आज तुम फिर धडकी हो
क्या हुआ है जो आज
धडकनों ने फिर करवट ली है
क्या फिर से कोई सरगोशी हुई है
किसी याद ने फिर आँगन
बुहारा है
ये तो बियाबान जंगल में
एक उजाड़ मंदिर है
जहाँ अब कोई घंटा नहीं बजता
फिर कैसे आज टंकार हुई है
यहाँ तो देवी की मूरत भी
खंडित हो चुकी है
सिर्फ अवशेष ही बिखरे पड़े हैं
फिर कैसे यहाँ आज आहट हुई है
मैंने तो सुना है उजड़े दयारों में
चराग रौशन नहीं होते
फिर कैसे आज लौ टिमटिमा रही है
वैसे भी सब सावन हरे नहीं होते
फिर कैसे यहाँ कोंपल फूट रही है
क्या वक्त तुम्हारे आँगन में हवा दे रहा है
या कोई उड़ता तिनका मेरी आस का
आज तुम्हें भी चुभा है
जो तुमने मुझे इस कदर याद किया है
कि मेरी धडकनों ने फिर से जीना सीख लिया है
या फिर कोई बादल आज तुम्हारे
पाँव को फिर से छू गया है
और तुम्हें वो गुजरा लम्हा
याद आ गया है
जिसमे बरसात भी सूख गयी थी
और मोहब्बत भीग रही थी
कोई तो कारण है
यूँ ही तुम आज फिर से मुझमे नहीं धडकी हो
क्या हुआ है जो आज
धडकनों ने फिर करवट ली है
क्या फिर से कोई सरगोशी हुई है
किसी याद ने फिर आँगन
बुहारा है
ये तो बियाबान जंगल में
एक उजाड़ मंदिर है
जहाँ अब कोई घंटा नहीं बजता
फिर कैसे आज टंकार हुई है
यहाँ तो देवी की मूरत भी
खंडित हो चुकी है
सिर्फ अवशेष ही बिखरे पड़े हैं
फिर कैसे यहाँ आज आहट हुई है
मैंने तो सुना है उजड़े दयारों में
चराग रौशन नहीं होते
फिर कैसे आज लौ टिमटिमा रही है
वैसे भी सब सावन हरे नहीं होते
फिर कैसे यहाँ कोंपल फूट रही है
क्या वक्त तुम्हारे आँगन में हवा दे रहा है
या कोई उड़ता तिनका मेरी आस का
आज तुम्हें भी चुभा है
जो तुमने मुझे इस कदर याद किया है
कि मेरी धडकनों ने फिर से जीना सीख लिया है
या फिर कोई बादल आज तुम्हारे
पाँव को फिर से छू गया है
और तुम्हें वो गुजरा लम्हा
याद आ गया है
जिसमे बरसात भी सूख गयी थी
और मोहब्बत भीग रही थी
कोई तो कारण है
यूँ ही तुम आज फिर से मुझमे नहीं धडकी हो
31 टिप्पणियां:
गहन अभिव्यक्ति !
संदर्भो के मायने तलाशती कविता !
आभार !
वाह ...बहुत ही अच्छी शब्द रचना ...।
कविता क्या खुद के भावों की अभिव्यक्ति है? या उसे परे कुछ और भी, इस कविता को पढ़ महसूस हुआ कि कविता एक दिल से भले ही निकले लेकिन कई जिंदगियों की कहानी होती है.
जख्मों को यूं कुरेदती हो कि लगता है जख्म ताजा है और खून रिस रहा है, कहाँ से ले आती हो ये सब? आखों के आसुओं से सलाम लेती हो, जो लिख रही हो खूबसूरत तो है ही, और कहीं ना कहीं इंसान को सपनों की दुनिया से धरातल पर ले आता है.
बादलों का पैर को छूना अच्छा लगा... बेहतरीन कविता...
आशा जगी है .. फिर से जीवंत हुई धडकन .. उजाड़ बियाबान में फिर से गूंजेगी टंकार मंदिर के घंटों की ... फिर से हरियाली आएगी ... बस आहट सुनो ... और सहेजो इन परिवर्तन को .. अच्छी प्रस्तुति
नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव
3- http://neelkamal5545.blogspot.com
क्या वक्त तुम्हारे आंगन में हवा दे रहा है ...
वाह क्या बात है ... बहुत सुन्दर रचना !
yoon hi tum aaj fir se mujhmen nahin dhadki ho.....wah behad khoobsurat......
बहुत ही खुबसूरत धडकी जिन्दगी....
bahut gahan vicharon ko prastut kiya hai. isake liye kuchh likhoon shabd baune ho gaye.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार
क्या वक्त तुम्हारे आँगन में हवा दे रहा है
या कोई उड़ता तिनका मेरी आस का
आज तुम्हें भी चुभा है
जो तुमने मुझे इस कदर याद किया है
कि मेरी धडकनों ने फिर से जीना सीख लिया है...
गहन अभिव्यक्ति... कमाल का शब्द संयोजन.... लाजवाब रचना...
किसी के होने से कुछ होता है ... या अपने आप ... कुछ होता है पर क्यों ... बहुत कुछ तलाशती हुयी रचना है ...
बहुत लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
याद आया वो लम्हा जब बरसात सूख गयी थी , और मुहब्बत भीग रही थी ...
वाह ...शब्द जैसे अनदेखे चित्र साकार कर रहे हैं ...
बहुत सुन्दर !
shabd nahi hai kehne ko mere pass
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ye aata hai ,aapko mere comment mil to rahe hai naa
भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति .आभार
blog paheli no.1
अत्यन्त आत्मीय उद्गार।
bhaut hi sundar shabo se rachi jindgi ki rachna....
गहन भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
jabardastttttttt hai aaj to.
soch rahi hun maine kyu na chura li aaj aapki kalam ?
is baat ka afsos rahega.
bahut sunder prastuti.
खूबसूरत!!
गहन चिंतन मनन के बाद प्रस्तुत की गयी कविता अच्छी लगी। धन्यवाद।
आज तुम्हें भी चुभा है
जो तुमने मुझे इस कदर याद किया है
कि मेरी धडकनों ने फिर से जीना सीख लिया है
या फिर कोई बादल आज तुम्हारे
पाँव को फिर से छू गया है
anchhuye ahsaas hai jiski aahat kano se jane anjaane takrati hai ,ati uttam
very nice .......keep it up.
गहन भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति.
आज तुम्हें भी चुभा है
जो तुमने मुझे इस कदर याद किया है
कि मेरी धडकनों ने फिर से जीना सीख लिया है
या फिर कोई बादल आज तुम्हारे
पाँव को फिर से छू गया है
बहुत सुन्दर रचना
Beautifully expressed. Loving the creation .
इक बारिश वो थी
सूखी-सी
इक बारिश ये है
भीगी-सी
कहूं कैसे स्मृति हो आई
मेरे जीवन-धन
ऐसे ही!
आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (६) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ /आप हिंदी के सेवा इसी तरह करते रहें ,यही कामना हैं /आज सोमबार को आपब्लोगर्स मीट वीकली
के मंच पर आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /
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