याद करो प्रियतम
वो अलबेली शाम
मौसम नमकीन था
उस पर भी शायद
शबाब का नशा
छाया था
जब एक झोंका
मेरी लट से
लिपट आया था
और मेरे कपोलो
पर अपने प्रेम का
बोसा रख आया था
और फिर तुमने उसे
अपने अधरों से हटाया था
एक ताजमहल जज्बातों का
वहीँ उभर आया था
जिसके तुम शाहजहाँ थे
और मुझे अपनी नूरजहाँ बनाया था
और फिर तुमने अपने
बाहुपाश में मौसम की
हर शाख को समेट लिया था
जैसे किसी तपस्वी ने
अपनी सारी तपस्या का
आज फल पा लिया हो
याद है ना प्रियतम
कैसे फिर मौसम के तूफानों ने
हमें घेरा था
कभी शीत सरसराती थी
तो कभी ग्रीष्म की ऊष्मा
झुलसाती थी
ओस की नमी भी
वाष्प बन उड जाती थी
मगर प्रेम अगन ना
बुझ पाती थी
कितना ही चाहे
सावन भिगोता था
मगर वो भी तपन
बढाता था
हृदयों को हुलसाता था
कभी मेघ सम छा जाते थे
कभी तडित सी कोई
चमक जाती थी
कभी सिन्दूरी शाम पर
रात का काजल लगाता था
तो कभी सुरमई सुबह पर
कोई चाँद झिलमिलाता था
वो कैसा सुगन्धित पल था
जब मेरा दामन तुझमे
भीगा जाता था मगर
फिर भी पार ना कोई पाता था
इक दूजे में खोते हम
ब्रह्माण्ड की सैर पर निकले
कभी पहाड़ों की चोटियाँ
आवाज़ देती थीं
कभी घाटियों की गहराइयाँ
खुद में समोती थीं
कभी सागर की
अथाह गहराई मे
हम डूबे जाते थे
कभी नक्षत्र इक दूजे से
टकराते थे
कभी जज्बातों के तारे
टिमटिमाते थे
और कभी बर्फीले बोसे
चहूँ ओर बिखर जाते थे
कभी ध्रुव नये बन जाते थे
और हम कभी एक
ग्रह से दूसरे ग्रह पर
अपने आकाश से
दूजे के आकाश पर
बर्फ के फाहों से
उड़ते जाते थे
मगर फिर भी
पार ना कहीं पाते थे
और हमारे अस्तित्व
इक दूजे में ही
सिमट जाते थे
ना जाने कितनी
खगोलीय घटनाये
साक्षी बनी होंगी
कहाँ कहाँ ना खोजा होगा
उन अनन्त अपार
ऊंचाइयों को
मगर पार ना
पाया होगा
युग परिवर्तन हो
या कल्प बदले हों
तुम और मै
कभी अलग हुये ही नही
स्त्री पुरुष की भूमिका
कभी बदली ही नही
प्रेम कभी नही बदलता
शायद इसीलिए
प्रेम का कोई छोर नहीं होता
वो अलबेली शाम
मौसम नमकीन था
उस पर भी शायद
शबाब का नशा
छाया था
जब एक झोंका
मेरी लट से
लिपट आया था
और मेरे कपोलो
पर अपने प्रेम का
बोसा रख आया था
और फिर तुमने उसे
अपने अधरों से हटाया था
एक ताजमहल जज्बातों का
वहीँ उभर आया था
जिसके तुम शाहजहाँ थे
और मुझे अपनी नूरजहाँ बनाया था
और फिर तुमने अपने
बाहुपाश में मौसम की
हर शाख को समेट लिया था
जैसे किसी तपस्वी ने
अपनी सारी तपस्या का
आज फल पा लिया हो
याद है ना प्रियतम
कैसे फिर मौसम के तूफानों ने
हमें घेरा था
कितने ही चक्रवात
भावनाओं को झिंझोड़ रहे थे
कभी मधुमास दस्तक देता थाकभी शीत सरसराती थी
तो कभी ग्रीष्म की ऊष्मा
झुलसाती थी
ओस की नमी भी
वाष्प बन उड जाती थी
