1
चुप की खाली ओखली में
कूटने को नहीं बची
कोई संवेदना अहसास या जज़्बात
और सागर में न बचा हो पानी
ऐसा भी नहीं
फिर किस सुबह के इंतज़ार में
भटक रही है रात्रि की त्रिज्या
एक अजीब सी कशमकश का शिकार है आज कोई !!!
2
अन्दर पसरा सन्नाटा जाने कब होगा प्रसवित
मौन की विकल वेदना जाने कब होगी मुखरित
ये कौन से जुनूनी इन्कलाब का साया है
कि कुटिल गर्म हवाएं जाने कब होंगी अनुदित
3
एक शून्य जब
अनंत की ओर
विस्तार पाने लगे
तब खुद से मुखातिब होना भी दुष्कर लगे ..........
4
जरूरी तो नहीं रोज कुछ कहा जाए
जरूरी तो नहीं रोज कुछ सुना जाए
कहीं इसी कहने सुनने में ही
ये ज़िन्दगी न हाथ से निकल जाए
5
कुछ सवालों के जवाब पहले से तैयार रखती है दुनिया
जाने कैसे दूसरे को इतना नादान समझती है दुनिया
कि भीड़ में भी पहचान हो जाती है कमज़र्फों की
जाने कैसे रोज ढकोसले का नकाब बदलती है दुनिया
6
हैवानियत का कोहरा कब छंटेगा
इंसानियत का सूरज कब उगेगा
कौन जाने ?
7
उन माओं के जाने कितने टुकड़े हो गए
जिनके लाल वक्त से पहले कबों में सो गए
8
मेरे लिए बहुत सी बातें सिर्फ बातें थीं
और तुम्हारे लिए
सिर्फ बातें नहीं जाने कितने अर्थ थे
कोई शब्दकोष हो तो बताना
आसान हो जायेगा समझना
क्योंकि
अब मैं उन अर्थों के अर्थ खोज रही हूँ ..........एक अरसे से
9
वो ख्वाब ही क्या जो बुना जाए
वो इश्क ही क्या जो किया जाए
चलो किस्सा ही खत्म किया जाए
न दिल दिया जाए न दर्द लिया जाए
6 टिप्पणियां:
बहुत सही
बहुत ही सुन्दर रचना।
सभी एक से बढ़ के एक ....बहुत ख़ूब
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
मेरे लिए बहुत सी बातें सिर्फ बातें थीं
और तुम्हारे लिए
सिर्फ बातें नहीं जाने कितने अर्थ थे
सुन्दर भाव
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
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