तुम्हें ढूँढते
ज़माना गुज़र गया
जब भी तेरी
चौखट पर जाती हूँ
इक आस हर बार
फ़ना हो जाती है
तू तो मिलता नही
दरवाज़े भी सलाम
नही लेते
वो रुसवाई
वो मायूसी
जीने का सामान
बन जाती है
तेरे बिन जाने ही
अरमान ठहर जाते हैं
आस के दरख्तों पर
शायद इस रात की
सुबह जरूर होगी
मगर
हर रात सुबह का
इंतखाब नही करती
आस के फ़ूलों मे
महक नही होती
क्योंकि हर फ़ूल
देवता पर नही चढता
पता नही फिर भी
क्यों
तेरे दर पर
जा पहुंचती है
चाहत मेरी
तुझे खोजते हु्ये
तुझमे अपना वजूद
ढूँढते हुये
तेरे साये मे
तेरी पनाह मे
कुछ पल सुकून
पाने के लिये
वरना तो
कौन मरकर ज़िन्दा
हुआ है यहाँ
देख मुझे
मै
मरकर भी ज़िन्दा हूँ!!!!!!!!!!
ज़माना गुज़र गया
जब भी तेरी
चौखट पर जाती हूँ
इक आस हर बार
फ़ना हो जाती है
तू तो मिलता नही
दरवाज़े भी सलाम
नही लेते
वो रुसवाई
वो मायूसी
जीने का सामान
बन जाती है
तेरे बिन जाने ही
अरमान ठहर जाते हैं
आस के दरख्तों पर
शायद इस रात की
सुबह जरूर होगी
मगर
हर रात सुबह का
इंतखाब नही करती
आस के फ़ूलों मे
महक नही होती
क्योंकि हर फ़ूल
देवता पर नही चढता
पता नही फिर भी
क्यों
तेरे दर पर
जा पहुंचती है
चाहत मेरी
तुझे खोजते हु्ये
तुझमे अपना वजूद
ढूँढते हुये
तेरे साये मे
तेरी पनाह मे
कुछ पल सुकून
पाने के लिये
वरना तो
कौन मरकर ज़िन्दा
हुआ है यहाँ
देख मुझे
मै
मरकर भी ज़िन्दा हूँ!!!!!!!!!!
42 टिप्पणियां:
दिल की गहराइयों से निकली भावनाओं की सुंदर प्रस्तुति. अच्छी लगी कविता. आभार .
बहुत खूब जज्बा।
तेरे बिन जाने ही
अरमान ठहर जाते हैं
आस के दरख्तों पर
शायद इस रात की
सुबह जरूर होगी
... zarur hogi, darakhton per patte ug aayenge
तेरे दर पर
जा पहुंचती है
चाहत मेरी
तुझे खोजते हु्ये
तुझमे अपना वजूद
तभी मकर भी जिंदा हूँ..... अपने वजूद की तलाश में.....
बहुत सुंदर वंदना जी
वाह वंदना जी.....बहुत खूबसूरत अहसास है.....सुभानाल्लाह......
दरवाज़े भी सलाम नहीं लेते ......बहुत खूब|
बहुत ही प्यारे एहसास
सादर
bahooooooooooooooooot sundar, aapne dil ki gahraiyon se kahi, aur hamare dil ki gahraiyon ne suni.
भगवान के दर की बात है क्या?
बहुत खूब... वाह...
मर कर जिन्दा होने का विम्ब .. प्रेम और आशा के भाव को व्यक्त करता है.. सुन्दर और प्रवाहमई कविता ..
बहुत खूब ...।
चाहत मेरी
तुझे खोजते हु्ये
तुझमे अपना वजूद
बहुत प्रेरणादायी भाव ...अंतिम पंक्तियों में दार्शनिक भाव की स्थापना करती कविता बहुत उत्तम कोटि की है ...आपका आभार वंदना जी
Kamaal ka likha hai! Subah zaroor hogi!
अच्छी अभिव्यक्ति !
वरना तो
कौन मरकर ज़िन्दा
हुआ है यहाँ
देख मुझे
मै
मरकर भी ज़िन्दा हूँ!!!!!!!!!!
