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शनिवार, 28 अप्रैल 2012

आओ ....... सिलवटो को बुहारें


आओ 
सिलवटो को बुहारें यादों की झाड़ू से
शायद अक्स में वक्त नज़र आये 
जो छुप गया है सर्द अँधेरे में
उस अक्स की कुछ गर्द उतारें

ये रोशनियों के आँचल में
ठिठकती तस्वीरें
चलो इक बार फिर से
इनके रंग में रंग भरें  


वो शम्मा के पिघलने पर
पड़ते निशानों पर
कुछ वक्त की और कुछ अपनी
आओ इक उम्र गढ़ें 


जो ठहर गयी थी 
किसी नज़र में
उस नमी को
उस बेकसी को
उस रुकी सी ज़िन्दगी को
चलो इक बार फिर से
कश्ती में सवार करें 
आओ चलो हम दोनों 
फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें 

32 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत से रास्ते बन्द हुए , आप मिलकर खोलें .... खुली हवाओं को गले लगा लें

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

चलो इक बार फिर से
कश्ती में सवार करें
आओ चलो हम दोनों
फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें,..

बहुत सुंदर भावो की प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई,..... वंदना जी

MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बिलकुल...........यही जज्बा कायम रहे.......
तस्वीर और भी खूबसूरत और रंगों से भरी होगी......

सादर.

अनु

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

'चलो इक बार फि‍र से अजनबी बन जाएं हम दोनों' का वि‍लोम...

Kailash Sharma ने कहा…

ये रोशनियों के आँचल में
ठिठकती तस्वीरें
चलो इक बार फिर से
इनके रंग में रंग भरें

...वाह ! लाज़वाब अहसास...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..आभार

shikha varshney ने कहा…

चलो फिर बढ़ चलें ..सुन्दर.

Human ने कहा…

अच्छी कविता । याद क्या है ! एक बीता वक्त लकिन आदमी को खुद को नही बीतने देना चाहिए । सुख-दुख जीत-हार से परे है जो उस वक्त को भी वक्त समझना चाहिए ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह...बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

अल्फ़ाज़ के रौशनदानों से आती सिसकियों की मानिंद
देखिए एक लघुकथा
विवाद -एक लघुकथा डा. अनवर जमाल की क़लम से Dispute (Short story)

http://mankiduniya.blogspot.com/2012/04/dispute-short-story.html

सदा ने कहा…

फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें

बहुत ही बढि़या ...

mridula pradhan ने कहा…

wah......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सिलवटों को धीरे धीरे हटाना होगा।

विभूति" ने कहा…

भावों से नाजुक शब्‍द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........

kshama ने कहा…

Kaise soojh jate hain itne badhiya alfaaz?

Human ने कहा…

अच्छी कविता । याद क्या है! बीते हुए वक्त का दरवाजा जो कई मंजरोँ के गुलशन मेँ खुलता है । लेकिन उसका हर गुलशन चाहे काटोँ वाला हो या फूलोँ का होता बासी ही है क्योँकि बीता हुआ है ।उसमेँ आदमी भी बीतने लगता है । पर सुख-दुख हार-जीत से परे भी एक वक्त होता है जो बीत कर भी बीता हुआ नहीँ होता ।

Ramakant Singh ने कहा…

फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें,..
aashaon men bandhi sundar prastuti.

जिंदगी हमें थोडा सा हैरान करती है

मनोज कुमार ने कहा…

सिलवटें जितनी जल्दी ठीक कर दी जाएं उतनी जल्दी नई तस्वीर गढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नयी शुरुआत हो ....अच्छी प्रस्तुति

Dr Xitija Singh ने कहा…

आओ चलो हम दोनों
फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें ....

बहुत खूबसूरत रचना वंदना जी .. शुभकामनाएं ..

M VERMA ने कहा…

उस रुकी सी ज़िन्दगी को
चलो इक बार फिर से
कश्ती में सवार करें
आमीन, ऐसा ही हो ....

Saras ने कहा…

जहाँ अंत दिखाई देता है ...वह दरअसल एक नयी शुरुआत भी तो हो सकती है ....आओ एक और शुरुआत करें ....बहुत सुन्दर !

Onkar ने कहा…

sundar prastuti

रचना दीक्षित ने कहा…

सिलवटो को बुहारें यादों की झाड़ू से
शायद अक्स में वक्त नज़र आये
जो छुप गया है सर्द अँधेरे में
उस अक्स की कुछ गर्द उतारें.

बहुत सुंदर भाव. खुली हवा खुली खिड़कियों से ही आएगी.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ये रोशनियों के आँचल में
ठिठकती तस्वीरें
चलो इक बार फिर से
इनके रंग में रंग भरें

रोशनी और रंग ईश्वर के श्रेष्ठ उपहार हैं।
भावप्रवण कविता।

Prakash Jain ने कहा…

Bahut khoob...phir se sarjan karein..."phit se tasvir gadhe"

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

बहुत बढ़िया....

RITU BANSAL ने कहा…

यादों को परिभाषित किया है आपने

बेनामी ने कहा…

बेहद खुबसूरत 'फिर' से बनाना या कुछ बनना बहुत मुश्किल होता है पर कोशिश की जाये तो क्या नहीं हो सकता ।

बेनामी ने कहा…

बेहद खुबसूरत 'फिर' से बनाना या कुछ बनना बहुत मुश्किल होता है पर कोशिश की जाये तो क्या नहीं हो सकता ।

बेनामी ने कहा…

बेहद खुबसूरत 'फिर' से बनाना या कुछ बनना बहुत मुश्किल होता है पर कोशिश की जाये तो क्या नहीं हो सकता ।

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

तस्वीर में नए रंग भरकर
जीवन को रंगीन बनाना ही चाहिए...
बेहतरीन अभिव्यक्ति....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब .. मन के कोमल भाव संजोये हैं इस रचना में ...