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मंगलवार, 17 मई 2011

मगर राखों के कोई अर्थ नही होते

जले हुये कागज़ की चिंदियाँ
और उस पर कुछ अधजले लफ़्ज़
अपने अर्थ से परे
एक नया अर्थ देते हुये
एक नयी खोज को
आयाम देते हुये
उस लफ़्ज़ के
अर्थ ढूँढते कुछ पल
एक ही क्षण मे
मटियामेट हो जाते हैं
जैसे ही छूने की
कोशिश करो
सब भुरभुरा जाते हैं
और रह जाती है
सिर्फ़ राख
सारे अर्थ अपना
वजूद खो बैठते हैं
वो जो उसके असली
अर्थ थे और
वो भी जिसके अर्थ
निकाले जा रहे थे
मगर राखों के
कोई अर्थ नही होते

36 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जैसे ही छूने की
कोशिश करो
सब भुरभुरा जाते हैं
और रह जाती है
सिर्फ़ राख

शब्दों के अर्थ तो चस्पां हो जाते हैं ज़ेहन में राख करना भी चाहो तो उडती रहती है एक आंधी ...
गर खो देते वजूद तो आज यह रचना कैसे बनती ? बहुत सुन्दर प्रस्तुति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह...!
आज तो रचना में जीवन का पूरा दर्शन समेट दिया!
शरीर भी तो अन्त में राख ही होना है।
जिसका कोई अर्थ नहीं होता!

shikha varshney ने कहा…

यूँ देखो तो राख का भी वजूद होता है.बस हम उसे इग्नोरे कर देते हैं राख समझ कर .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

sahi khaa raakh me kai logon ke vujud nsht hue pdhe hain bhtrin rchna ke liyen bdhaai . akhtar khan akela kota rajsthan

Unknown ने कहा…

सारे अर्थ अपना
वजूद खो बैठते हैं
वो जो उसके असली
अर्थ थे और
वो भी जिसके अर्थ
निकाले जा रहे थे
मगर राखों के
कोई अर्थ नही होते

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत प्रभावी प्रस्तुति...बहुत सुन्दर

Rajesh Kumari ने कहा…

har cheej ka ant raakh hi hota hai.jiska koi arth nahi rah jaata.bahut gahan bhaav prakat kar rahi hai aapki yeh rachna.laajabab.

बेनामी ने कहा…

सुभानाल्लाह,..........बहुत गहरी बात .........हैट्स ऑफ

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

waah waah waah

Maheshwari kaneri ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति सुन्दर प्रस्तुति है।अभिव्यंजना मे स्वागत है, आप का......

मनोज कुमार ने कहा…

लाजवाब! राख को उपमा बना कर आप ने एक दर्शन रख दिया है काव्य के माध्यम से।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

न जाने जले लफ्जों में क्या लिखा था?

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

उन अर्थों को कैसे खोजा जाये? ये वही न हुआ की जीवन आखिर रख ही हुआ न और उसके बाद अस्तित्वहीन. जब तक मूर्त रूप है उसका अर्थ है और राख तो बिना भेदभाव के उड़ाती है किसी की भीहो.

बेनामी ने कहा…

Vandna G,,,,
aapka likha hume bahut accha lagta hai,,,ase hi likhti rahe ....
hum saath saath hain ....sabhi bahi bandhu

***Punam*** ने कहा…

जले हुए कागज़ पर लिखे लफ्ज़
भले ही अपना वजूद खो दें
फिर भी वो मौजूद रहते हैं
कहीं न कहीं हमारे
दिलोदिमाग में
अपना अर्थ खोजते हुए !!

अर्थपूर्ण प्रस्तुति..

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

जैसे ही छूने की
कोशिश करो
सब भुरभुरा जाते हैं
और रह जाती है
सिर्फ़ राख ....
bahut khoobsurat rachna...aabhar

डॉ टी एस दराल ने कहा…

मगर राखों के
कोई अर्थ नही होते

बहुत अर्थपूर्ण बात कही है । बढ़िया ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.धन्यवाद

mridula pradhan ने कहा…

मगर राखों के
कोई अर्थ नही होते
atyant bhawpurn kavita.

M VERMA ने कहा…

सब भुरभुरा जाते हैं
और रह जाती है
सिर्फ़ राख
राख के माध्यम से आपने जिस अंतर्द्वंद को मूर्त रूप दिया है वह बेहद सुन्दर है

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

जैसे ही छूने की
कोशिश करो
सब भुरभुरा जाते हैं
और रह जाती है
सिर्फ़ राख
गहन अभिव्यक्ति..... प्रभावित करती रचना

Arun sathi ने कहा…

khoob

Urmi ने कहा…

वाह! गहरे भाव के साथ बहुत सुन्दर रचना!

रचना दीक्षित ने कहा…

जैसे ही छूने की
कोशिश करो
सब भुरभुरा जाते हैं
और रह जाती है
सिर्फ़ राख्

बहुत सुंदर अकल्पनीय. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

सदा ने कहा…

जैसे ही छूने की
कोशिश करो
सब भुरभुरा जाते हैं
और रह जाती है
सिर्फ़ राख
गहन भावों को समेटे ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

वाणी गीत ने कहा…

भुरभुरे होते शब्द भी हाथों में कुछ निशाँ तो छोड़ ही जाते हैं , गंध ही सही !

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|

amit kumar srivastava ने कहा…

हमेशा की तरह सीधे दिल में उतरने वाली रचना ।

बहुत गंभीर भाव समेटे हुए ।

Pawan Kumar ने कहा…

ये शहर भावनाओं से भरी रचना. उम्दा सोच है... बहुत सुन्दर" वाकई राख़ होना भी क्या है ...!!!!! "

रंजना ने कहा…

वाह...

क्या बात कही....

अर्थपूर्ण...बहुत ही प्रभावशाली रचना...

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

चर्चा -मंच पर आपका स्वागत है --आपके बारे मै मेरी क्या भावनाए है --आज ही आकर मुझे आवगत कराए -धन्यवाद !२०-५-११ ..
http://charchamanch.blogspot.com/

वृजेश सिंह ने कहा…

rakhon ka bhi koi arth jarur hota hoga....

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

वो जो उसके असली
अर्थ थे और
वो भी जिसके अर्थ
निकाले जा रहे थे
मगर राखों के
कोई अर्थ नही होते.....


बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

अति सुन्दर ...

चिंतनपरक गहन भावों की सुन्दरतम अभिव्यक्ति...

संजय भास्‍कर ने कहा…

तराशे भावों और सहेजे गए शब्दों में .....बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Amrita Tanmay ने कहा…

अत्यंत भावपूर्ण प्रभावी प्रस्तुति..