मेरे दो व्यक्तित्व हैं
जिसमे पहले में मैं
वो औरत हूँ
वो औरत हूँ
जो पत्नी भी है
माँ भी है
सांसारिक जिम्मेदारियों में
बंधी आम स्त्री
अपने परिवार को
पूर्णतः समर्पित
जो अपने पति
अपने बच्चों के लिए
हर हालात का
मुकाबला कर जाती है
सबके मुख पर
एक मुस्कान लाने के लिए
ज़माने से लड़ जाती है
अपने "मैं" को उतार कर
खूँटी पर टांग देती है
जो परिवार की
धुरी बन जाती है
सबका जीवन जिसके
इर्द - गिर्द घूमता है
हर छोटी बड़ी समस्या का
समाधान बन जाती है जो
हाँ , बस वो ही तो
एक आम औरत हूँ
जिसकी चारपाई के चार पाए उसके
प्यार ,विश्वास, स्नेह
और संबंधों से जुड़े होते हैं
एक में कमी भी
उसके अस्तित्व पर
प्रश्नचिन्ह बन जाती है
और यहाँ कोई रबड़ भी नहीं
जिससे लिखा मिटाया जा सके
ना कोई सफहा (पृष्ट)
जिसे फाड़ा जा सके
तो हर कदम पर
अग्निपरीक्षाओं से घिरी
मजबूत नींव
बनती औरत हूँ मैं
जहाँ संदेह , संभावनाओं का
कोई स्थान नहीं
सिर्फ विश्वास और स्नेह के
लौह्स्तम्भों पर टिकी
संबंधों की ईमारत ही
उसका राजमहल होती है
और दूसरा व्यक्तित्व भी है मेरा
हाँ , मुझमे जीती है
एक ऐसी कल्पनाशील स्त्री
जो मनोभावों को
कवित्व में ढाल कर
मनोयोग कर
स्वयं को संबल प्रदान करती है
जिसमे वो मिलती है
ना जाने कितने
अन्जान चेहरों से
जिन्हें ना देखा
ना जाना
मगर फिर भी उन्होंने
उसके कल्पनालोक में
अपना अस्तित्व बनाया
कोई भाई बना
तो कोई सखा
तो कोई प्रेमी
तो कोई हितैषी
तो कोई शुभचिंतक
तो कोई कटु आलोचक
सबका स्वागत करती हूँ
सबको समभाव से देखती हूँ
मगर फिर भी
कहीं कहीं किसी के
भावों में
शायद कुछ बूँदें
अपनेपन की
ऐसी गिर जाती हैं
कि उसे मुझमे
अपनी कल्पना नज़र
आने लगती है
कल्पना में कल्पना का आह्वान
एक अनोखा सा संसार रच जाता है
और "मैं" उस भाव से
निकलना चाहती हूँ
उस अनचाहे बँधन से
मुक्त होना चाहती हूँ
क्योंकि मेरी ये तो फितरत नहीं
मैं वो तो नहीं
जो कोई बनाना चाहता है
या मुझे अपनी
कल्पना की तस्वीरों में
उतरना चाहता है
काल्पनिक चरित्र भी
ना मुझे भाता है
छुड़ाती हूँ स्वयं को
उस फंद से
स्थिति से रु-ब-रु कराकर
हकीकत के धरातल पर
काल्पनिकता को लाकर
मगर ना जाने फिर भी
शायद कुछ ख्यालों से
मेरी तस्वीर का दूसरा रुख
निकलता ही नहीं
और "मैं" कौन हूँ
वो औरत जो घर परिवार
को समर्पित है
या वो जो एक
संवेदनशील मन रखती है
हर भाव को कविताओं में
ढाल खुद को अभिव्यक्त करती है
इस प्रश्न जाल में उलझने लगती हूँ
क्योंकि हैं तो दोनों ही
मेरे व्यक्तित्व
एक मेरा धर्म है
और एक मेरा कर्म
दोनों में से किसी से
विमुख ना हो पाती हूँ
पर फिर भी
स्वयं के साथ
सबको बतलाना चाहती हूँ
हकीकत से मिलवाना चाहती हूँ
बताना चाहती हूँ
वास्तविकता के कठोर धरातल पर
मैं वो औरत पहले हूँ
जो अपने परिवार को समर्पित है
फिर चाहे
संवेदनाओं के कितने ही
शिखर क्यों ना बुलंद हों
मेरा कर्म कभी मुझे
मेरे धर्म से डिगा नहीं सकता
तो आज तक ना
किया होगा किसी ने
आज मैं करती हूँ
ना आत्ममुग्धता है
ना आत्मश्लाघा
बस स्वयं से मुखातिब
होने के लिए
खुद से अपनी पहचान
कराने के लिए
लो आज की ये कृति
मैं खुद को ही समर्पित करती हूँ
आत्मविश्लेषण के हवि में
पूर्णाहूति होना भी तो जरूरी होता है
यूँ ही तो मनोकामनाएं पूर्ण नहीं होतीं ..........
