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बुधवार, 15 सितंबर 2010

दुनिया की अदालत में खड़े भगवान ?

कल कन्हैया 
सपने में आया 
उदास , हताश
बड़ा व्यथित था 
दुनिया के
आरोपों से
प्रश्न उठाया 
क्यूँ दुनिया 
जीने नहीं देती है 
किसी भी युग में 
हर युग में 
आरोप लगाया 
और जनता की 
अदालत में 
मुझे ही दोषी 
ठहराया

जब राम 
बनकर आया 
मर्यादा में रहा 
मगर वो भी ना
किसी को भाया 
नारी का 
सम्मान किया 
उसे यथोचित 
स्थान दिया 
एक पत्नी व्रत लिया
ता- उम्र उस 
व्रत को निभाया
मगर फिर भी
खुद को ही
कटघरे में 
खड़ा पाया
क्यूँ सीता को
बनवास दिया?
क्यूँ उस पर 
अविश्वास किया?
क्यूँ उसकी 
अग्निपरीक्षा ली?
ताने मारा 
करती है 
दुनिया
मगर इतना ना 
समझ पाती है
मर्यादा में रहकर
राजा का कर्त्तव्य 
भी निभाना था
प्रीत को एक बार
फिर सूली पर 
चढ़ाना था 
मेरा तो विशवास
अटल था
मगर दुनिया के
आरोपों से 
सीता को मुक्त 
करना था
और दुनिया में 
रहकर 
दुनिया का धर्म 
भी निभाना था
इसीलिए 
उस दर्द  से
मुझे भी तो 
गुजरना था 
वो बनवास 
महलों में रहकर
मुझे भी तो
भोगना था 


जब कृष्ण बन 
कर आया
तब भी 
खुद को
दुनिया की 
अदालत
में दोषी ही पाया
क्यूँ राधा के प्रेम
को ना स्वीकारा ?
उसे पत्नी का दर्जा
क्यूँ ना दिया?
क्यूँ उससे 
विश्वासघात किया?
क्यूँ उसके प्रेम 
को ना स्वीकार किया?
मगर मेरा दर्द
ना किसी ने जाना
संसार का दिया
वाक्य मुझे भी
निभाना था 
"कर्त्तव्य हर 
भावना से 
बड़ा होता है "
इसी को ज़िन्दगी 
भर निभाता रहा
प्रीत का दीया 
अश्रुओं से 
जलाता रहा
मगर कभी भी 
कोई भी भाव 
ना मुख पर 
लाता रहा 
निर्मोही, निर्लिप्त 
भाव से हर 
कार्य निभाता रहा
गर राधा को 
पत्नी बना
लिया होता तो
ये ज़माना उसे भी
धरती में समा 
जाने को विवश 
कर देता 
या फिर कोई 
एक नया 
इलज़ाम उस पर
भी लगा देता
और फिर एक बार
दो प्रेमी
विरह अगन में
जल रहे होते
मिल कर भी
ना मिले होते


तब भी तो दुनिया 
ने ही विवश किया था
वो निर्णय लेने के लिए
एक आदर्श राजा के 
फ़र्ज़ की खातिर
पति हार गया था
और ये दुनिया 
जीत गयी थी
इसीलिए प्रण 
किया था मैंने
अगले जन्म 
अपने प्रेम को 
दुनिया के हाथ 
की कठपुतली 
ना बनने दूँगा
वचन लिया था
सीता ने मुझसे   
ना यूँ अगले जन्म
रुसवा करना
चाहे पत्नी का
दर्जा ना देना
मगर हमारे 
प्रेम को
अमर कर देना
जो इस जन्म
अधूरा छूट गया
उसे अगले जन्म
पूरा कर देना
नहीं चाहिए 
संग ऐसा जो
दुनिया दीवार बने
वो ही वादा 
मैंने निभाया
मगर वो भी 
दुनिया को 
ना रास आया
ना पत्नी को 
किसी ने जाना
ना ही प्रेम को
पहचाना


