आज भी
सिहर जाए
रोम रोम
गर तू
प्यार से
छू ले मुझे
आज भी
डूब जाऊँ
नैनों की
मदिरा में
गर तू
नज़र भर
देख ले मुझे
आज भी
बंध जाऊँ
बाहुपाश में तेरे
गर तू
स्नेहमय निमंत्रण दे
उर स्पन्दनहीन
नहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है
33 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर रचना और उतने ही सुंदर भाव.
रामराम.
Aapki kavitaaon ki ek alag hi khoobsurat pahichan ho gayi hai.. shabdon me lay aur tartamyata dekhte banti hai.
kahin bhi likhi ho to ek bar dekh kar andaza jaroor lag jayega ki aapka hi likha hai.. ek aur sundar kavita moti ke liye aabhar..
कोमल एहसासों को खूबसूरती से लिखा है...नेह का बादल बरसेगा...
शुभकामनायें
उर स्पन्दनहीन
नहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है
अति सुंदर !!!!!!!!!
कविता की अंतिम पंक्तियां ..बेहद खूबसूरत हैं ....बहुत ही सुंदर कविता
अजय कुमार झा
सुन्दर रचना,और मेरी शतकिय पोस्ट पर टिप्पणी देने के लिये ध्न्यवाद ।
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
उर स्पन्दनहीन
नहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है
बहुत कोमल और कमनीय भाव और एहसास
क्या खूब लिखा है
बहुत भाऊक होके लिखा अपने
bahut hi pyaare se bhaw
आशावादिता से भरपूर स्वर इस कविता में मुखरित हुए हैं।
सुन्दर भाव मन से प्रस्तुत किया है आपने इस रचना ......बहुत खूब
ur spandan heen nahin hai....................banjar ho gaya hai.
behatareen abhivyakti. wah.
Bahut khoob...mere paas alfaaz nahi...
शब्दों का सुन्दर संकलन,बहुत ही अच्छी पक्तियां .
VIKAS PANDEY
WWW.VICHAROKADARPAN.BLOGSPOT.COM
bahut sunder abhivykti apane sunder bhavo kee.........
उर स्पंदन हीन
नहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है...
वाह वाह वाह वंदना जी वाह...अद्भुत पंक्तियाँ...मेरी बधाई स्वीकार करें...
नीरज
बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना प्रस्तुत किया है आपने!
कव्यों के उर से
कभी न सूखे नेह का जल
यही कामना
पल - प्रतिपल
bahut hi khooobsurat ahsaaas....ham kitna intzaar karte hain aur kaise kaise sapne dekhte hain ...un ke liye jo kabhi laut kar nahi aate.........
उर स्पन्दनहीन
नहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है ..
वाह .. बहुत खूबलिखा है ... नेह की वर्षा में कलियाँ फिर खिल उठेंगी ... तू कोशिश तो कर ...
इस विषय पर तो मुझसे कुछ नहीं कहा जायेगा वंदना जी ......!!
उर स्पन्दनहीन
नहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है
बहुत सुन्दर कविता है वंदना जी. बधाई.
kabhi-kabhi bahut jyada bdhiya likh deta है....tab भी तो samajh nahin ata ki kya kahen.....उफ़ kahe तो kya kahen.....!!
कोमलतम अनुभूतियाँ ऐसे सज जाती हैं अभिव्यक्ति में कि पूछिए मत !
सुन्दर रचना, आभार ।
achhi rachna hai ji...saadhuwad..
apki kavita padhkar yaad aata hai vo gaalib sahib ka kehna ki "yu hota to kya hota"!!!
sunder rachna
Kya baat hai!
Behad romani, samvedansheel aur khoobsoorat!
Ur spandanheen nahin hai
Bas neh jal ke abhav mein
Banjar ho gaya hai....
Bahut ras liya maine!
Shubhkamnaen!
अति सुंदर रचना।
हिन्दी जगत को इन खऊबसूरत अह्सासोँ से नवाजने के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ
kavita wakai behad khubsurat hai... padhkar kaafi aanand aaya...
ajib vidambna hai dard bhare geet zyada aanand dete hain!!!!!
कमाल है ! अद्भुत भावभरी रचना !
जब हम जुदा हुए थे रात बाकि थी,
उम्र कट गयी सारी,मगर रात बाकी है !
vandna ji bahut sundar!
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