अब मुझे
मत पुकारना
ना देना आवाज़
मैं नही आने वाली
लम्हा - लम्हा
युग बना
तेरा इंतज़ार
करते- करते
और युग
बीतते- बीतते
जन्म बदल गए
जन्मों के बिछड़े हैं
जन्मों तक
बिछड़ते ही रहेंगे
अब तेरे प्रेम की
चाह में ना तडपेंगे
ना तुझे आवाज़ देंगे
ना तेरे दीदार को तरसेंगे
जन्मों की प्यास को
अब और बढ़ाना होगा
तुझे मुझसे
मिलने से पहले
ख़ुद को भी
इसी आग में
अब जलाना होगा
एक बार फिर
जन्मों के इंतज़ार को
अगले कुछ और
जन्मों तक
निभाना होगा
इंतज़ार के लम्हों को
तुझे भी तो जीना होगा
जन्मों की मौत को
तुझे भी तो सहना होगा
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा
मेरे प्यार के काबिल बनने के लिए
इस आग को सहना होगा
फिर आवाज़ देना मुझे
जब आग का दरिया पार कर लो
फिर आवाज़ देना मुझे
जब ख़ुद को इतना तपा लो
फिर आवाज़ देना मुझे
अपने प्रेम का अहसास करवाना
गर तेरे प्रेम पर
यकीं आया मुझे
तो इक प्रेम परीक्षा देना
गर हो गए अनुत्तीर्ण
फिर ना आवाज़ देना मुझे
मैं नही आने वाली
37 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर भाव...वाह...अद्भुत रचना रच डाली है आपने...बधाई..
नीरज
"...एक बार फिर जन्मो के इन्तजार को
कुछ और जन्मो तक निभाना होगा.. "
बेहद सुन्दर और लाजबाब भाव !
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
वंदना जी
नमस्कार
इस रचना को पढ़ कर ऐसा लगा कि जब तक आदमी स्वयं किसी के प्रेम में न डूब जाए , उसमें इतना आत्म विश्वास पैदा हो ही नहीं सकता कि वह अपने साथी को भी ललकार सके और उसे ये एहसास दिला सके कि आपको भी अब मेरी तरह इंतज़ार करना होगा और उस पर खरा भी उतरना होगा . परन्तु आज ऐसे विश्वास का अतिरेक कम ही देखने को मिलता है. पर आपने अपनी अभिव्यक्ति से इस बात को एक बार फिरहमारे सामने पेश किया है.
सुंदर.
कुच्छ लाइनें :-
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा
मेरे प्यार के काबिल बनने के लिए
इस आग को सहना होगा
- विजय
अपने मजबूत व्यक्तित्व का अच्छा चित्रण
pyaar aur manuhaar aur naa kahkar bhi ek intzaar,ek khwaahish....bahut hi badhiyaa
मन को छू गये आपके भाव।
इससे ज्यादा और क्या कहूं।
------------------
शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
बहुत अच्च्ची रचना लिखी है आपने
कोई प्यार से बुला तो ले ....कैसे कह पाएंगी ...अब नहीं आनेवाली ...!!
रचना अच्छी लगी। बधाई।
bahut hi sundar lagi kavita...
aur mujhe bhi aisa hi laga jo Vani ne kaha..
koi pyar se bula le to kaise nahi aayengi bhala ...kahiye to..?
बहुत सुन्दर वंदनाजी ! आत्मविश्वास से परिपूर्ण बहुत विशिष्ट रचना रची है आपने । बहुत अच्छा लगा यह देख कर कि समर्पण के लिये सदैव नारी से ही अपेक्षा नहीं की जानी चाहिये । पुरुष को भी कसौटी पर घिस कर स्वयँ को सिद्ध करना होगा । वाह ! बहुत खूब !
बहुत ही खुबसूरत लिखा है वंदना जी ! बेहतरीन भाव.
Wah..achhi kavita..
तुझे भी तो जीना होगा
जन्मों की मौत को
तुझे भी तो सहना होगा
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा
मेरे प्यार के काबिल बनने के लिए
इस आग को सहना होगा
फिर आवाज़ देना मुझे
जब आग का दरिया पार कर लो
फिर आवाज़ देना मुझे
जब ख़ुद को इतना तपा लो
फिर आवाज़ देना मुझे
अपने प्रेम का अहसास करवाना
गर तेरे प्रेम पर
यकीं आया मुझे
तो इक प्रेम परीक्षा देना
गर हो गए अनुत्तीर्ण
फिर ना आवाज़ देना मुझे
मैं नही आने वाली...
पढ़ कर ऐसा लगा कि बहुत डूब कर लिखा है..... ऐसी भावाभिव्यक्ति बहुत कम ही मिलती है..... उपरोक्त पंक्तियों ने दिल छू लिया....
