लो
आज फिर तोड़ दिया ना
अपना वादा तुमने
मैं तो रुकी थी
तेरे वादे की शाख पर
ठहरी थी और ठहरा दिया था
आज आसमाँ को भी
रुक गया था दिनकर भी
अपने रथ के साथ
सिर्फ तेरे लिए
तेरी आरजू के लिए
तेरी तमन्ना को
सुकून देने के लिए
देख अभी तक
सांझ उतरी नहीं है
देहरी पर मेरी
और तू खुद ही
मुझे दोपहर के
चौबारे पर
तनहा छोड़ गया
अब बता
इस दोपहर की
शाम कैसे और कब होगी
कब तक यूँ ही
ज़िन्दा जलती रहेगी
इंतज़ार की भट्टी में
क्या इसे ही इम्तिहान कहते हैं
वादों पर कुर्बान हो जाना
और उसे याद भी ना आना
कहाँ छोड़ गया आया था
एक दिया जलता हुआ
अब तो तुझे याद भी न होगा
और देख मै भरी दोपहरी मे
आज भी खडी हूँ
तेरे इन्तज़ार की
तपती जमीन पर
धूप का दुशाला ओढे हुये
आज फिर तोड़ दिया ना
अपना वादा तुमने
मैं तो रुकी थी
तेरे वादे की शाख पर
ठहरी थी और ठहरा दिया था
आज आसमाँ को भी
रुक गया था दिनकर भी
अपने रथ के साथ
सिर्फ तेरे लिए
तेरी आरजू के लिए
तेरी तमन्ना को
सुकून देने के लिए
देख अभी तक
सांझ उतरी नहीं है
देहरी पर मेरी
और तू खुद ही
मुझे दोपहर के
चौबारे पर
तनहा छोड़ गया
अब बता
इस दोपहर की
शाम कैसे और कब होगी
कब तक यूँ ही
ज़िन्दा जलती रहेगी
इंतज़ार की भट्टी में
क्या इसे ही इम्तिहान कहते हैं
वादों पर कुर्बान हो जाना
और उसे याद भी ना आना
कहाँ छोड़ गया आया था
एक दिया जलता हुआ
अब तो तुझे याद भी न होगा
और देख मै भरी दोपहरी मे
आज भी खडी हूँ
तेरे इन्तज़ार की
तपती जमीन पर
धूप का दुशाला ओढे हुये
40 टिप्पणियां:
vada karne vale jab vada nahi nibhate to shayad hrdy se aisi hi bhavpurn abhivyakti prakat hoti hai .sundar rachna .
मरने के बाद भी मेरी आँखे खुली रहीं,
आदत पड़ी हुई थी इन्हें इंतज़ार की......
यही तो प्रेम है.
सुंदर रचना के लिए बधाई....
मन की पीड़ा, गहरी अभिव्यक्ति।
आज भी खडी हूँ
तेरे इन्तज़ार की
तपती जमीन पर
धूप का दुशाला ओढे हुये
--
सुन्दर शब्द चयन के साथ बहुत बढ़िया रचना रची है आपने!
.
धुप की दुशाला ओढ़े हुए !
वाह ! ...लाजवाब अभिव्यक्ति !
.
अच्छी भाव भरी रचना। आपकी रचना को लेकर बस इतना ही कहना है,
'हर वक्त खुशी रहती नहीं, गम नहीं रहता,
दुनिया में हमेशा कोई मौसम नहीं रहता।'
आपके इंजतार में मेरी एक कहानी।
एक अनूठी प्रेम कहानी, जो खतों में है ढली,
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इस दोपहर की शाम
कैसे और कब होगी
पूरी जि़्दगी इम्तहान ही तो देते रहते हैं हम।
कविता के भाव मन को प्रभावित करते हैं।
tere vaadon ki shaakh per main phir ruki
ab to girne ka bhi hausla n tha
per... shaakh toot gai !
कहते हैं न जो कभी ख़त्म नहीं होता वही तो है............इंतज़ार
बहुत सुन्दर दिल को छूने वाली रचना...
