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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

मैं नहीं आने वाली

अब मुझे
मत पुकारना
ना देना आवाज़
मैं नही आने वाली
लम्हा - लम्हा
युग बना
तेरा इंतज़ार
करते- करते
और युग
बीतते- बीतते
जन्म बदल गए
जन्मों के बिछड़े हैं
जन्मों तक
बिछड़ते ही रहेंगे
अब तेरे प्रेम की
चाह में ना तडपेंगे
ना तुझे आवाज़ देंगे
ना तेरे दीदार को तरसेंगे
जन्मों की प्यास को
अब और बढ़ाना होगा
तुझे मुझसे
मिलने से पहले
ख़ुद को भी
इसी आग में
अब जलाना होगा
एक बार फिर
जन्मों के इंतज़ार को
अगले कुछ और
जन्मों तक
निभाना होगा
इंतज़ार के लम्हों को
तुझे भी तो जीना होगा
जन्मों की मौत को
तुझे भी तो सहना होगा
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा
मेरे प्यार के काबिल बनने के लिए
इस आग को सहना होगा
फिर आवाज़ देना मुझे
जब आग का दरिया पार कर लो
फिर आवाज़ देना मुझे
जब ख़ुद को इतना तपा लो
फिर आवाज़ देना मुझे
अपने प्रेम का अहसास करवाना
गर तेरे प्रेम पर
यकीं आया मुझे
तो इक प्रेम परीक्षा देना
गर हो गए अनुत्तीर्ण
फिर ना आवाज़ देना मुझे
मैं नही आने वाली

37 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर भाव...वाह...अद्भुत रचना रच डाली है आपने...बधाई..
नीरज

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

"...एक बार फिर जन्मो के इन्तजार को
कुछ और जन्मो तक निभाना होगा.. "

बेहद सुन्दर और लाजबाब भाव !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

वंदना जी
नमस्कार
इस रचना को पढ़ कर ऐसा लगा कि जब तक आदमी स्वयं किसी के प्रेम में न डूब जाए , उसमें इतना आत्म विश्वास पैदा हो ही नहीं सकता कि वह अपने साथी को भी ललकार सके और उसे ये एहसास दिला सके कि आपको भी अब मेरी तरह इंतज़ार करना होगा और उस पर खरा भी उतरना होगा . परन्तु आज ऐसे विश्वास का अतिरेक कम ही देखने को मिलता है. पर आपने अपनी अभिव्यक्ति से इस बात को एक बार फिरहमारे सामने पेश किया है.
सुंदर.
कुच्छ लाइनें :-
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा
मेरे प्यार के काबिल बनने के लिए
इस आग को सहना होगा

- विजय

अजय कुमार ने कहा…

अपने मजबूत व्यक्तित्व का अच्छा चित्रण

रश्मि प्रभा... ने कहा…

pyaar aur manuhaar aur naa kahkar bhi ek intzaar,ek khwaahish....bahut hi badhiyaa

Arshia Ali ने कहा…

मन को छू गये आपके भाव।
इससे ज्यादा और क्या कहूं।
------------------
शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत अच्च्ची रचना लिखी है आपने

वाणी गीत ने कहा…

कोई प्यार से बुला तो ले ....कैसे कह पाएंगी ...अब नहीं आनेवाली ...!!

मनोज कुमार ने कहा…

रचना अच्छी लगी। बधाई।

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

bahut hi sundar lagi kavita...
aur mujhe bhi aisa hi laga jo Vani ne kaha..
koi pyar se bula le to kaise nahi aayengi bhala ...kahiye to..?

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत सुन्दर वंदनाजी ! आत्मविश्वास से परिपूर्ण बहुत विशिष्ट रचना रची है आपने । बहुत अच्छा लगा यह देख कर कि समर्पण के लिये सदैव नारी से ही अपेक्षा नहीं की जानी चाहिये । पुरुष को भी कसौटी पर घिस कर स्वयँ को सिद्ध करना होगा । वाह ! बहुत खूब !

shikha varshney ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत लिखा है वंदना जी ! बेहतरीन भाव.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Wah..achhi kavita..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

तुझे भी तो जीना होगा
जन्मों की मौत को
तुझे भी तो सहना होगा
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा
मेरे प्यार के काबिल बनने के लिए
इस आग को सहना होगा
फिर आवाज़ देना मुझे
जब आग का दरिया पार कर लो
फिर आवाज़ देना मुझे
जब ख़ुद को इतना तपा लो
फिर आवाज़ देना मुझे
अपने प्रेम का अहसास करवाना
गर तेरे प्रेम पर
यकीं आया मुझे
तो इक प्रेम परीक्षा देना
गर हो गए अनुत्तीर्ण
फिर ना आवाज़ देना मुझे
मैं नही आने वाली...

पढ़ कर ऐसा लगा कि बहुत डूब कर लिखा है..... ऐसी भावाभिव्यक्ति बहुत कम ही मिलती है..... उपरोक्त पंक्तियों ने दिल छू लिया....

बधाई एवं शुभकामनाएं....