बधाई एवं शुभकामनाएं....
वाह सुन्दर भाव! कमाल की रचना!
pyar par aitbaar janmojanm ka ...
ek sundar rachana ...
"तुझे मुझसे
मिलने से पहले
ख़ुद को भी
इसी आग में
अब जलाना होगा"
यह पंक्तियाँ तो बहुत ही खूबसूरत लिखी हैं..
बहुत ही सुन्दर रचना..
आभार..
vandana ji, nishabd hun, aap aaj ki meri do kavitayen jo mainr
http://swapnyogeshverma.blogspot.com/
par post ki hain zaroor dekhen, wahi mera comment hai.
achhi kavita.........
baanch kar khushi mili......
बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति---सुन्दर शब्दों में---
पूनम
सुंदर !
बहुत सुन्दर शब्द और अत्यंत सुन्दर भाव...वाह...अद्भुत रचना रच डाली है आपने...बधाई..
शानदार भाव...बहुत सुन्दर!!
जब आग का दरिया पार कर लो
फिर आवाज़ देना मुझे
जब ख़ुद को इतना तपा लो
फिर आवाज़ देना मुझे
अरे वाह....!
इतनी बढ़िया रचना पर मेरा ध्यान क्यों नही गया?
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने वन्दना जी!
बधाई!
जन्मों की मौत को
तुझे भी तो सहना होगा
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा....
दिल में गहरे उतरते हुवे आपके शब्द .......... छू गयी आपकी रचना .........
आत्मविश्वास का भाव जगाती रचना
तुझे भी तो जीना होगा
जन्मों की मौत को
तुझे भी तो सहना होगा
कुंदन बनने के लिए
तुझे भी तो तपना होगा
मेरे प्यार के काबिल बनने के लिए
इस आग को सहना होगा
फिर आवाज़ देना मुझे
वन्दना बहुत हे सुन्दर कविता है। बस निशब्द हूँ बधाई
इस आत्मस्वाभिमान को नमन.
बहुत कुछ चन्द शब्दों में व्यक्त किया, आभार ।
सुंदर रचना, सुंदर भाव.
आज टिप्पणी करने को विवश हूँ अछान्दस रचनाओं में आने वाले तीव्रतम भावों की अभिव्यक्ति को पहले भी जाना है आज भी उसी का बोध हुआ.
कविता में शिल्प,छन्द तो आवरण है आत्मा तो भाव ही होते हैं. आपने साबित कर दिया.
आपकी रचनामें अनभूति की प्रामाणिकता किसी भी सह्दय को खेचने में विवश कर रही है.
प्रेम का सिलेबस बहुत कठिन है यहां विरले ही उत्तीर्ण होते हैं ज़्यादातर हमारे जैसे ज़ल्दबाज़ी में ग़ल्तियाँ कर फेल हो जाते हैं फिर ता उम्र आँसू बहाते हैं. इसमें परीक्षक का क्या दोष.और एक बात दुनियां में जितनी बेहतरीन रचनायें पायी जाती हैं वह फेलियर्स की हैं.
दिनकरजी ने उर्वशी में सच ही कहा है-
बाहर सांकल नहीं जिसे तू खोल ह्दय पा जाये,
इस मंदिर का द्वार सदा अंतपुर से खुलता है.
आपकी रचना आइना दिखा गयी.बयान ज़ारी रहे,
अल्लाह करे ज़ोरे क़लम और ज़्यादा.
वन्दनाजी! आपकी कविताऒ की एक खुबी होती है जो सिद्दे दिल मे उतर जाती है. आपके द्वारा प्रदत एक एक शब्द मानो हमेसे बाते कर रहे हो . सुन्दर रचना का जन्म तभी होता है जब आप उस पात्र मे रम जाते है बस जाते है. मै व्यक्तीगत रुप से कोई लाग लपेट रखे बिना आज यह प्रमाणीत रुप से कहता हू यू यार द बेस्ट एन्ड ग्रेट. शुभकामानाऎ.
महावीर बी सेमलानी
यह पढने के लिऎ यहा चटका लगाऎ
भाई वो बोल रयेला है…अरे सत्यानाशी ताऊ..मैने तेरा क्या बिगाडा था
जब ख़ुद को इतना तपा लो
फिर आवाज़ देना मुझे
अपने प्रेम का अहसास करवाना
गर तेरे प्रेम पर
यकीं आया मुझे
तो इक प्रेम परीक्षा देना
गर हो गए अनुत्तीर्ण
फिर ना आवाज़ देना मुझे
मैं नही आने वाली
bahut khoob....sundar abhivyakti ..prem ko shikhar par le jati hui.....badhai
ek tadapte dil se nikalee aah!
sundar aur behtarin likha hai ...
सुन्दर और प्रभावशाली पंक्तियां---
हेमन्त कुमार
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