कब तक यूँ ही
ज़िन्दा जलती रहेगी
इंतज़ार की भट्टी में
क्या इसे ही इम्तिहान कहते हैं
वादों पर कुर्बान हो जाना
और उसे याद भी ना आना
विरह वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति .....आपका आभार
wah...bohot acchi kavita hai....sundar abhivyakti :)
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।
'mai to ruk gai thi
tere vade ki sakh per...
Teri aarjoo ke liye
Teri tamanna ko.....
Abhi bhi khadi hoo
tere intjaar ki jameen per'
Uski bhagti me rangi aapka yeh intjaar avasaya avasya poorn hoga,kyonki uske intjaar ki jamin atyant hi pukhta hai aur uske vade ki shakh aisi nahi ki toot sake.
Aap ki bhavpoorn abhivaykti se man
gadgad ho gaya.Shukriya.
.
ये मुक्तक वाकई अच्छा लगा।
बहुत खूब लिखा आपने ..... बधाई स्वीकारे ।
वंदना जी ...बहुत सुन्दर ...गहरी बात
Bahut gehri abhivyakti aur sunder nischla prem.............
badhai sweekar karen.*****
वंदना जी,
बहुत सुन्दर भावमय प्रस्तुति.....
वाह ...बहुत खूब .....भावमय करते शब्द ।
सुनिए जी ..लाईन में हमारा सो्लहवां नंबर है । अरे वेटिंग लाईन में जी । आपके साथ हम भी इंतज़ार कर रहे हैं ।
शब्दों को खूबसूरत बनाने की प्रक्रिया ही कविता कहलाती है ..उसमें आप सिद्धहस्त हैं । शुभकामनाएं
और देख मै भरी दोपहरी मे
आज भी खडी हूँ
तेरे इन्तज़ार की
तपती जमीन पर
धूप का दुशाला ओढे हुये....
इन्तेज़ार के पल वास्तव में बहुत मुश्किल होते हैं..बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
वंदना जी ! प्रतिक्रया के लिए बहुत बहुत धनंयवाद |
बेहद गहन अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
रामराम.
Bahut hi bhawpurn rachna
kya baat hai...unhone wada toda hoga...par aapne shandaar likhte rahne ka wada nahi toda bandana jee...luv u :)
अत्यन्त भावपूर्ण रचना, उत्तम प्रस्तुति के साथ. आभार सहित...
आज भी खडी हूँ
तेरे इन्तज़ार की
तपती जमीन पर
धूप का दुशाला ओढे हुये
--
दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत खुब जी लाजवाब, धन्यवाद
मन की पीड़ा दर्शाती भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
और देख मै भरी दोपहरी मे
आज भी खडी हूँ
तेरे इन्तज़ार की
तपती जमीन पर
धूप का दुशाला ओढे हुये
वन्दना जी बहुत हृदयस्पर्शी रचना लगी. धूप का दुशाला तो बहुत खूब रहा. बधाई.
गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति..... बहुत सुंदर
विरह वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
आद.वंदना जी,
सुन्दर शब्द संयोजन के साथ गहन भावों की प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति आपके सृजन की विशेषता रही है !
हमेशा की तरह यह कविता भी दिल को छू गयी !
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं !
bahut sunder likhi hain aap.....
दोपहर और सांझ को बेहद खूबसूरत अंदाज़ से आपने कविता में पिरोया है। खूबसूरत प्रस्तुति।
बसंत पंचमी की ढेरों वासंती मंगलकामनाएं।
"आज भी खडी हूँ / तेरे इन्तज़ार की / तपती जमीन पर / धूप का दुशाला ओढे हुये" क्या गज़ब की बात कही है आपने . मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान
aapko bhi Basant Panchmi ki badhayee ho
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति वन्दना जी.वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
विरह को बह्त गहराई से अभिव्यक्त किया है आपने - आभार
बहुत ही अच्छी नज़्म.
सलाम
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