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

वाह सुन्दर भाव! कमाल की रचना!

Preeti tailor ने कहा…

pyar par aitbaar janmojanm ka ...
ek sundar rachana ...

Pratik Maheshwari ने कहा…

"तुझे मुझसे
मिलने से पहले
ख़ुद को भी
इसी आग में
अब जलाना होगा"

यह पंक्तियाँ तो बहुत ही खूबसूरत लिखी हैं..
बहुत ही सुन्दर रचना..

आभार..

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

vandana ji, nishabd hun, aap aaj ki meri do kavitayen jo mainr

http://swapnyogeshverma.blogspot.com/

par post ki hain zaroor dekhen, wahi mera comment hai.

Unknown ने कहा…

achhi kavita.........

baanch kar khushi mili......

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति---सुन्दर शब्दों में---
पूनम

अर्कजेश ने कहा…

सुंदर !

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर भाव...वाह...अद्भुत रचना रच डाली है आपने...बधाई..

Udan Tashtari ने कहा…

शानदार भाव...बहुत सुन्दर!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जब आग का दरिया पार कर लो
फिर आवाज़ देना मुझे
जब ख़ुद को इतना तपा लो
फिर आवाज़ देना मुझे

अरे वाह....!
इतनी बढ़िया रचना पर मेरा ध्यान क्यों नही गया?
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने वन्दना जी!
बधाई!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जन्मों की मौत को
तुझे भी तो सहना होगा
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा....

दिल में गहरे उतरते हुवे आपके शब्द .......... छू गयी आपकी रचना .........

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आत्मविश्वास का भाव जगाती रचना

निर्मला कपिला ने कहा…

तुझे भी तो जीना होगा
जन्मों की मौत को
तुझे भी तो सहना होगा
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा
मेरे प्यार के काबिल बनने के लिए
इस आग को सहना होगा
फिर आवाज़ देना मुझे
वन्दना बहुत हे सुन्दर कविता है। बस निशब्द हूँ बधाई

36solutions ने कहा…

इस आत्‍मस्‍वाभिमान को नमन.

Ashish (Ashu) ने कहा…

बहुत कुछ चन्‍द शब्‍दों में व्‍यक्‍त किया, आभार ।

पंकज ने कहा…

सुंदर रचना, सुंदर भाव.

subhash Bhadauria ने कहा…

आज टिप्पणी करने को विवश हूँ अछान्दस रचनाओं में आने वाले तीव्रतम भावों की अभिव्यक्ति को पहले भी जाना है आज भी उसी का बोध हुआ.
कविता में शिल्प,छन्द तो आवरण है आत्मा तो भाव ही होते हैं. आपने साबित कर दिया.
आपकी रचनामें अनभूति की प्रामाणिकता किसी भी सह्दय को खेचने में विवश कर रही है.

प्रेम का सिलेबस बहुत कठिन है यहां विरले ही उत्तीर्ण होते हैं ज़्यादातर हमारे जैसे ज़ल्दबाज़ी में ग़ल्तियाँ कर फेल हो जाते हैं फिर ता उम्र आँसू बहाते हैं. इसमें परीक्षक का क्या दोष.और एक बात दुनियां में जितनी बेहतरीन रचनायें पायी जाती हैं वह फेलियर्स की हैं.

दिनकरजी ने उर्वशी में सच ही कहा है-

बाहर सांकल नहीं जिसे तू खोल ह्दय पा जाये,
इस मंदिर का द्वार सदा अंतपुर से खुलता है.

आपकी रचना आइना दिखा गयी.बयान ज़ारी रहे,
अल्लाह करे ज़ोरे क़लम और ज़्यादा.

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर ने कहा…

वन्दनाजी! आपकी कविताऒ की एक खुबी होती है जो सिद्दे दिल मे उतर जाती है. आपके द्वारा प्रदत एक एक शब्द मानो हमेसे बाते कर रहे हो . सुन्दर रचना का जन्म तभी होता है जब आप उस पात्र मे रम जाते है बस जाते है. मै व्यक्तीगत रुप से कोई लाग लपेट रखे बिना आज यह प्रमाणीत रुप से कहता हू यू यार द बेस्ट एन्ड ग्रेट. शुभकामानाऎ.
महावीर बी सेमलानी



यह पढने के लिऎ यहा चटका लगाऎ
भाई वो बोल रयेला है…अरे सत्यानाशी ताऊ..मैने तेरा क्या बिगाडा था

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जब ख़ुद को इतना तपा लो
फिर आवाज़ देना मुझे
अपने प्रेम का अहसास करवाना
गर तेरे प्रेम पर
यकीं आया मुझे
तो इक प्रेम परीक्षा देना
गर हो गए अनुत्तीर्ण
फिर ना आवाज़ देना मुझे
मैं नही आने वाली

bahut khoob....sundar abhivyakti ..prem ko shikhar par le jati hui.....badhai

shama ने कहा…

ek tadapte dil se nikalee aah!

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

sundar aur behtarin likha hai ...

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

सुन्दर और प्रभावशाली पंक्तियां---
हेमन्त कुमार