जब तुम
अपने मन के
कैनवस पर
प्रीत के
रंग भरते हो
सच कहती हूं
मैं जीवन्त
हो जाती हूं
मगर जब तुम
उसी कैनवस पर
कुछ आडी तिरछी
रेखायें खींचते हो
मेरा वजूद उनमे
नेस्तनाबूद
हो जाता है
क्यों ऐसा करते हो?
जब जानते हो
मेरा वजूद
सिर्फ़ तुम्हारे
रंगों मे ही
सांस लेता है
तुम्हारा एक भी
गलत कदम
मुझसे मेरी
धडकन और
मेरी सांसे
छीन लेता है
और मै एक
निर्जीव ,
स्पन्दनहीन
तुम्हारे रंगों से
सजी बेहद
भयावह तस्वीर
बन जाती हूँ
जहाँ रंग भी
बिखर जाते हैं
मेरे वजूद की तरह
जबकि सुना था
रंग तो कभी
बेरंग नही होते
या तुम्हारे मन के
कैनवस पर अब
मोहब्बत के
चिनार नही खिलते
अपने मन के
कैनवस पर
प्रीत के
रंग भरते हो
सच कहती हूं
मैं जीवन्त
हो जाती हूं
मगर जब तुम
उसी कैनवस पर
कुछ आडी तिरछी
रेखायें खींचते हो
मेरा वजूद उनमे
नेस्तनाबूद
हो जाता है
क्यों ऐसा करते हो?
जब जानते हो
मेरा वजूद
सिर्फ़ तुम्हारे
रंगों मे ही
सांस लेता है
तुम्हारा एक भी
गलत कदम
मुझसे मेरी
धडकन और
मेरी सांसे
छीन लेता है
और मै एक
निर्जीव ,
स्पन्दनहीन
तुम्हारे रंगों से
सजी बेहद
भयावह तस्वीर
बन जाती हूँ
जहाँ रंग भी
बिखर जाते हैं
मेरे वजूद की तरह
जबकि सुना था
रंग तो कभी
बेरंग नही होते
या तुम्हारे मन के
कैनवस पर अब
मोहब्बत के
चिनार नही खिलते
43 टिप्पणियां:
मेरा वजूद
सिर्फ़ तुम्हारे
रंगों मे ही
सांस लेता है
तुम्हारा एक भी
गलत कदम
मुझसे मेरी
धडकन और
मेरी सांसे
छीन लेता है
और मै एक
निर्जीव ,
स्पन्दनहीन
तुम्हारे रंगों से
सजी बेहद
भयावह तस्वीर
बन जाती हूँ
बेहतरीन रचना ..... सुंदर भावाभिव्यक्ति
कैनवास पर आड़ी तिरछी रेखाएं ..........क्या बात है वंदना जी आपकी सोंच को नमन ,बधाई
अति सुंदर
बहुत खूब
बहुत खूब
ab mahabbat ke chinaar nahi khilte...bahut catchy sheershak hai par poori kavita hi lajabaab hai.mano bhaavon ko kis khoobsurti se kenvas par utara hai.badhaai Vandana ji.
वंदना जी आपकी सोंच को नमन ,बधाई
kenvaas ki bnti bigdti zindgi kaa khubsurat chitran bhtrin or jivant hai mubark ho .......akhtar khan akela kota rajsthan
मेरे वजूद की तरह
जबकि सुना था
रंग तो कभी
बेरंग नही होते
या तुम्हारे मन के
कैनवस पर अब
मोहब्बत के
चिनार नही खिलते.
वजूद को पहचानने की सुंदर कोशिश.
रंग तो कभी बेरंग नहीं होते । क्या बात कही है । बहुत बढ़िया ।
तुम्हारा एक भी
गलत कदम
मुझसे मेरी
धडकन और
मेरी सांसे
छीन लेता है......yahi to pyar hai jiske saath ham bandhe hote hain.
वंदना जी ,बहुत दार्शनिक अभिव्यक्ति है.
मेरी तो समझ से बाहर है.
अब आप ही समझा दीजियेगा कि
'मोहब्बत के चिनार' क्या होतें हैं ?