मगर प्रेम अगन ना
बुझ पाती थी
कितना ही चाहे
सावन भिगोता था
मगर वो भी तपन
बढाता था
हृदयों को हुलसाता था
कभी मेघ सम छा जाते थे
कभी तडित सी कोई
चमक जाती थी
कभी सिन्दूरी शाम पर
रात का काजल लगाता था
तो कभी सुरमई सुबह पर
कोई चाँद झिलमिलाता था
वो कैसा सुगन्धित पल था
जब मेरा दामन तुझमे
भीगा जाता था मगर
फिर भी पार ना कोई पाता था
इक दूजे में खोते हम
ब्रह्माण्ड की सैर पर निकले
कभी पहाड़ों की चोटियाँ
आवाज़ देती थीं
कभी घाटियों की गहराइयाँ
खुद में समोती थीं
कभी सागर की
अथाह गहराई मे
हम डूबे जाते थे
कभी नक्षत्र इक दूजे से
टकराते थे
कभी जज्बातों के तारे
टिमटिमाते थे
और कभी बर्फीले बोसे
चहूँ ओर बिखर जाते थे
कभी ध्रुव नये बन जाते थे
और हम कभी एक
ग्रह से दूसरे ग्रह पर
अपने आकाश से
दूजे के आकाश पर
बर्फ के फाहों से
उड़ते जाते थे
मगर फिर भी
पार ना कहीं पाते थे
और हमारे अस्तित्व
इक दूजे में ही
सिमट जाते थे
ना जाने कितनी
खगोलीय घटनाये
साक्षी बनी होंगी
कहाँ कहाँ ना खोजा होगा
उन अनन्त अपार
ऊंचाइयों को
मगर पार ना
पाया होगा
युग परिवर्तन हो
या कल्प बदले हों
तुम और मै
कभी अलग हुये ही नही
स्त्री पुरुष की भूमिका
कभी बदली ही नही
फिर भी अपरिचित
इक दूजे से
जन्म जन्मान्तरों से
अतृप्त प्यास
पूर्णता को पाने को आतुर
हर काल में
सूरज और सूरजमुखी सा
अपना मिलन और विछोह
यही शाश्वत सत्य हैप्रेम कभी नही बदलता
शायद इसीलिए
प्रेम का कोई छोर नहीं होता
52 टिप्पणियां:
वंदना जी सबसे पहले तो आपको २५० वि पोस्ट के लिए बधाई. आप यूँ ही हिंदी ब्लॉग्गिंग की नयी ऊंचाईयों को छुए यही हमारी मंगलकामना है.
अब कविता की बात करे, तो हमेशा की तरह कविता एक नए लोक में ले जाती है और प्रेम के सच्चे सौन्दर्य के दर्शन करवाती है . और ये कौशल सिर्फ आप में ही है .. आपको दिल से बधाई .. वैसे कविता कुछ ज्यादा ही रोमांटिक है जी .... वसन्त का असर अब तक है आपके लेखन में !!!
आदरणीय वंदना जी
नमस्कार !
वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई
.......दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
२५० वि पोस्ट के लिए बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बधाई.......
२५०वीं पोस्ट के लिये हार्दिक बधाई और शुभकामना है कि आपकी लेखनी इसी तरह ऊंचाइयों को छूती रहे..
बहुत ही प्रेममयी सुन्दर भावपूर्ण रचना..मन को भाव विभोर कर देती है..आभार
bahut bahut badhai for your 250th post
and bahut hi shandar post hain bahut khoob
250वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें !
सूरज और सूरजमुखी सा मिलन ....
प्रेम की इससे बढ़कर और क्या मिसाल होगी ...
