चलो अच्छा हुआ
बातें ख़त्म हुयीं
अब दुनियादारी
निभाई जाये
तुझे चाहते
रहने की सज़ा
एक बार फिर
सुनाई जाये
चाहतों की सजायें
अजब होती हैं
बेगैरत फूलों
की तरह
चलो एक बार
फिर किसी को
चाहा जाए
कुछ इस तरह
ज़िन्दगी को
मौत से
मिलाया जाये
यूँ ही नहीं
मेघ से
उमड़ -घुमड़ रहे
इन अलावों को
फिर से
जलाया जाये
इन रूह की
सीली लकड़ियों को
बुझे चराग से
जलाया जाए
इस सुलगते
धुएं के
गुबार में
चलो एक चेहरा
नया ढूँढा जाए
ज़िन्दगी के
तौर तरीकों को
ताक पर रखकर
एक बार फिर से
चाहतों का ज़नाज़ा
निकाला जाए
यूँ हसरतों को
रुसवा किया जाए
मौत से पहले
मौत को
पुकारा जाए
एक बार
फिर से
रूह के
ज़ख्मों को
उबाला जाए
रूह की
खंदकों में
उबलते लावे को
एक बार
फिर से
कढाया जाए
कुछ यूँ
दुनिया का
क़र्ज़ उतारा जाए
44 टिप्पणियां:
कविता में सघनता की अपेक्षा है। जैसे रिश्तों में इसके होने की चाहत, कविता के भाव बताते हैं। विस्तार पाकर संवेदना ....
सीली लकड़ियों को
बुझे चराग से
जलाया जाए
इस सुलगते
धुएं के
गुबार में
चलो एक चेहरा
नया ढूँढा जाए
चलो अच्छा हुआ
बातें ख़त्म हुयीं
अब दुनियादारी
निभाई जाये....
--
यही तो सार है इस रचना का!
--
कुछ यूँ
दुनिया का
क़र्ज़ उतारा जाए
--
सार्थक रचना रची है आपने!
जीवन की झंझावातो का प्रस्तुतिकरण बढ़िया रहा!
तुझे चाहते रहने की सजा एक बार फिर सुनाई जाए-- वाह ! क्या बात है !
.
रूह की
खंदकों में
उबलते लावे को
एक बार
फिर से
कढाया जाए
कुछ यूँ
दुनिया का
क़र्ज़ उतारा जाए
बहुत लाजवाब और उम्दा लिखा है......गहरी बात आसानी से कह दी आपने......वन्दना जी
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
sarthak lekhan.
ek purani film ka gana hai''duniya ko laat maro duniya salam kare'' shayad isi tarah aap ne jindgi ka karz utarne ki yojna banaye hai.
चाहत न हो पूरी तो सज़ा लगती है ....बहुत खूबसूरत रचना ..
बहुत ख़ूबसूरत और गहरे भाव के साथ उम्दा रचना लिखा है आपने! बधाई!
बहुत ही जानदार रचना!!
चलो अच्छा हुआ
बातें ख़त्म हुयीं
अब दुनियादारी
निभाई जाये
shuruaat hi behtareen hai vandana ji ... aur ant usse bhi zyada
कुछ यूँ
दुनिया का
क़र्ज़ उतारा जाए
bahut khoob ...
नहीं उतारेंगे तो प्रश्नचिन्ह खड़े कर देगी यह दुनिया।
कविता में आपके चिंतन की मौलिकता झलक रही है।...बधाई।
दुनिया का क़र्ज़ तो उतर जाएगा प्रेम का क़र्ज़ कैसे उतरेगा.. बहतु सुन्दर रचना.. प्रेम के उतर चढाव को अभिव्यक्त करती एक भीनी भीनी कविता..
Vandana! Mere to sach mano,raungate khade ho gaye!Gazab!
