वो कहते हैं मुझसे
कालजयी बन जाओ
कालजयी बन जाओ
भाषा शैली को दुरुस्त करो
मगर कैसे कालजयी बन जाऊँ
कैसे भावों से खिलवाड़ करूँ
अपने सुख के लिए लिखती हूँ
भावों में ही तो बस जीती हूँ
कैसे उनका भी व्यापार करूँ
वक्त की कसौटी पर खरा उतरने के लिए
कैसे खुद पर अत्याचार करूं
अब कसौटियो पर नही जी सकती
सबके लिये नही बदल सकती
भाव ही मेरी पूंजी हैं
भाव ही मेरा जीवन हैं
भाव बिना शून्य हूं
भावों को ही जीती हूँ
भावों को ही पीती हूँ
भाव ही मेरी थाती हैं
कैसे उनसे समझौता करूँ
कैसे भावों का त्याग करूँ
खुद से विश्वासघात करूँ
और रूह को लहूलुहान करूँ
फिर कहो कैसे शैली को बदलूं मै
कैसे भावों को कुचलूं मै
फिर मै ना मै रह पाऊंगी
अपने ही हाथों ठगी जाऊँगी
मुझे मुझसे जुदा मत करना
जैसी हूं बस वैसा अपना लेना
अब कालजयी नही बन सकती
कालजयी नही बन सकती............
अपने सुख के लिए लिखती हूँ
भावों में ही तो बस जीती हूँ
कैसे उनका भी व्यापार करूँ
वक्त की कसौटी पर खरा उतरने के लिए
कैसे खुद पर अत्याचार करूं
अब कसौटियो पर नही जी सकती
सबके लिये नही बदल सकती
भाव ही मेरी पूंजी हैं
भाव ही मेरा जीवन हैं
भाव बिना शून्य हूं
भावों को ही जीती हूँ
भावों को ही पीती हूँ
भाव ही मेरी थाती हैं
कैसे उनसे समझौता करूँ
कैसे भावों का त्याग करूँ
खुद से विश्वासघात करूँ
और रूह को लहूलुहान करूँ
फिर कहो कैसे शैली को बदलूं मै
कैसे भावों को कुचलूं मै
फिर मै ना मै रह पाऊंगी
अपने ही हाथों ठगी जाऊँगी
मुझे मुझसे जुदा मत करना
जैसी हूं बस वैसा अपना लेना
अब कालजयी नही बन सकती
कालजयी नही बन सकती............
28 टिप्पणियां:
vndna bahn aap apne vicharon par hi adi rahen tbhi sahity or smaaj ka bhlaa ho skegaa kalajyi na bne pliz ..akhtar khan akela kota rajsthan
भाव ही पूंजी है, भाव ही जीवन है।
सुंदर सृजन।
कैसे भावों से खिलवाड़ करूँ
अपने सुख के लिए लिखती हूँ
भावों में ही तो बस जीती हूँ
कैसे उनका भी व्यापार करूँ
वक्त की कसौटी पर खरा उतरने के लिए
कैसे खुद पर अत्याचार करूं
अब कसौटियो पर नही जी सकती
सबके लिये नही बदल सकती...
वंदनाजी बेमिसाल शब्द रचना है आपकी...ऐसा लग रहा है मेरी ही अंतरात्मा से निकले हैं ये शब्द और विचार... आप की तरह मैं भी नहीं बदल सकती कभी नहीं किसी के लिए भी नहीं...
बहुत खूब वंदना जी , यु ही बरकरार रखे भावनाए और तेवर शशक्त रचना के लिए बधाई
मुझे मुझसे जुदा मत करना
जैसी हूं बस वैसा अपना लेना
अब कालजयी नही बन सकती
कालजयी नही बन सकती............
Kya gazab likhti ho....mai to hamesha nishabd ho jatee hun!
कैसे भावों से खिलवाड़ करूँ
अपने सुख के लिए लिखती हूँ
भावों में ही तो बस जीती हूँ
कैसे उनका भी व्यापार करूँ
अत्यंत उत्कॄष्ट बात कही आपने, यह समझ आजाये तो यह लिखना भी ईश्वर की इबादत है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
अपने सुख के लिए लिखती हूँ
भावों में ही तो बस जीती हूँ
कैसे उनका भी व्यापार करूँ...
वाह! उत्तम प्रस्तुति...
सादर बधाई...
वंदना जी क्या खूब लिखा है आपने
दिल को छु लेने वाली कविता है
..........धन्यवाद्.....
भावों का गुबार जब स्थिर होता है तो कालजयी रचना बनती है।
wah......
बहुत ही खुबसूरत भावमयी रचना...
भावशून्य होकर कोई भी प्रस्तुति कैसे दी जा सकती है ? अपनी भावनाओं को अपनी ही शैली में अभिव्यक्त करती रहें । शुभकामनाएँ...
बिना भावों के कुछ लिखना मुश्किल है .. अच्छी प्रस्तुति ...
कैसे खुद पर अत्याचार करूं
अब कसौटियो पर नही जी सकती
सबके लिये नही बदल सकती...
मन को छू लेने वाली रचना....
लिखती अपने सुख के लिए
कैसे भावों से खिलवाड़ करूँ
भावों में ही बस जीती हूँ
कैसे उनका व्यापार करूँ
बस ऐसे।
बाक़ी आपकी भावनाएं आपकी हैं, भावभूमि भी।
बहुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी को सलाम! बेहतरीन प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
कैसे भावों से खिलवाड़ करूँ
अपने सुख के लिए लिखती हूँ
भावों में ही तो बस जीती हूँ
कैसे उनका भी व्यापार करूँ
हर शब्द गहराई लिये हुये ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत सुन्दर वंदना जी.......सही बात है कुछ बदलने से बनावट आ जाती है जो सादगी को छीन लेती है.......
सही लिखा है कालजयी होने की भी क्या तुक
कविता का विषय
बहुधा,अपने जीवन काल में ही कालजयी बन जाना नहीं हो पाता। और उसके बाद,आलोचक ही कालजयी घोषित करते नहीं अघाते।
Vandana ji , aap ke bhaav kaljayee
hain . Shubh kamnaayen .
इसी तरह से मन से लिखती रहीं, तो ब्लॉगजगत में कालजयी बनने से कोई नहीं रोक पाएगा।
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कसौटी पर शिखा वार्ष्णेय..
फेसबुक पर वक्त की बर्बादी से बचने का तरीका।
भावों में ही तो बस जीती हूँ
कैसे उनका भी व्यापार करूँ
सुन्दर अहसास
शाश्वत जीवन का आधार
bahut bhaavpoorn post hai sahi likha hai doosro ke kahne par badalna khud ki aatma ko dhoka dena hoga.
vandna ji
sach! aapki yah rachna kisi kaljai se kam nahi lagi .
kitni sundarta ke saath aapne ek yatharth ko is rachna ke madhyam se darshya hai.
iaske aage kya likhun-----?
nihshabd ho gai hun main to.
bahut bahut badhi
poonam
सीधे ह्रदय की बात कह दी वंदना जी !
कविता का मूल या यूँ कहें कि कविता का प्राण उसका भाव ही होता है |
शब्दों की ऐसी जादूगरी से क्या फायदा जिसमे भाव ही न हो ...
आह! आप तो कालजयी ही बनती जा रहीं हैं,वंदना जी.यूँ लगता आपकी इस प्रस्तुति में मानो भाव समुन्द्र ही उमड़ आया है.उमं तो आपने डुबो ही दिया है.आभार.
khubsurat rachna..
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