(यूँ तो सभी एक दूजे को तोहफ़ा देते हैं मगर खुद को तोहफ़ा देने का ये पहला मौका आज मै खुद अपने आप को दे रही हूँ आज के दिन के लिये खुद को तोहफ़ा देने के लिये इससे उत्तम और क्या होगा )
(यूँ तो सभी एक दूजे को तोहफ़ा देते हैं मगर खुद को तोहफ़ा देने का ये पहला मौका आज मै खुद अपने आप को दे रही हूँ आज के दिन के लिये खुद को तोहफ़ा देने के लिये इससे उत्तम और क्या होगा )
36 टिप्पणियां:
कोई भाई बना तो कोई सखा तो कोई प्रेमी तो कोई हितैषी तो कोई शुभचिंतक तो कोई कटु आलोचक सबका स्वागत करती हूँ सबको समभाव से देखती हूँ मगर फिर भी कहीं कहीं किसी के भावों में शायद कुछ बूँदें अपनेपन की ,,,,,,,
खुद को समर्पित करती,भाव पुर्ण बहुत ही सुंदर रचना के लिये ,,,,,,,वंदना जी बधाई ,,,स्वीकारे
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामना.. बढ़िया कविता जो स्वयं से सार्थक संवाद कर रही है...
जन्मदिन पर इतना सुन्दर आत्मविश्लेषण !
इससे अच्छा उपहार और क्या होंगा . आपके जीवन में दुनिया भर की खुशिया आये . आपको वो सब कुछ ईश्वर दे , जो आपको और आपके परिवार को खुश करे.
कविता में आपने अपने स्त्रीत्व के हर पहलु को उभारा है . बधाई स्वीकारे करे.
anmol hai ye uphar......janmdin ki badhayee.
अपने "मै " को उतार के खूंटी पर तंग देती है...
अच्छी लगी ये पंक्ति
औरत का समर्पण दिखाती सुंदर कृति.
बधाई वंदनाजी.. जन्मदिन की भी.. और खुद को पहचानने की इस कोशिश के लिए भी..
स्त्रीत्व के विभिन्न रूपों का बहुत सटीक आंकलन... आत्ममंथन करती बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें !
janamdin ki bahut bahut shubhkamna ......bahut accha vishleshan bhi....
यह जो दूसरा व्यक्तित्व है न , वह पहले की दृढ़ता है ... कल्पनाशीलता असंभव को संभव बनाती है ......खुद को व्याख्यित करके , खूबसूरत अलंकृत जिल्द चढ़ा जो तोहफा दिया है - वह जीवन मूल्य है - जिसकी प्रेरणा ईश्वर है , और आंतरिक तेजस्वी जिजीविषा ,
यह उपहार अपनी चमक बनाये रखे
आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.....खुदा आपको लम्बी उम्र दे और ढेर सारी खुशियाँ .....आमीन।
दोनों ही व्यक्तित्व के पहलु हैं....मैं कौन हूँ ?.....ये जगत का एकमात्र प्रश्न है जब इसका हल मिल गया समझो सब मिल गया।
काश उनका चौराहा फिर मिलता..
क्या दूं तुम्हें शुभकामनाएं !
आत्मविश्लेषण आसान काम नहीं है फिर भी जब एक औरत को उसकी भूमिका के अनुसार पढो तो उसके कई रूप होते हें और वह हर रूप को उतनी दक्षता के साथ जीती है कि उसका कोई भी रूप कहीं कमजोर नजर नहीं आता है लेकिन ऐसा हर एक के साथ नहीं होता क्योंकि हर कोई वंदना नहीं होता.
जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई!...आप के दोनों व्यक्तित्व आकर्षक है!
खुद को समर्पित यह उत्कृष्ट अभिव्यक्ति बहुत ही अच्छी लगी बधाई सहित शुभकामनाएं ...
बहुत ही बढ़िया।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
शाश्वत
एक यथार्थ,
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामना... आत्मविश्लेषण के हवि में पूर्णाहूति होना बहुत जरूरी होता है. बहुत-बहुत सुन्दर पूर्णाहुति दी है आपने वंदना जी...