खूबसूरत भावों की अभिव्यक्ति !
sarv pratham 250 post hone par haardk badhaai.vandna ji aapki kalpana ko manna padega.aapke bhaavon ke saath saath mai bhi aage badhti rahi.aapne appar aseem bramh me sair kara di.shrangaar ras ki is kavita ke liya aabhar.
सबसे पहले २५० वीं पोस्ट के लिए बधाई ....
और रचना तो बस कमाल ही है ..बहुत ही प्रेम रस में डूबी हुई ...कोमल एहसासों से भरी हुई ..
प्रेम भावनाओं के छोर को छू लेती रचना॥
कोमल एहसासों को पिरो भाव-विभोर कर देती!!
250वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें !
बधाई बधाई २५० वीं पोस्ट की
और बहुत ही कोमल अहसासों से रची बसी कविता की भी.
...२५० वी पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई हो वंदना!..कविता प्रेम-रस से सराबोर...अति सुंदर है!
बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता भी.
२५० वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई!
सादर
sahi khaa prem kbhi nhin bdaltaa bhtrin andaaz me prstuti ke liyen bdhaai or haan 250 vin post ke liye dbal bdhaai ....akhtar khan akela kota rajsthan
छोर से मुक्त होने के प्रयास में प्रेम में डूब बैठे।
प्रेम कभी नहीं बदलता,
शायद इसलिए
प्रेम का कोई छोर नहीं होता ..।
भावमय करते शब्दों का संगम है यह रचना ।
250 वीं पोस्ट के लिए बधाई!
सच है जो जिसका ओर-छोर हो वो प्रेम नहीं होता......लम्बे सफ़र की शुभकामनायें |
वंदना जी सबसे पहले तो आपको २५० वी पोस्ट के लिए बधाई. आप यूँ ही हिंदी ब्लॉगिंग के शिखर तक का सफ़र तय करें, हमारी शुभकामना है.
यही शाश्वत सत्य है
प्रेम कभी नही बदलता
शायद इसीलिए
प्रेम का कोई छोर नहीं होता...
सूरज और सूरजमुखी सा मिलन ....
आज की रचना... प्रेममयी सुन्दर भावपूर्ण लाजवाब रचना....
" प्रेम कभी नही बदलता
शायद इसीलिए
प्रेम का कोई छोर नहीं होता "
आपकी २५० वीं पोस्ट
आई लाईक इट मोस्ट
मेरी आपको बहुत बहुत बधाईयाँ
नित छुएं आप नई नई ऊचाईयां
प्रेम के रंग में सदा रंगी रहें आप
उनको शाहजहाँ बना
खुद नूरजहाँ बनी रहें आप
Bahut sundar rachana liye hue hai ye 250 vi post! Bahut,bahut badhayee!
२५०वीं पोस्ट के लिये हार्दिक बधाई ..
सूरजमुखी साअपना मिलन और विछोह यही शाश्वत सत्य है|खूबसूरत भावों की अभिव्यक्ति !
२५० वीं पोस्ट की बधाई! सुन्दर भावो की प्रभावी प्रस्तुति है आपकी यह रचना!
Congratulations!
Very nice expressions of an enlightened heart.
२५०वीं पोस्ट की बधाई। भावपूरित कर गई यह रचना।
आपको २५०वीं पोस्ट के लिये हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !
वंदना जी जब कविता सिर्फ शब्द हों तो, टिप्पणी के लिए भी शब्द ढूढने पड़ते हैं, जब वन्दना लिखती हैं तो शब्द प्रवाहित होते हैं ............ विचार मंथन नहीं करते ...... वे बस बरबस छलकते हैं........
ये वन्दना जी की २५० पोस्ट भी है उनके ब्लॉग पर, मैं उनको बधाई नहीं दे रहा हूँ........ बधाई तब दूंगा.......... जब ये सब रचनाएँ एक महाकाव्य के रूप में आयेंगी, मेरी और से सबसे पहले अग्रिम बधाई.....