राधा संग 
अपने प्रेम को
दिव्यता की
ऊँचाइयों तक
पहुँचाया 
खुद से पहले
राधा को पुजवाया 
संसार को 
प्रेम करना सिखाया
मैंने और राधा ने
तो प्रेम की पूर्णता
पा ली थी
दूर होकर भी
कभी दूर ना हुए थे
ह्रदय तो हमारे
इक दूजे में ही
समाये थे
दिखने में ही
दो स्वरुप थे
असल में तो
एकत्त्व में 
विलीन थे 


फिर कहो कैसे
राधा को 
धोखा दिया मैंने
उसी को दिया
वचन अगले 
जन्म में 
निभाया मैंने
मगर तब भी
दुनिया की कसौटी 
पर खरा ना 
उतर पाया मैं
अब बताओ
कैसे खुद को
निर्दोष साबित करूँ
अपनी ही बनाई
दुनिया के 
इल्जामों से
कहो कैसे
खुद को 
मुक्त करूँ 
दुनिया ना 
खुद जीती है
चैन से  
ना मुझे
जीने देती है
आखिर क्या 
चाहती है 
दुनिया मुझसे ?




राधा अष्टमी पर राधा जी को समर्पित श्रद्धा सुमन .



41 टिप्‍पणियां:

उम्मतें ने कहा…

एक अलग दृष्टिकोण रखती हुई कविता !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kyun dhobi ko pramukh banaya
kyun n radha ko paas bulaya ....
prabhu jawab to dena hoga n , hum to her din adalat me khade hote hain , to prashn tumse bhi honge hi
.......
bahut hi shaandaar vandana ji

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

वंदना जी,
मैं इस काबिल नहीं के इस रचना पर कोई कमेन्ट करूं!
बस मौन प्रशंसा कर रहा हूँ!
जय हो!
आशीष
--
बैचलर पोहा!!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सतयुग, द्वापर और त्रेता में,
जिनका चलता शासन।
कलयुग में सब भंग हो गया,
ईश्वर का अनुशासन!!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

uff!! kaise itna soch paati hain, ek sarvottam rachna......:)

bahut kjuchh seekhna parega, aap sabo se...:)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

:) :)

दुनिया की अदालत में भगवान और भगवान की वकील वंदना ..

बहुत बढ़िया ढंग से राम और कृष्ण की वकालत की है ...फिर भी भगवान अभी बरी नहीं हुए ...रश्मि जीने भी कुछ प्रश्न रख दिए हैं ...

अच्छी प्रस्तुति

राजेश उत्‍साही ने कहा…

सच तो यह है कि हम सब भी इस दुनिया में सजा भुगत रहे हैं। कुछ अच्‍छी जेल में कुछ बुरी जेल में।

vandana gupta ने कहा…

@रश्मि जी और संगीता जी,

यही तो वो बेचारा पूछ रहा है कि पृथ्वी पर वो भी तो इंसान बन कर आया और इंसान का हर कर्तव्य निभाया फिर भी दुनिया को ना रास आया…………………ये दुनिया कैसी है देखिये ना……………किसी को भी कभी चैन नही लेने देती फिर चाहे भगवान ही क्योँ न हों………………लाँछन भी दुनिया ने लगाये और अब गलत भी दुनिया ही ठहरा रही है तो बताइये इसमे उसका क्या दोष्।
बस कुछ भी गलत खुद करो और भगवान के सिर थोप दो ये दुनिया सिर्फ़ इतना ही जानती है क्योंकि जानती है वो खुद तो आयेगा नही ना सफ़ाई देने इसलिये जो चाहे कहो ………॥कहीं एक बार यदि वो आ जाये तो शायद एक भी शब्द ना फ़ूटे मुख से इस दुनिया के…………………मगर वो सबकी हर बात अपने सिर ले लेता है फिर भी दया करता है इसीलिये भगवान है वो।

बाकी मै कोई वकील नही बस कुछ उदगार उभरे जब से उस पर सबको इल्ज़ाम लगाते देखा तो दिल बहुत दुखा ……………तो ये रचना बन गयी …………हो सकता है मेरी सोच गलत हो मगर मुझे तो उसके प्रति यही महसूस हुआ तो मैने उसे आपके सम्मुख रख दिया।

Urmi ने कहा…

बहुत ही गहरे भाव के साथ सुन्दर और शानदार रचना के लिए बहुत बहुत बधाई! आपकी लेखनी को सलाम!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

वंदना जी पहली बार आपने पुरुष की दृष्टी से देखने की कोशिश की है.. राम और कृष्ण के बहाने पुरषों की व्यथा को बांचने की कोशिश आपकी सफल रही है...