SUNDAR
वाह वंदना जी, एक सांस मे पूरी रचना पढ़ गये, शुरू करने के बाद रोकना संभव ही नहीं था। इतनी प्यारी और मन को प्रफ़्फुलित करने वाली रचना के लिए शुक्रिया और जन्म दिन की बधाई। शब्दों का संयोजन अनुपम है और सटीक भी। स्त्री के आपने दौ व्यक्तित्व की बहुत सुंदर व्याख्या की है और सच मे सभी स्त्रियाँ के दोहरे, तीहरे... व्यक्तित्व होते हैं। करीब सभी अपने आपको इस रचना मे पाएँगी।
डा० पाण्डे ने बहुत सुंदर लिखा है,
तू अगर ना होती तो
ये समाँ ना होता
ये जमीँ ना होती
ना आसमाँ होता
ये धरा का नजारा ना होता
औरत अगर ना होती तो
ये सँसार ना होता
माँ भी तू है
बेटी भी तू है
हाँ किसी की पत्नी भी तू है
अगर तू ना होती तो ये
पुरूष बाप पति या बेटा ना होता
तेरी शक्ती ना होती
तेरी भक्ती ना होती
ये शिव और कुछ नही बस शव होता।
सच है, या तो कुछ होता ही नहीं और अगर होता तो वह इतना सुंदर ना होता।
वाह वंदना जी, एक सांस मे पूरी रचना पढ़ गये, शुरू करने के बाद रोकना संभव ही नहीं था। इतनी प्यारी और मन को प्रफ़्फुलित करने वाली रचना के लिए शुक्रिया और जन्म दिन की बधाई। शब्दों का संयोजन अनुपम है और सटीक भी। स्त्री के आपने दौ व्यक्तित्व की बहुत सुंदर व्याख्या की है और सच मे सभी स्त्रियाँ के दोहरे, तीहरे... व्यक्तित्व होते हैं। करीब सभी अपने आपको इस रचना मे पाएँगी।
डा० पाण्डे ने बहुत सुंदर लिखा है,
तू अगर ना होती तो
ये समाँ ना होता
ये जमीँ ना होती
ना आसमाँ होता
ये धरा का नजारा ना होता
औरत अगर ना होती तो
ये सँसार ना होता
माँ भी तू है
बेटी भी तू है
हाँ किसी की पत्नी भी तू है
अगर तू ना होती तो ये
पुरूष बाप पति या बेटा ना होता
तेरी शक्ती ना होती
तेरी भक्ती ना होती
ये शिव और कुछ नही बस शव होता।
सच है, या तो कुछ होता ही नहीं और अगर होता तो वह इतना सुंदर ना होता।
Aapko apne jeewn ke liye anek shubh kamnayen!
प्रभावशाली अभिवयक्ति... अपने वक्तितव.की.....
SUNDAR JANM DIWAS AUR US PAR KAVITAAON MEIN KARTAVYON SE
OTPROT AAPKAA ANUPAM JEEWAN .
BAHUT - BAHUT BADHAAEE AUR
SHUBH KAMNA AAPKO AUR AAPKE
PARIWAAR JANON KO .
SUNDAR JANM DIWAS AUR US PAR KAVITAAON MEIN KARTAVYON SE
OTPROT AAPKAA ANUPAM JEEWAN .
BAHUT - BAHUT BADHAAEE AUR
SHUBH KAMNA AAPKO AUR AAPKE
PARIWAAR JANON KO .
जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
खूबसूरत रचना ।
अर्थपूर्ण....सशक्त अभिव्यक्ति
हर औरत के मन के भाव लगे आपके विचार , शुभकामनायें स्वीकारें ...
वाह क्या रचना है.जबरदस्त .
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
----वह जो दूसरा व्यक्तित्व है वह इसीलिये निखर पाता है कि पहला व्यक्तित्व अपने पूर्ण रूप में अस्तित्व में आपाया...यह पहला व्यक्तित्व ही नारी का मूल व्यक्तित्व है जो अन्य विभिन्न व्यक्तित्वों, नारी आयामों को संकल्प व शक्ति देकर जन्म देता है...
---और जो दूसरा ( व दूसरे) व्यक्तित्व हैं वे सदैव ही पहले व्यक्तित्व की महत्ता को और भी अधिक स्पष्टता से स्थापित करते हैं |
---क्या यह समन्वित व्यक्तित्व ही "नारी" नहीं है ?
mantramugh hoon...bas itna hee kahoonga. :)
एक औरत एक साथ कई जिंदगी जीती है....आपने हर पहलू को बहुत सुंदरता के साथ बताया है। बधाई...
ना आत्ममुग्धता
ना आत्मस्लाघा
खुबसूरत समर्पण
बहूत सुंदर ह्रदयस्पर्शी रचना..
प्रभावशाली भाव अभिव्यक्ती...
बेहतरीन प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
जन्म दिन की बधाई. बहुत सुन्दर रचना
ये कबूलनामा पसंद आया।
ओह!
बहुत खूब.
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बाहरी 'मै' एक दो क्या हजार हो सकते हैं.
पर आंतरिक 'मैं' तो स्थूल,सूक्ष्म और कारण से परे 'सत्-चित-आनन्द मय'
ही है वंदना जी.
बाहरी 'मैं' को आप कितनी भी अभिव्यक्ति दीजियेगा
आतंरिक तो हमेशा एक मौन,शांत गंभीर आनन्द सागर है.
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