बहुत खूब लिखा आपने । दिल की गहराई से निकले हुए ज़ज्बात । बधाई स्वीकारे ।
गहरे जज्बातों को शब्द दे देती हैं आप .... बहुत लाजवाब ....
bahut khoob..
हर रात सुबह का
इंतखाब नही करती
आस के फ़ूलों मे
महक नही होती
एकदम सच ... बहुत सुन्दर !
.
...मरकर भी जिन्दा हूँ...
बढ़िया अभिव्यक्ति !
.
bahut sunder rachna......
कौन मरकर ज़िन्दा
हुआ है यहाँ
देख मुझे
मै
मरकर भी ज़िन्दा हूँ!!!!!!!!!!
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..बहुत प्रेरक और सुन्दर भविष्य के अहसास से परिपूर्ण..बहुत सुन्दर
बेहतरीन
तेरे दर पर
जा पहुंचती है
चाहत मेरी
तुझे खोजते हु्ये......... काबिलेतारीफ .....
वाह वंदना जी
कौन मरकर ज़िन्दा
हुआ है यहाँ
देख मुझे
मै
मरकर भी ज़िन्दा हूँ!!!!!!!!!!
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..बहुत प्रेरक और सुन्दर भविष्य के अहसास से परिपूर्ण..बहुत सुन्दर
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
"गौ माता की करूँ पुकार सुनिए और कम से ....." देखियेगा और अपने अनुपम विचारों से
हमारा मार्गदर्शन करें.
आप भी सादर आमंत्रित हैं,
http://sawaisinghrajprohit.blogspot.com पर आकर हमारा हौसला बढाऐ और हमें भी धन्य करें.......
आपका अपना सवाई
bahut khub
....
अगर यह शिकायत ईश्वर से है तो उसके विधान को मानना ही जीवन की सार्थकता है!
--
रचना सोचने को मजबूर करती है!
वंदना जी ...बहुत सुन्दर ...गहरी बात
गहराइयो से कही बात का असर जल्दी होता है
इश्वर के घर भी, भुत ही जज्बाती रचना..
तभी तो इतनी सुंदर कविता लिखी हे धन्यवाद
आज ४ फरवरी को आपकी यह सुन्दर भावमयी पोस्ट चर्चामंच पर है... आपका आभार ..कृपया वह आ कर अपने विचारों से अवगत कराएं
आज शास्त्री जी का जन्मदिन भी है....
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/02/blog-post.html
बहुत ही सुन्दर और कोमल भावनाओं से सुसज्जित रचना है वंदनाजी ! मन अंदर तक भीग गया ! अति सुन्दर !
बहुत ही भावपूर्ण और शशक्त अभिव्यक्ति.उस्ताद शायरा को दाद कैसे दूं.
शुभ कामनाएं.
हर फूल देवता पर नहीं चढ़ता..........
बहुत ही कोमल भावनाएँ, सरल शब्दों के साथ
बधाई वंदना गुप्ता जी
भावुक रचना...
तेरे दर पर जा पहुँचती है
चाहत मेरी
तुझे खोजते हुए
तेरी पनाह में
कुछ पल सुकून पाने के लिए
देख मुझे मै मरकर भी जिंदा हूँ
वाह वंदना जी वाह , बहुत खूबसूरत और भावुकता पूर्ण कोमल अहसास ...
देख मुझे
मै
मरकर भी ज़िन्दा हूँ
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें
atyant bhawpurn.
कौन मरकर ज़िन्दा
हुआ है यहाँ
देख मुझे
मै
मरकर भी ज़िन्दा हूँ!
अनोखे भाव, अनूठी काव्य रचना।
ek dum naya thought ... refreshing sa hai .... sahi punch to antim lines me hi hai ....
badhayi
बहुत प्रेरणादायी भाव ...आपका आभार वंदना जी
aapki baki kavitaao ki tarah hi....sundar aur darshan-yukt.
'Sar rakhe sar jaat hai
sar kate sar hoth
jaise baati deep ki
jale ujjala hoth'
Wah! Vandanaji wah! aap 'mar kar bhi jinda hai ' tabhi to jalti hui baati ka ujjala spast dikh raha hai.
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