"तब भी तो दुनिया
ने ही विवश किया था
वो निर्णय लेने के लिए
एक आदर्श राजा के
फ़र्ज़ की खातिर
पति हार गया था
और ये दुनिया
जीत गयी थी
इसीलिए प्रण
किया था मैंने
अगले जन्म
अपने प्रेम को
दुनिया के हाथ
की कठपुतली
ना बनने दूँगा
वचन लिया था
सीता ने मुझसे
ना यूँ अगले जन्म
रुसवा करना
चाहे पत्नी का
दर्जा ना देना
मगर हमारे
प्रेम को
अमर कर देना
जो इस जन्म
अधूरा छूट गया
उसे अगले जन्म
पूरा कर देना
नहीं चाहिए
संग ऐसा जो
दुनिया दीवार बने
वो ही वादा
मैंने निभाया
मगर वो भी
दुनिया को
ना रास आया
ना पत्नी को
किसी ने जाना
ना ही प्रेम को
पहचाना"
इन पंक्तियों में आपने पुरुष मन के द्वन्द को बहुत सूक्ष्मता से दिखाया है .. अभिव्यक्त किया है.. बहुत सुंदर कविता.. ए़क अलग दृष्टिकोण की कविता !

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी कविता । राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

काव्य प्रयोजन (भाग-८) कला जीवन के लिए, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

निर्मला कपिला ने कहा…

ागर प्रभु जवाब दे सकते तो दुनिया मे नारी के साथ कभी अन्यक़य नही होता। फिर भी कुछ सवाल अपनी जगह हमेशा पूछे जाते रहेंगे और हम उन्हें भगवान समझ कर चुप भी होते रहेंगे। शुभकामनायें।

रचना दीक्षित ने कहा…

दिखने में ही
दो स्वरुप थे
असल में तो
एकत्त्व में
विलीन थे
बहुत ही गहरे भाव अच्छी प्रस्तुति

shikha varshney ने कहा…

वाह वंदना जी ! आज तो गजब अदालत लगाईं है ..ये मनुष्य किसी को नहीं छोड़ता :)
बहुत बढ़िया लिखा है.

arvind ने कहा…

bahut shaandar...badhiya vandanaji.....sochne ke liye vaadhya karati rachna.

समय चक्र ने कहा…

भगवान अब इंसानी अदालत के द्वार पर ...... बहुत बढ़िया भाव संजोये हैं .... आभार

honesty project democracy ने कहा…

सार्थक और सराहनीय विचारों से भरी प्रस्तुती ...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत रोचक और नूतन दृष्टि देती रचना, शुभकामनाएं.

रामराम.

kshama ने कहा…

Wah...lekin ye adalat bhi usee ne banayi!
Kamal ka likh leti ho!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भाव व ज्ञान का सुन्दर समन्वय।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

सब पढ़ने के बाद मुझे तो एक बात कहने को रह जाती है...कुछ तो लोग कहेंगे...लोगो का काम है कहना...जिसने भगवान को ना छोड़ा...वो आम इंसान को क्या चैन से जीने देंगे...इसलिए...मस्त रहो ....अपने मन से जियो. (हा.हा.हा.)

बहुत बहुत ही सुंदर रचना के लिए बधाई.