कुछ यूँ
दुनिया का
क़र्ज़ उतारा जाए ...।
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ अनुपम प्रस्तुति ।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
वंदना जी, बहुत खूबसूरत है यह ख्याल।
---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
वन्दना जी,
क्या बात है .....बहुत ही खूबसूरती से लिखे है अहसास आपने.....उबाला, खौलाया, जलाया ....वाह जी वाह |
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
कविता का आखिरी पैरा बहुत जानदार है पूरी कविता को एक अलग ही स्तर देता हुआ.
बहुत सुंदर शब्द विन्यास है, रचना में सटीक संप्रेषण है, शुभकामनाएं.
रामराम.
वाह...वाह...वाह...
और क्या कहूँ....
मन में उतर गयी यह सुन्दर रचना...
wah......achha kaha...
यह कुछ कुछ अलग सी और सार्थक लगी ! हार्दिक शुभकामनायें !!
बहुत सुन्दर.. वंदना जी बधाई..
वंदना जी,
नमस्ते!
पढ़ी-लिखी कविता!
आशीष
--
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
vndna ji aap ne bhid pr kripa drishti dali hridy se aabhari hoon yh smprk v smvad bna rhna hi bahut kuchh hai
hmari agli goshthi lgbhg27 nov ko srojni ngr me hogi vhan railway ka atithi grih hai us me aap sadr aamntrit hai aap email bhejen to soochna us pr aa jayegi mera email hai
dr.vedvyathit@gmail.com
एक बार फिर
चाहतों का
जनाज़ा निकला जाय .
बात कुछ जची नहीं .
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति .........
I like this andaaz e bayan.
har pankti asar karti hai...aur had tak asar kartee hai
http://pyasasajal.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
इन रूह की
सीली लकड़ियों को
बुझे चराग से
जलाया जाए
सीली लकड़ियाँ कब जलती हैं भला ...
दुनियादारी निभाने के लिये पर जलाना भी तो जरूरी है
सुन्दर भाव
बहुत ही सुन्दर कविता.. अभिव्यक्तियों को अच्छे शब्द दिए हैं ...
*चलो एक बर फ़िर किसी को चाहा जाये, ज़िन्दगी को मौत से मिलाया जाये*।
ग़मों से लबरेज़ इस कविता में कही हल्की सी उम्मीद की किरणों का बिम्ब आ जाये तो एक बेमिसाल रचना ,दुल्हन सी खिलखिलाती नज़र आयेगी।
hriday ki vyatha hi to kavita hoti hai
bina dard ki jindgi ka kya matlab
dil se nikli hai aapki rachna
चलो अच्छा हुआ
बातें ख़त्म हुयीं
अब दुनियादारी
निभाई जाये....
बढ़िया प्रस्तुतिकरण ...
चलो अच्छा हुआ
बातें ख़त्म हुयीं
अब दुनियादारी
निभाई जाये
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति .....
एक बार
फिर से
रूह के
ज़ख्मों को
उबाला जाए
और फिर सीली लकड़ियों को बुझे चराग से जलाने की ख्वाहिश .. बहुत खूब
ज़िन्दगी के
तौर तरीकों को
ताक पर रखकर
एक बार फिर से
चाहतों का ज़नाज़ा
निकाला जाए....
बहुत ही सटीक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...आभार
अपने अंतर्मन की गहराईयों में दफ़्न अंतर्व्यथा के संमदर में डूबते उतराते रहने के साथ साथ अपने परिवेश के कर्जों को भी निभाने का हौसला जीवन को असाधारण बना देता है. बेहद गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
Vandana Ji,
Namaste.
Mere blog per aapko aane ka nyota de raha hu..
Aapse bebaak comment ki aasha rahegi.
Anmol
बहुत ही सुन्दर!
वंदना जी..
धन्यवाद, बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी कालजई रचना के लिए...
मेरे लिए ये 'बच्चन' जी की "मधुशाला" जैसी सर्वांगमें रचना है...
कृपया आप अन्यथा ना लें पर अगर मैं ले सकता तो इसका कॉपी राईट ले लेता..
जिससे इसे बस मैं अपने पास ही रख लेता...
अफ़सोस है मैं ऐसा नहीं लिख सका.. पर किसी ने तो लिखा.. :)
मेरे लिए अतुलनीय काव्य....
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