आओ
सिलवटो को बुहारें यादों की झाड़ू से
शायद अक्स में वक्त नज़र आये
जो छुप गया है सर्द अँधेरे में
उस अक्स की कुछ गर्द उतारें
ठिठकती तस्वीरें
चलो इक बार फिर से
इनके रंग में रंग भरें
वो शम्मा के पिघलने पर
पड़ते निशानों पर
कुछ वक्त की और कुछ अपनी
आओ इक उम्र गढ़ें
जो ठहर गयी थी
किसी नज़र में
उस नमी को
उस बेकसी को
उस रुकी सी ज़िन्दगी को
चलो इक बार फिर से
कश्ती में सवार करें
आओ चलो हम दोनों
फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें
32 टिप्पणियां:
बहुत से रास्ते बन्द हुए , आप मिलकर खोलें .... खुली हवाओं को गले लगा लें
चलो इक बार फिर से
कश्ती में सवार करें
आओ चलो हम दोनों
फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें,..
बहुत सुंदर भावो की प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई,..... वंदना जी
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
बिलकुल...........यही जज्बा कायम रहे.......
तस्वीर और भी खूबसूरत और रंगों से भरी होगी......
सादर.
अनु
'चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों' का विलोम...
ये रोशनियों के आँचल में
ठिठकती तस्वीरें
चलो इक बार फिर से
इनके रंग में रंग भरें
...वाह ! लाज़वाब अहसास...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..आभार
चलो फिर बढ़ चलें ..सुन्दर.
अच्छी कविता । याद क्या है ! एक बीता वक्त लकिन आदमी को खुद को नही बीतने देना चाहिए । सुख-दुख जीत-हार से परे है जो उस वक्त को भी वक्त समझना चाहिए ।
वाह...बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
अल्फ़ाज़ के रौशनदानों से आती सिसकियों की मानिंद
देखिए एक लघुकथा
विवाद -एक लघुकथा डा. अनवर जमाल की क़लम से Dispute (Short story)
http://mankiduniya.blogspot.com/2012/04/dispute-short-story.html
फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें
बहुत ही बढि़या ...
wah......
सिलवटों को धीरे धीरे हटाना होगा।
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........
Kaise soojh jate hain itne badhiya alfaaz?
अच्छी कविता । याद क्या है! बीते हुए वक्त का दरवाजा जो कई मंजरोँ के गुलशन मेँ खुलता है । लेकिन उसका हर गुलशन चाहे काटोँ वाला हो या फूलोँ का होता बासी ही है क्योँकि बीता हुआ है ।उसमेँ आदमी भी बीतने लगता है । पर सुख-दुख हार-जीत से परे भी एक वक्त होता है जो बीत कर भी बीता हुआ नहीँ होता ।
फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें,..
aashaon men bandhi sundar prastuti.
जिंदगी हमें थोडा सा हैरान करती है
सिलवटें जितनी जल्दी ठीक कर दी जाएं उतनी जल्दी नई तस्वीर गढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।
नयी शुरुआत हो ....अच्छी प्रस्तुति
आओ चलो हम दोनों
फिर से कोई एक
नयी तस्वीर गढ़ें ....
बहुत खूबसूरत रचना वंदना जी .. शुभकामनाएं ..
उस रुकी सी ज़िन्दगी को
चलो इक बार फिर से
कश्ती में सवार करें
आमीन, ऐसा ही हो ....
जहाँ अंत दिखाई देता है ...वह दरअसल एक नयी शुरुआत भी तो हो सकती है ....आओ एक और शुरुआत करें ....बहुत सुन्दर !
sundar prastuti
सिलवटो को बुहारें यादों की झाड़ू से
शायद अक्स में वक्त नज़र आये
जो छुप गया है सर्द अँधेरे में
उस अक्स की कुछ गर्द उतारें.
बहुत सुंदर भाव. खुली हवा खुली खिड़कियों से ही आएगी.
ये रोशनियों के आँचल में
ठिठकती तस्वीरें
चलो इक बार फिर से
इनके रंग में रंग भरें
रोशनी और रंग ईश्वर के श्रेष्ठ उपहार हैं।
भावप्रवण कविता।
Bahut khoob...phir se sarjan karein..."phit se tasvir gadhe"
बहुत बढ़िया....
यादों को परिभाषित किया है आपने
बेहद खुबसूरत 'फिर' से बनाना या कुछ बनना बहुत मुश्किल होता है पर कोशिश की जाये तो क्या नहीं हो सकता ।
बेहद खुबसूरत 'फिर' से बनाना या कुछ बनना बहुत मुश्किल होता है पर कोशिश की जाये तो क्या नहीं हो सकता ।
बेहद खुबसूरत 'फिर' से बनाना या कुछ बनना बहुत मुश्किल होता है पर कोशिश की जाये तो क्या नहीं हो सकता ।
तस्वीर में नए रंग भरकर
जीवन को रंगीन बनाना ही चाहिए...
बेहतरीन अभिव्यक्ति....
बहुत खूब .. मन के कोमल भाव संजोये हैं इस रचना में ...
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