वीरेंद्र रावल ने कहा…

वंदना जी ,
आपने तो कृष्ण जी की पूरी वकालत कर दी हैं पर मैं तो ठहरा राधा पक्ष का इसीलिए सहन तो नहीं कर सकता था . आपकी रचना का पोस्टमार्टम करने का दिल हो आया . राधा कृष्ण पर लिखा था तो टिपण्णी तो करनी थी ही मुझे सो कर भी दी . बैठे बैठे कविता ही बना दी , असल में टिपण्णी बड़ी बन जाती इसीलिए अपने ब्लॉग पर कविता के रूप में पेश कर दिया . नीचे लिंक दे दिया हैं
http://saralkumar.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html

धन्यवाद
वीरेन्द्र

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत अलग भाव लिए है आपकी कविता.....
काफी लम्बी रचना है... पर प्रवाह और अर्थ एक पल भी नहीं खोया
बहुत अच्छी लगी...... आभार

Swarajya karun ने कहा…

राम-सीता और कृष्ण -राधा के प्रेम को
आपने अपनी अंतरात्मा से महसूस कर
उसे कविता में वाणी दी है .सच में यह
मन को छू लेने वाली एक सुंदर अभिव्यक्ति है .
बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ .

Swarajya karun ने कहा…

राम-सीता और कृष्ण -राधा के प्रेम को
आपने अपनी अंतरात्मा से महसूस कर
उसे कविता में वाणी दी है .सचमच यह
मन को छू लेने वाली एक सुंदर अभिव्यक्ति है .
बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ .

Udan Tashtari ने कहा…

एक अलग नजरिया..आनन्द आया पढ़कर.

कडुवासच ने कहा…

... prabhaavashaalee, prasanshaneey va bhaavpoorn rachanaa , badhaai !!!

abhi ने कहा…

क्या बात है..आज भगवान जी पे ही बोल,बहुत अच्छा लगा पढ़ के

abhi ने कहा…

क्या बात है..आज भगवान जी पे ही बोल,बहुत अच्छा लगा पढ़ के

मेरे भाव ने कहा…

Prem har yug mein kasauti par parkha jata raha hai aur jata bhi rahega. Phir bhi kundan hokar hi nikla hai. gahre bhav liye sunder rachna... badhai

shyam gupta ने कहा…

---सुन्दर, तार्किक भाव ....यह दुनियां तीन यात्री--गधा, धोबी व उसका बेटा ...की कथा है।
---मेरी कविता "सीता का निर्वासन"( काव्य-मुक्ताम्रत से)--

"...अहल्या व शवरी
सारे समाज की आशंकायें हैं;
जबकि, सीता , राम की व्यक्तिगत शंका है;
व्यक्ति से समाज बडा होता है
इसीलिये तो सीता का निर्वासन होता है।

स्वयं पुरुष का निर्वासन
कर्तव्य विमुखता व कायरता कहाता है,
अतः कायर की पत्नी कहलाने की बज़ाय
सीता को निर्वासन ही भाता है।"

रंजना ने कहा…

अद्भुद चिंतन !!!!

मन हेरती अद्वितीय रचना...वाह !!!!

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

कृष्ण जन्माष्टमी के बारे में पता था, आज राधा-जन्माष्टमी के बारे में भी पता चल गया...सुन्दर कविता.

_____________________
'पाखी की दुनिया' - बच्चों के ब्लॉगस की चर्चा 'हिंदुस्तान' अख़बार में भी.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कुछ जवालंत प्रश्न उठाए हैं इस रचना के द्वारा आपने .... लाजवाब रचना ही ....

दीपक 'मशाल' ने कहा…

कई-कई सवाल हैं पर जवाब हैं कहाँ???? कविता हमेशा की तरह..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

एकदम नया और अलग दृष्टीकोण की रचना के लिए हार्दिक बधाई.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

कविता देख का 'चांद का मुंह टेढ़ा है' याद आ गई...

Shaivalika Joshi ने कहा…

bahut hi alag sochne ko majnur karti hai aapki ye kavita

sm ने कहा…

like the poem
meaningful

Coral ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है ....

आपका लिखने शैली पसंद आई ...

भारतीय की कलम से.... ने कहा…

वंदना जी आपकी इस अद्भुत कृति के लिए मै आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ इसपर कुछ भी कहने की मेरी सामर्थ्य कहाँ..........मै आपको आपकी लेखनी के लिए शुभकामनायें ही प्रेषित करता हूँ !!