जब सारा पानी चुक जाये………कहीं ठहरने को जी चाहता है मगर्………कोई है जो
भरमाता है ………असमंजस की सीमा पर खडा राह रोकता है ………ना जाने कौन आवाज़
लगाता है …………और चल पडता है फिर दिशाहीन सा आवाज़ की दिशा में ……………जो छलावे
सी छल जाती है और फिर सफ़र एक मोड पर आकर फिर चुक जाता है …………ये अनवरत
चलता सिलसिला………कहीं रेगिस्तान की जलकुंभी तो नहीं …………आखिर कब तक कोई
उधेडे और बुने स्वेटरों को ???
हलक मे फ़ँस रहा है ………आँख से नही बहता ………वो खामोश पल ………गुमनाम अंधेरों की दहलीज पर ठिठकता तो है मगर ………सहूलियतों की रौशनियाँ रास नहीं आतीं ………मिटने की हसरत में जी उठता है और सलीब पर लटक जाता है …………इम्तिहान की बेजारियाँ और क्या होंगी???
सीमाहीन दिशाहीन कतरे समेटने को जो हाथ बढे ………सारी रौशनियाँ गुल हो गयीं …………साज़िशों के दौर में वक्त बेज़ार मिला ………कंठहीन कोकिला के स्वरों पर पहरे मिले ………ना सुबह को रौशनी मिली ना सांझ को बाती मिली………बस दीमक ही सब चाटती रही …………खोखली दीवारों के पार मौसम नहीं बदला करते!!!
हलक मे फ़ँस रहा है ………आँख से नही बहता ………वो खामोश पल ………गुमनाम अंधेरों की दहलीज पर ठिठकता तो है मगर ………सहूलियतों की रौशनियाँ रास नहीं आतीं ………मिटने की हसरत में जी उठता है और सलीब पर लटक जाता है …………इम्तिहान की बेजारियाँ और क्या होंगी???
सीमाहीन दिशाहीन कतरे समेटने को जो हाथ बढे ………सारी रौशनियाँ गुल हो गयीं …………साज़िशों के दौर में वक्त बेज़ार मिला ………कंठहीन कोकिला के स्वरों पर पहरे मिले ………ना सुबह को रौशनी मिली ना सांझ को बाती मिली………बस दीमक ही सब चाटती रही …………खोखली दीवारों के पार मौसम नहीं बदला करते!!!
21 टिप्पणियां:
खोखली दीवारों के पार मौसम ... बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में
आभार इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये
बेहद सुन्दर प्रस्तुति
कहाँ लगी हैं उधेड़ बुन में .... हर पल कुछ उधड़ता है तो बुना भी जाता है ..... मौसम तो बदलता है पर एहसास नहीं होता .... सुंदर प्रस्तुति
उधेड़ - बुन का अनवरत सिलसिला चलता रहता है, यही तो है "एक खामोश सफ़र ज़िन्दगी का …" गहन भाव... आभार
वाह वंदना....
एक एक लफ्ज़ दिल पर वार करता सा....
सस्नेह
अनु
अरे बाबा ! अब सर्दियाँ आ गई है देखो स्वेटर के साथ साथ और क्या क्या शीर्षक मिलेंगे :-))))
उधेड़ बुन ने उलझा दिया . :)
हलक मे फ़ँस रहा है ………आँख से नही बहता ………वो खामोश पल ………गुमनाम अंधेरों की दहलीज पर ठिठकता तो है मगर ………सहूलियतों की रौशनियाँ रास नहीं आतीं ………मिटने की हसरत में जी उठता है और सलीब पर लटक जाता है …………
निशब्द करती है आपकी बातें ....
हलक मे फ़ँस रहा है ………आँख से नही बहता ………वो खामोश पल ………गुमनाम अंधेरों की दहलीज पर ठिठकता तो है मगर ………सहूलियतों की रौशनियाँ रास नहीं आतीं ………मिटने की हसरत में जी उठता है और सलीब पर लटक जाता है …………
निशब्द करती है आपकी बातें ....
मिटने की हसरत में जी उठता है और सलीब पर लटक जाता है......
बहुत बढ़िया |
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इतनी सारी बिंदियां
मौसम हमेशा बदलते हैं, बस धीरज रखने की आवश्यकता है।
SUNDAR PRASTUTI---JINDAGI KYA HAI EK UDHEN BUN HI TO HAI,
अति सुन्दर भावपूर्ण रचना..
शब्द-शब्द अंतस तक छुते है..
:-)
खोखली दीवारों के पार मौसम नही बदला करते , बहुत सुन्दर .एक एक पंक्ति अपने आप में ख़ास है।
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........
mann ke andar bahut kuch bunta ughadta rahta hai ... mausam baahar dikhe naa dikhe ... mann ka ek ek mausam seekh deta hai
उलझा दिया अल्फाजों ने..सार्थक प्रस्तुति.
पिछली जकड़न तो फिर भी त्याग नहीं पाता है ऊन..
शब्दों का प्रभावशाली प्रयोग
खोखली दीवारों के पार मौसम बदला करते है बशर्ते हम मानसून बन घुमड़ जाएँ आसमां में .
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