अब अश्रु नही बहाती हूँ
अर्धांगिनी का हर फ़र्ज़
खूब निभाती हूं
अब तुमसे कुछ नही चाहती हूँ
शायद इसीलिये जी पाती हूँ
टाँक दि्या उन बरसो को
आसमाँ पर सितारे बना
जब प्रतीक्षा किया करती थी
हर वेदना के बूँटे बना
सजाया है आसमाँ की चूनर को
अब नीर नही बहाती हूँ
और तुझसे भी कुछ नही चाहती हूँ
डूबा दी वो कश्ती दरिया मे
जिसका साहिल तुम्हे बनाती थी
तुम संग महकने के
बेशुमार इत्र लगाती थी
अब ना दरिया है ना साहिल है
ना महकने की चाहत है
साजन , हाँ , मानो मेरी बात
अब तुम मुझे बुलाते हो
मगर मै ना आ पाती हूँ
मगर
अब न अश्रु बहाती हूँ
और तुमसे भी कुछ ना चाहती हूँ
हर मौसम पर अब मै
धूप की चादर लगाती हूँ
शीत बरखा का अब डर कैसा
ग्रीष्म को गले लगाती हूँ
छालों से मोहब्बत करती हूँ
मगर तुम से ना अब
कुछ चाहती हूँ
और साजन
तुम्हारी भी ना
अब बन पाती हूँ
इसलिये
अब न अश्रु बहाती हूं…………
अर्धांगिनी का हर फ़र्ज़
खूब निभाती हूं
अब तुमसे कुछ नही चाहती हूँ
शायद इसीलिये जी पाती हूँ
टाँक दि्या उन बरसो को
आसमाँ पर सितारे बना
जब प्रतीक्षा किया करती थी
हर वेदना के बूँटे बना
सजाया है आसमाँ की चूनर को
अब नीर नही बहाती हूँ
और तुझसे भी कुछ नही चाहती हूँ
डूबा दी वो कश्ती दरिया मे
जिसका साहिल तुम्हे बनाती थी
तुम संग महकने के
बेशुमार इत्र लगाती थी
अब ना दरिया है ना साहिल है
ना महकने की चाहत है
साजन , हाँ , मानो मेरी बात
अब तुम मुझे बुलाते हो
मगर मै ना आ पाती हूँ
मगर
अब न अश्रु बहाती हूँ
और तुमसे भी कुछ ना चाहती हूँ
हर मौसम पर अब मै
धूप की चादर लगाती हूँ
शीत बरखा का अब डर कैसा
ग्रीष्म को गले लगाती हूँ
छालों से मोहब्बत करती हूँ
मगर तुम से ना अब
कुछ चाहती हूँ
और साजन
तुम्हारी भी ना
अब बन पाती हूँ
इसलिये
अब न अश्रु बहाती हूं…………
37 टिप्पणियां:
shayad har stri ke man me ye bhav kabhi n kabhi jaroor uthte hai .yatharth ko udghatit karti bhavabhivyakti .
बढ़िया कविता स्त्री के मनोभावों को दर्शाती. अभी डाक्टर दराल की लघुकथा पढ़ी. उसकी विषयवस्तु भी कुछ इसी तरह ही थी सुबह सुबह सेंटीमेंटल कर दिया. चलिए बधाई.
मन भावों ने जब बसन्त के बाद ग्रीष्म देख ली हो तो सब स्वीकार कर लेना है।
भाव पूर्ण अभिव्यक्ति.बहुत ही गहन संवेदना.
सलाम
डूबा दी वो कश्ती दरिया मे
जिसका साहिल तुम्हे बनाती थी
तुम संग महकने के
बेशुमार इत्र लगाती थी
अब ना दरिया है ना साहिल है
ना महकने की चाहत है
साजन , हाँ , मानो मेरी बात
अब तुम मुझे बुलाते हो
मगर मै ना आ पाती हूँ
मगर
अब न अश्रु बहाती हूँ
और तुमसे भी कुछ ना चाहती हूँ
antatah yahi hota hai...andar ka basant yun hi maun ho jata hai
परिवर्तन.
