इक अरसे बाद
बिना पटकथा के संवाद कर गया कोई
दिल धड़कन रूह तक उत्तर गया कोई
अब धमकती है मिटटी मेरे आँगन की
जब से नज़रों से जिरह कर गया कोई
मैं ही लक्ष्य
मैं ही अर्जुन
कहो
कौन किस पर निशाना साधे अब ?
उल्लास के पंखों पर सवार हुआ करती थी
वो जो चिडिया मेरे आँगन में उतरा करती थी
इस दिल की राज़दार हुआ करती थी
नरगिसी अंदाज़ में जब आवाज़ दिया करती थी
मुझसे मैं खो गयी
क्या से क्या हो गयी
ज़िंदा थी जो कल तलक
आज जाने कहाँ खो गयी
दर्द जब भी पास आया
दिल ने इक गीत गाया
नैनो ने अश्रु जब भी ढलकाया
रात ने इक जश्न मनाया
जाने कहाँ खो गयी इक दुनिया
अब खुद को ढूँढ रही हूँ मैं
न शब्द बचे न अर्थ
वाक्यों में खो गयी हूँ मैं
चुप्पी का कैनवस जब गहराता है
अक्स अपना ही कोई उभर आता है
खुद के पहलू से जब भी दूर जा बैठे
कोई मुझे ही मुझसे मिला जाता है
बूँद बूँद रिसती ज़िन्दगी
फिर किस पर करूँ गुमान
बस इंसाँ में इंसानियत बाकी रहे
लम्हा एक ही काफ़ी है जीने के लिए
कोशिशों के पुल तुम चढते रहो
बचने की तजवीजें मैं करती रहूँ
इसी बेख्याली में गुजरती रहेगी ज़िन्दगी
जाने कौन से कैल ,चीड, देवदार हैं
चीरे जाती हूँ मगर कटते ही नहीं
मौन के सुलगते अस्थिपंजरों के
अवशेष तक अब मिलते ही नहीं
जरूरी नहीं
धधकते लावे ही कारण बनें
शून्य से नीचे जाते
तापमाप पर भी
पड जाते हैं फ़फ़ोले .........
बिना पटकथा के संवाद कर गया कोई
दिल धड़कन रूह तक उत्तर गया कोई
अब धमकती है मिटटी मेरे आँगन की
जब से नज़रों से जिरह कर गया कोई
मैं ही लक्ष्य
मैं ही अर्जुन
कहो
कौन किस पर निशाना साधे अब ?
उल्लास के पंखों पर सवार हुआ करती थी
वो जो चिडिया मेरे आँगन में उतरा करती थी
इस दिल की राज़दार हुआ करती थी
नरगिसी अंदाज़ में जब आवाज़ दिया करती थी
मुझसे मैं खो गयी
क्या से क्या हो गयी
ज़िंदा थी जो कल तलक
आज जाने कहाँ खो गयी
दर्द जब भी पास आया
दिल ने इक गीत गाया
नैनो ने अश्रु जब भी ढलकाया
रात ने इक जश्न मनाया
जाने कहाँ खो गयी इक दुनिया
अब खुद को ढूँढ रही हूँ मैं
न शब्द बचे न अर्थ
वाक्यों में खो गयी हूँ मैं
चुप्पी का कैनवस जब गहराता है
अक्स अपना ही कोई उभर आता है
खुद के पहलू से जब भी दूर जा बैठे
कोई मुझे ही मुझसे मिला जाता है
बूँद बूँद रिसती ज़िन्दगी
फिर किस पर करूँ गुमान
बस इंसाँ में इंसानियत बाकी रहे
लम्हा एक ही काफ़ी है जीने के लिए
कोशिशों के पुल तुम चढते रहो
बचने की तजवीजें मैं करती रहूँ
इसी बेख्याली में गुजरती रहेगी ज़िन्दगी
जाने कौन से कैल ,चीड, देवदार हैं
चीरे जाती हूँ मगर कटते ही नहीं
मौन के सुलगते अस्थिपंजरों के
अवशेष तक अब मिलते ही नहीं
जरूरी नहीं
धधकते लावे ही कारण बनें
शून्य से नीचे जाते
तापमाप पर भी
पड जाते हैं फ़फ़ोले .........
9 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
very well written .today i have read your poems in janvani's magazine ravivani .nice to read .
very well written .today i have read your poems in janvani's magazine ravivani .nice to read .
बहुत ही उत्कृष्ट रचना ...बहुत बधाई ..
बेहतरीन प्रस्तुति काव्य नई ऊचाई छू रहा है बधाई
पंक्तियां जो मन को छू गईं---वैसे तो हर एक शब्द बायां-ए-जिंदगी है.
बिन पटकथा के संवाद--
मैं ही लक्षय,मैं ही अर्जुन
वो चिडिया----
नरगिसी अंदाज में---
दर्द जब भी पास आया--
बूंद-बूंद रिसती जिंदगी--
वाह!!
चुप्पी का कैनवस जब गहराता है
अक्स अपना ही कोई उभर आता है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति मनोभावना को साकार कर दिया है
Aap ki har prastuti man ko chu lete hai sadhu wad
एक टिप्पणी भेजें