यही शाश्वत सत्य है
प्रेम कभी नही बदलता
शायद इसीलिए
प्रेम का कोई छोर नहीं होता
--
धरातल से जुड़ी
सच्चाई को आइना दिखाती
रचना बहुत बढ़िया रची है आपने!
kavita bahut achchi hai aur aapko bahut-bahut badhayee.....
आपको 250वीं पोस्ट के लिए बधाई वंदना जी .....प्रेम के भावों और रंगों को समेटे यह रचना भी बेहतरीन है.... हमेशा की तरह
प्रेम के निर्मल अहसासों से लवरेज एक मन को प्रस्तुत करती कविता, २५०वीं पोस्ट के लिए बधाई
वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..!
250 Th पोस्ट के लिए बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बधाई...
लखनऊ से अनवर जमाल .
लखनऊ में आज सम्मानित किए गए सलीम ख़ान और अनवर जमाल Best Blogger
प्रेम को गीत में बांधना कितना कठिन है! कहानी बन जाती है।
मेरी बधाई भी स्वीकार करें।
आपको 250वीं पोस्ट की बधाई .....हैप्पी मदर्स डे
वंदना जी सबसे पहले तो आपको २५० वि पोस्ट के लिए बधाई....बहुत ही प्रेममयी सुन्दर भावपूर्ण रचना....
bahut acchi post..
प्रेम कभी नही बदलता
शायद इसीलिए
प्रेम का कोई छोर नहीं होता
एक वास्तविकता यह भी है .....लेकिन सब सोच का फर्क है ..!
आपको 250 वीं पोस्ट की बधाई ...आशा है आप अपने सार्थक लेखन से ब्लॉग जगत को यूँ ही समृद्ध करती रहेंगी .....!
२५० वीं पोस्ट की बधाई । आप इतनी अच्छी कवितायेँ लिखती हैं । कभी कभी छोटे छोटे लेख भी लिखिए ।
komal anubhutiyon ka saswat charitra kavy men saheja gaya achha lga . badhayiyan .
शाश्वत प्रेम की गहन विवेचना करती अद्भुत कविता।
250 वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
वंदना जी सबसे पहले तो आपको २५० विपोस्ट के लिए बधाई।प्रेम रस में डूबे इस रोमान्टिक भाव के लिये भी बधाई । आभार सहित…….
250thपोस्ट के लिए बधाई वंदना जी -शाश्वत प्रेम पर खूबसूरत रचना है ...!!
बधाई आपको इतनी सुन्दर और लम्बी पारी के लिए, २५० वाँ चयन भी शानदार रहा!
दिल को छू गयी हर पंक्तियाँ! बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना! २५० वी पोस्ट पूरे होने पर और मात्री दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
प्रेम और प्रियतम का सानिध्य. अद्भुत. यद्यपि आज रंग कुछ जुदा है, लेकिन ज्यादा मनभावन लगा.
बंदना जी आप को २५० वीं पोस्ट के लिए ढेरों बधाइयाँ ! साथी आप द्वारा मेरे ब्लॉग पर की गयी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभार ! कल के चर्चामंच में मेरे ब्लॉग के चयन के लिए भी धन्यवाद् ! प्रेम के किसी छोर के न होने की बहुत ही सुन्दर अभिब्यक्ति ! प्रेम में तो बहते रहना ही अच्छा होता है छोर की जरुरत ही क्या है ! साभार
२५०वीं पोस्ट के लिये हार्दिक बधाई|
प्रेम में तृप्ति मिल जाए तो प्रेम पथ पर आगे बढ़ने की कामना ही समाप्त हो जायेगी...इसलिए अतृप्ति तो रहनी ही चाहिए...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
आभार.
बहुत बहुत बधाई...
आपकी कविता के लिए बधाई..
थोड़ी देर के लिए खो गई उसमें..
सुन्दर शब्द-चयन,कोमल भाव..
और ढेर सारे प्रेम से परिपूर्ण...!!
sabse pahle 250 post ke bahut bahut badhai....aap kamaal ka likhti hai vandna ji...bahut sundar..bhavon ka samndar hai ye...
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