अश्रु क्यों बहाना? माँ की संतान यदि असंस्कारित हो गयी है तो उसे संस्कारित करना। लेकिन अश्रु कभी नहीं बहाना।
तुम बुलातो हो तो ना आ पाती हूँ ...
तुमसे कुछ नहीं चाहती हूँ , इसलिए अब अश्रु भी नहीं बहती हूँ ...
दर्द का हद से बढ़ना है खुद दवा हो जाना ...
बेहतरीन रचना !
दिल की गहराइयों से निकली दिल को छू लेने वाली कविता . आभार.
एक सहज समर्पण और किसी की ख़ुशी के ख्याल में व्यक्त किये गए भाव बहुत सुंदर हैं ...
भाव विभोर कर देने वाली कविता.
सादर
एक खामोश सफ़र में ..आंसू को भी रोकना परता है ..बहुत सुन्दर .अच्छा लगा....
संवेदनात्मक अभिव्यक्ति ...मन को छूती हुई....
हाँ ! जीने की पहली शर्त अपनी चाहत को मिटा देना ही है ..प्रभावी रचना
नई चेतना की कविता... घुट कर जीने से अच्छा है खुल कर जीना ... अँधेरे में घुटने से अच्छा है रौशनी में संघर्ष करना.. सुन्दर कविता..
वाह वन्दना जी.... बहुत ही सुन्दर.
प्रेम में मर मिटना... यह भी एक इन्तेहा ही है..
वाह बहुत ही सुन्दर...
प्रेम में मर मिटना भी इन्तेहा है..
Uf! Kaisi vedana hai ye!!
अब न अश्रु बहाती हूँ ,
और तुम से भी कुछ न चाहती हूँ.
भावपूर्ण गहन संवेदना ..
दर्द की इंतेहा.......
इसे कहते हैं सार्थक चिंतन।
बधाई।
---------
पुत्र प्राप्ति के उपय।
क्या आप मॉं बनने वाली हैं ?
गहन वेदना इसी प्रकार मन में उदासीनता भर दिया करती है...
मनोभावों की प्रभाव शाली अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने...
भावुक करती मार्मिक संवेदनशील रचना...
भावमय करती शब्द रचना ।
nih-shabd karti rachna..sach me aisee soch kahan se lati hain...par ye bhi sach hai, har koi Vandana thori ho sakta hai..:) hai na
भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर और प्यारी अभिव्यक्ति
'vaqt ne kiya,kya hansi sitam
tum rehe na tum,hum rahe na hum'
Vaqt ke aage to sabhi natmastak hai,Phir aap aur hum kya karenge.Jeene ke liye to yahi achcha hai ki 'beeti tahi bisar de,
aage ki sudh lai'.Dunia me gar aaye
hai to jeena hi padega...
vedna aur dard se bhari bhavuk abhivyakti.
नितांत सशक्त और भावपूर्ण.
रामराम
अपना सहारा स्वयं बनकर नारी पराधीनता को समाप्त कर सकती है । आजकल इसी की ज़रुरत है । वरना समाज में अभी भी करोड़ों कमला बाई मौजूद हैं । रचना दीक्षित जी की बात से सहमत हूँ ।
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति...
आभार...
bahut gahri abhivyaki....
Prem jab prarambh hota h to bhi dard deta h aur jab har halchal ko paar kar k maun ho jata h tab bhi dard hi shesh reh jata h.. fir bhi trishna khatm nahi hoti..
behad sateek kavita :)
लगता हे भारत की सारी नारिया बहुत ही दुखी हो गई हे,अभी अभी बेचारी कमला के आंसू पोछ कर आये थे डाक्टर दराल जी के घर पर काम वाली हे वो... उस का पति भी..... बेचारी
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
सुन्दर भावपूर्ण!!
भावनाओं के प्रवाह से सजी-सँवरी सुन्दर अभिव्यक्ति!
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
itna viyog kyon...? so sentimental...
are ye rachna padhna kaise bhul gai main...achcha karti hain, aansu kyon bahaana...
isse kam mehnat kar ke unhi ko kyo na rula du jo in aasuwo ki wajah hain...pyar kiya hai bandna jee, gulami thodi na ki hai...
:)
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