एक मुद्दत हुई
ज़माने से मिले
कब से मन के तिलिस्म में
कैद कर लिया वजूद को
मन पंछी ने उड़ना भी छोड़ दिया
अब तो शायद पंख भी झड़ चुके हैं
वक्त की दीमक सब चाट चुकी है
बाहर का शोर भी बाहर ही रह जाता है
जैसे किसी साऊंड प्रूफ घर में
कोई अजनबी सारी मिलकियत दबाये
अपनी हसरतों के साथ रह रहा हो
कोई दरवाज़ा खटखटाए तो भी
अन्दर आवाज़ नहीं आती
आवाज़भेदी दरवाज़ों के साथ
प्रतिबिम्बरोधी दीवारें मन
के तिलिस्म की मजबूत
मीनारें बनी हैं
अब तो चाहकर भी उड़ ना पायेगा
जहाँ हवा का भी प्रवेश वर्जित हो
वहाँ उड़ान कैसे संभव हो
मगर पता नही क्यों
आज इस तिलिस्म में दफ़न वजूद
बाहर की दुनिया का
तसव्वुर करने को बेचैन हो गया
लेकिन डरता है
कोई उसे जान सकेगा?
पहचान पायेगा ?
एक मुद्दत हुई ज़माने की
आहटों को सुने
और जैसे ही अपनी चाहत को
मन ने असलियत का जामा पहनाया
और मन को ज़माने की
धारा में प्रवाहित किया
कैसा विकल हुआ
यहाँ तो कोई चेहरा
कोई राहगीर
कोई नक्श ना अपना हुआ
हर तरफ , हर दीवार पर सिर्फ
एक नो एंट्री का बोर्ड दिखा
तो क्या सभी ने अपने
मनो में एक तिलिस्म बनाया है
और ज़माने के दस्तूर को भांप
मन ने वापस अपनी खोह में
आसान जमाया
समाधि से कभी ना वापस आने के लिए
आखिर अखंड समाधियाँ यूँ ही नहीं लगा करतीं
ज़माने से मिले
कब से मन के तिलिस्म में
कैद कर लिया वजूद को
मन पंछी ने उड़ना भी छोड़ दिया
अब तो शायद पंख भी झड़ चुके हैं
वक्त की दीमक सब चाट चुकी है
बाहर का शोर भी बाहर ही रह जाता है
जैसे किसी साऊंड प्रूफ घर में
कोई अजनबी सारी मिलकियत दबाये
अपनी हसरतों के साथ रह रहा हो
कोई दरवाज़ा खटखटाए तो भी
अन्दर आवाज़ नहीं आती
आवाज़भेदी दरवाज़ों के साथ
प्रतिबिम्बरोधी दीवारें मन
के तिलिस्म की मजबूत
मीनारें बनी हैं
अब तो चाहकर भी उड़ ना पायेगा
जहाँ हवा का भी प्रवेश वर्जित हो
वहाँ उड़ान कैसे संभव हो
मगर पता नही क्यों
आज इस तिलिस्म में दफ़न वजूद
बाहर की दुनिया का
तसव्वुर करने को बेचैन हो गया
लेकिन डरता है
कोई उसे जान सकेगा?
पहचान पायेगा ?
एक मुद्दत हुई ज़माने की
आहटों को सुने
और जैसे ही अपनी चाहत को
मन ने असलियत का जामा पहनाया
और मन को ज़माने की
धारा में प्रवाहित किया
कैसा विकल हुआ
यहाँ तो कोई चेहरा
कोई राहगीर
कोई नक्श ना अपना हुआ
हर तरफ , हर दीवार पर सिर्फ
एक नो एंट्री का बोर्ड दिखा
तो क्या सभी ने अपने
मनो में एक तिलिस्म बनाया है
और ज़माने के दस्तूर को भांप
मन ने वापस अपनी खोह में
आसान जमाया
समाधि से कभी ना वापस आने के लिए
आखिर अखंड समाधियाँ यूँ ही नहीं लगा करतीं
35 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार
बेहतरीन.
---------
कल 20/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत खूब कहा है आपने ।
वाह वंदना जी,
आपकी सोच की तह तक पहुंचना बहुत मुश्किल है !
एक नई सोच के साथ यह कविता मन के कोनो को अभिसिंचित कर गयी !
आभार !
समाधि ही समाधि ||
समाधियों की
कतारें
अनवरत गिनते जाइए||
कुछ लगी कुछ लगाईं गईं |
बहुत सी मिटी कुछ गायी गईं ||
देखिये वो मिट रही समाधि--
हलचल है हलकी सी ||
बधाई ||
सुन्दर प्रस्तुति ||
सुन्दर अभिव्यक्ति
वाह ...बेहतरीन लिखा है.समाधियां ऐसे ही तो नहीं लगा करतीं.
बहुत सुन्दर रचना!
लिंक देने के लिए आभार!
... प्रसंशनीय रचना, बधाई !!
बहुत ही गम्भीर अभिव्यक्ति!!
बहुत ही सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किये हैं भाव...
waha bahut hi khub...padha ka accha laga ...........aabhar
kuch panktiyan amar hain!!
kya bat hai
bahut khub
wah.ekdam gazab ka......
बहुत खूब!"तो सभी ने अपने मन मे क्या एक तिलिस्म बनाया है।……………समाधि से कभी वापस न आने के लिये………क्या भाव हैं!!!!! सुंदर अभिव्यक्ति!
आज इस तिलिस्म में दफ़न वजूद
बाहर की दुनिया का
तसव्वुर करने को बेचैन हो गया
लेकिन डरता है
कोई उसे जान सकेगा?
पहचान पायेगा ?
खूब कहा आपने समाधियाँ अखंड ही होती है, अभिव्यक्तिओं का गहन भाव बधाई
Kaleje me ek nashtar-saa chubho gayee tumharee rachana!
गूढ़ अभिव्यक्ति.बहुत खूब.
dilchasp...abhut khoob..
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी रचना ....
और ज़माने के दस्तूर को भांप
मन ने वापस अपनी खोह में
आसान जमाया
समाधि से कभी ना वापस आने के लिए
आखिर अखंड समाधियाँ यूँ ही नहीं लगा करतीं
क्या गज़ब लिखा है ... द्वंद्व की जगह खाली पण और मौन दिख रहा है ..
बहुत खूब क्या बात है,
साभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
लम्बा मौन अखण्ड समाधि जैसा ही तो है।
kisi paridhi me bandhe hone ki vytha bakhubi darshaya hai aapne...
bahut hi sunder bhavon se saji rachna...bahut bahut badhai..
सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति|
gaharee soca|
aaj bahut gahrayi hai lekhan me wah kya baat hai.
hamesha ki tarah jaandaar...
गहन भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
समाधि से कभी ना वापस आने के लिए
आखिर अखंड समाधियाँ यूँ ही नहीं लगा करतीं
गहरी सोच... भावपूर्ण अभिव्यक्ति.... गजब का शब्द संयोजन...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार
ek bahut badhiya rachna
यह जीवन विविध समाधियों का समुच्चय ही तो है।
एक श्रेष्ठ कविता।
एक टिप्पणी भेजें