Bahut khoob ,
shabd nahi he mere pass tarif ke liye.
यह रचना शायद FB पर पढ़ी है ...
बिखरे रंगों में वजूद को समेटने की तलाश ... अच्छी प्रस्तुति
मुझे भी यह रचना पहले पढ़ी हुई लगी।
क्यों ऐसा करते हो?
जब जानते हो
मेरा वजूद
सिर्फ़ तुम्हारे
रंगों मे ही
सांस लेता है..
सुंदर...नाजुक सी......... भावपूर्ण रचना...
बेहतरीन रचना ..... सुंदर भावाभिव्यक्ति....बधाई
ये पहले भी कहीं पोस्ट की है क्या अपने .पढ़ी हुई लग रही है.
बहुत सुन्दर है.
@शिखा वार्श्नेय
हां शिखा ये पहले फ़ेसबुक पर लगाई थी।
बहुत सुंदर काव्य रचना ..... बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
कभी रंग कभी बेरंग, कभी कोई स्थान ही नहीं रहता है, जीपन है यह।
बहुत बढ़िया.
सादर
प्रेम के कितने ही रंग और कितने ही विम्ब आपने दिए हैं अपनी कविता के माध्यम से .. यह कविता भी सुन्दर है.. दिल को छू गई...
मेरा वजूद
सिर्फ़ तुम्हारे
रंगों मे ही
सांस लेता है
तुम्हारा एक भी
गलत कदम
मुझसे मेरी
धडकन और
मेरी सांसे
छीन लेता है
और मै एक
निर्जीव ,
स्पन्दनहीन
तुम्हारे रंगों से
सजी बेहद
भयावह तस्वीर
बन जाती हूँ kya baat hai vandana ji ek alag hi rang ki rachna hai ,sundar lagi
वाह बहुत सुंदर
या तुम्हारे मन के
कैनवस पर अब
मोहब्बत के
चिनार नही खिलते
--
शायद मँहगाई से प्रभावित हो गये हैं!
रचना बहुत सशक्त है!
Aprateem rachana! Baar,baar padhee...
बेहतरीन रचना ओर सुंदर भावाभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया ।
मेरा वजूद
सिर्फ़ तुम्हारे
रंगों मे ही
सांस लेता है
तुम्हारा एक भी
गलत कदम
मुझसे मेरी
धडकन और
मेरी सांसे
छीन लेता है
कई रंगों को उजागर करती हुई रचना .....बहुत ही सुन्दर
बेहद खुबसुरत भाव लिए एक सुदंर सी रचना।
बहुत बढ़िया रचना...
बहुत खूब...
dil ke dard ko aapne poori rachanaa main samet diyaa hai bahut hi achchi rachanaa.badhaai aapko.aek aek shabdon ka chyan .aabhaar
मन के भा्वों की सुन्दर अभिव्यक्ति है ।
बहुत खूब कहा है ... ।
बहुत खूबसूरत अहसास है....प्यार का एक अलग सा रंग ....सुन्दर|
हृदय के कोमल अहसासों से भरी बेहद खूबसूरत रचना !
मेरा वजूद
सिर्फ़ तुम्हारे
रंगों मे ही
सांस लेता है
तुम्हारा एक भी
गलत कदम
मुझसे मेरी
धडकन और
मेरी सांसे
छीन लेता है
और मै एक
निर्जीव ,
स्पन्दनहीन
तुम्हारे रंगों से
सजी बेहद
भयावह तस्वीर
बन जाती हूँ
क्या कहू वंदना जी , आपके इस काव्य ने बेहद प्रभावित किया , अतुकांत कविता की धरोहर बननी चाहिए इसे, बधाई, अच्छी कविताओ के संकलन का प्रयाश कर रहा हूँ, शीघ्र ही आपसे इज़ाज़त मांगूगा
मन के कैनवास पर मुहब्बत के चिनार नहीं खिलते अब ...
बहुत खूब !
कैनवस पर अब
मोहब्बत के
चिनार नही खिलते...
Great expression !
.
बहुत सुन्दर रचना!
भावमय शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति
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