला हो
मोहब्बत के चेनाब में
जैसे पक्का घड़ा उतारा हो
कुछ ऐसे मोहब्बत का धुआँ
मेरी रूह में पैबस्त हो गया है
बताओ तो अब सुलगने को क्या बचा ?
32 टिप्पणियां:
नि:शब्द करती अभिव्यक्ति ...बहुत खूब ।
bahut sunder bhav ............
bahut sunder bhav ...........
बहुत ही ख़ूबसूरत...मुस्कान आ गई पंक्तियाँ पढ़कर...
फिर भी जीवन में कुछ तो है, हम थकने से रह जाते हैं।
ये आंच उम्र भर सुलगती रहेगी ...
गहरा लिखा है बहुत ही ...
बहुत सुन्दर......कुछ नए लफ्ज़ .......मुहब्बत का धुंआ.......वाह .........हमारे ब्लॉग पर भी तशरीफ़ लाये वंदना जी |
प्रवीण जी की बात से सहमत ..कुछ तो है अभी :):) सुन्दर अभिव्यक्ति
मोहब्बत का धुआं रूह में बसा रहे , और क्या चाहिए ।
बहुत ही सुंदर रचना.
रामराम.
चंद आंसू नहीं रहे खुद पे बहाने के लिए .....वाह !
behtreen rachna....
मोहब्बत के चेनाब में
जैसे पक्का घड़ा उतारा हो
....जब पक्का घड़ा साथ हो तो मोहब्बत का चेनाब पार हो ही जाएगा...बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
आपको हमारी ओर से
सादर बधाई ||
बहुत सुंदर ..
बेहतरीन..बेहतरीन निःसंदेह बेहतरीन कविता से नवाज़ा है आपने इस ब्लॉगजगत को आपकी काव्यधारा को निरंतर प्रवाह मिले शुभकामनाये
चर्चा में आज नई पुरानी हलचल
बताओ तो अब सुलगाने को बचा क्या है?
बहुत सुंदर रचना. सुंदर अभिव्यक्ति. इस जीवन के रहस्य को समझना आसान नहीं.
गज़ब की आग दिख रही है..!
@बताओ तो अब सुलगने को क्या बचा
अनुपम भावों की उत्कृष्ट प्रस्तुति।
बहुत ही ख़ूबसूरत..
रचना में कुछ ऐसा है जो सोचने को विवश करता है।
मोहब्बत के चेनाब में
जैसे पक्का घड़ा उतारा हो
कुछ ऐसे मोहब्बत का धुआँ
मेरी रूह में पैबस्त हो गया है
बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
शब्दों और भावों का बेजोड़ संगम.
सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
आभार
.....मोहब्बत के चेनाब में
जैसे पक्का घड़ा उतारा हो
कुछ ऐसे मोहब्बत का धुआँ....
जाने कैसी कशिश है इस नज़्म में....
जाने क्यूँ पढ़ते हुए अमृता प्रीतम जी याद आती रहीं....
बहुत प्रभावी, बाँध ले रही है पंक्तियाँ...
सादर बधाई....
मन को छू गई आपकी रचना.
बहुत सुंदर रचना ! आती रहूंगी
आभार आपका ....
बेहतरीन कविता ... सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
बेहतरीन रचना..... सभी ने इतना कुछ लिख दिया है आपकी इस पोस्ट पर की अब नया कुछ कहने को रहा ही नहीं... :)
सहज अभिव्यक्ति प्रवाहमय सुन्दर रचना....
आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
जय माता दी..
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