अब और क्या देखें हम
ज़िन्दगी को करीब से
देख लिया जान लिया
हर चेहरा अजनबी लगा
हर शख्स नाखुदा लगा
कभी तुम ज़ुदा लगे
कभी हम खफ़ा लगे
बरसों के फ़लसफ़े थे
आईनो मे छुपे रहे
ना वो गवाह बने
ना उम्र ज़िबह हुयी
कुछ रेत की गुस्ताखियां थीं
हाथ से फ़िसलती रहीं
उम्र की तरह खामोश सफ़र था
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही
ज़िन्दगी को करीब से
देख लिया जान लिया
हर चेहरा अजनबी लगा
हर शख्स नाखुदा लगा
कभी तुम ज़ुदा लगे
कभी हम खफ़ा लगे
बरसों के फ़लसफ़े थे
आईनो मे छुपे रहे
ना वो गवाह बने
ना उम्र ज़िबह हुयी
कुछ रेत की गुस्ताखियां थीं
हाथ से फ़िसलती रहीं
उम्र की तरह खामोश सफ़र था
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही
41 टिप्पणियां:
आद.वंदना जी,
कुछ रेत की गुस्ताखियाँ थीं,
साथ से फिसलती रहीं!
उम्र की तरह खामोश सफ़र था,
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही !
इन पंक्तियों का जवाब नहीं !
नये विम्बों से सजी बेहद खूबसूरत और संवेदशील कविता !
उम्र की तरह खामोश सफर था
जिन्दगी पन्ने पलटती रही ... ।
बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ... ।
अब और क्या देखें हम
ज़िन्दगी को करीब से
देख लिया जान लिया
हर चेहरा अजनबी लगा
हर शख्स नाखुदा लगा
--
रचना तो बहुत बढ़िया है
मगर हर शख्श नाखुदा कैसे हो गया?
जबकि हर चेहरा अजनबी था!
बहुत उम्दा रचना.
अमूर्त संकल्पनाओं से विम्ब निकलना और उन्हें व्यापक अर्थ देना कोई आप से सीखे.. सुन्दर कविता...
अमूर्त संकल्पनाओं से विम्ब निकलना और उन्हें व्यापक अर्थ देना कोई आप से सीखे.. सुन्दर कविता...
Nice post.
झील हो, दरिया हो, तालाब हो या झरना हो
जिस को देखो वही सागर से ख़फ़ा लगता है
उसकी आंखों में कभी झांक के देखो ‘सागर‘
गहरे ख़ामोश समंदर का पता लगता है
http://mushayera.blogspot.com/
अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं जिन्दगी पन्ने पलटती रह गयी ... बहुत अच्छी सुन्दर रचना, बधाई ..........
बहुत बढ़िया लिखा आपने.
सादर
उम्र की तरह खामोश सफ़र था,
ज़िन्दगी पन्ने पलटती .....bahut khoobsurat panktiyan.
कुछ रेत की गुस्ताखियां थीं
हाथ से फ़िसलती रहीं
उम्र की तरह खामोश सफ़र था
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही....
बहुत मर्मस्पर्शी..बहुत ख़ूबसूरत. आभार
उम्र की तरह खामोश सफ़र था,
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही !
वंदनाजी वाकई ये लाजवाब पंक्तियाँ हैं........
हमेशा की तरह गहरे अर्थ लिए सुन्दर रचना..
Wah! Vandana!Wah! Kya anootha khayal hai...ret kee gustakhiyaan!
एक सुन्दर अभिव्यक्ति!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
उम्र की तरह खामोश सफर था
जिंदगी पन्ने पलटती रही
आप बहुत दार्शनिक सी बातें करतीं हैं वंदना जी तो डर लगने लगता है. आपके दर्शन को बिना आपके समझाये कैसे समझूँ .
क्या बात हे बहुत अच्छी रचना...
कभी शब्दों का अर्थ मिल ही जायेगा।
कुछ रेत की गुस्ताखियाँ थीं,
साथ से फिसलती रहीं!
उम्र की तरह खामोश सफ़र था,
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही !
wah.bahot sundar likhi hain....
बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने .
आपकी लेखनी को नमन...
कुछ रेत की गुस्ताखियाँ थी
हाथ से फिसलती रहीं !
उम्र की तरह खामोश सफ़र था
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ ! हर शब्द मन में घर कर गया ! बधाई स्वीकार करें !
उम्र की तरह खामोश सफ़र था ..
जिंदगी पन्ने पलटती रही ...
लाजवाब !
बहुत सुन्दर भावना पूर्ण रचना| धन्यवाद|
वंदना जी,
देख लिया जान लिया
हर चेहरा अजनबी लगा
हर शख्स नाखुदा लगा
..... बेहद खूबसूरत और संवेदशील कविता !
kuch ret ki gustaakhiyaan thi
haathon se fisalati rahi..
acchi panktiyaan
aur aapki acchi rachna...
ओशो सिद्धार्थ कहते हैं-
संसारी हो या साधक हो
फल की आकांक्षा बाधक है
उद्देश्य कर्म का पूरा हो
यह तो न सदा आवश्यक है।
बहुत सुन्दर रचना। वन्दना तुम से मिल कर जितनी खुशी हुयी बता नही सकती। शुभकामनायें।
सार्थक अभिव्यक्ति, वंदना जी, सत्य रख दिया…
कुछ रेत की गुस्ताखियाँ थीं,
साथ से फिसलती रहीं!
उम्र की तरह खामोश सफ़र था,
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही !
___________________________
सुज्ञ: ईश्वर सबके अपने अपने रहने दो
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही
वाह वाह,क्या बात है.
वाह वंदना जी....बहुत खूबसूरत रचना है....
कुछ रेत की गुस्ताखियाँ थीं,
साथ से फिसलती रहीं!
वाह: क्या सुन्दर प्रस्तुति है..वंदना जी बधाई ..........
कुछ रेत की गुस्ताखियां थीं
हाथ से फ़िसलती रहीं.
उत्तम रचना । बेहतरीन प्रस्तुति...
अब और क्या देखें हम
ज़िन्दगी को करीब से
देख लिया जान लिया
हर चेहरा अजनबी लगा
..बहुत उम्दा रचना.
उम्र की तरह खामोश सफ़र था,
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही ...
Very appealing lines !
.
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...!!
सुन्दर अहसास
ज़िन्दगी के सफे सब फलसफे हो गए|
खूबसूरत अहसास से भरी पोस्ट.......
कुछ रेत की गुस्ताखियाँ थीं,
साथ से फिसलती रहीं!
उम्र की तरह खामोश सफ़र था,
ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही !
waah man ko chhoo gayi ye baate .ati sundar .
fir bhi jindgi k panno par likhe kuchh naam mitaye nahi mitTe.
इतनी सुंदर कविता ..जिन्दगी पन्ने पलटती रही
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