कब तक जलाऊँ अश्कों को
भीगी रात के शाने पर
सावन भी रीता बीत गया
अरमानों के मुहाने पर
जब चोट के गहरे बादल से
बिजली सी कोई कड़कती है
तब यादों के तूफानों की
झड़ी सी कोई लगती है
खाक हुई जाती है तब
मोहब्बत जो अपनी लगती है
कब तक धधकते सावन की
बेदर्द चिता जलाए कोई
रात की बेरहम किस्मत को
साँसों का कफ़न उढाये कोई
उधार की सांसों का क़र्ज़
हँसकर चुका तो दूँ मगर
इक कतरा अश्क
तो बहाए कोई
और बरसों से सूखे सावन
को हरा कर जाये कोई
29 टिप्पणियां:
Vandana! Kya gazab likhti ho!
प्रतीक्षारत प्रकृति भी है।
वाह.. बहुत सुंदर.
सावन भी रीता बीत गया
अरमानों के मुहाने पर
जब चोट के गहरे बादल से
बिजली सी कोई कड़कती है
बहुत खूब लिखा है...
bahut sundar hamesha ki tarah ...
बहुत ही गहरा दर्द लफजों में उतर आया है...
ati sundar ...aabhaar
Impressive ghazal
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati
bahut sundar abhiwykti !
वंदना जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया, मेरे दर्द को समझने के लिए!!
एक कतरा अश्क के इंतज़ार में ना जाने कितने सावन सूल्हे निकल गए ....:):)
खूबसूरत अभिव्यक्ति
अश्कों की झड़ी भिगो गयी.
खूबसूरत रचना.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहुत सुंदर .... सावनमयी पोस्ट....
bahut hi sondhe sondhe ehsaas hain
वाह बहुत खूब लिखा है .
उर्दू लफ़्ज़ों की मिठास ही गज़ब की होती है और भावनाओं को इन लफ़्ज़ों मे आपने ख़ूबसूरती से सजाया है। बहुत सुन्दर!………आभार।
vidhata ne aisi vidha di hai woh gulzar safar ke liye.
बरसों से सूखे सावन को हरा कर जाए कोई...
प्रकृति इस अनुरोध को स्वीकार करे ...!
उधार की सांसों का क़र्ज़
हँसकर चुका तो दूँ मगर
इक कतरा अश्क
तो बहाए कोई
अश्क जब बहेंगे तो सैलाब आयेगा
दीवाना मगर फिर भी गीत गायेगा
savan bhi reeta beet gaya........ virah bhav ka sinder chitran.....
सावन तो प्यास बढ़ाता ही है । अच्छी रचना ।
वाह क्या लिखा है |मन को छूती रचना |
आशा
dard ki ati sundar abhivykti
जब चोट के गहरे बादल से
बिजली सी कोई कड़कती है
तब यादों के तूफानों की
झड़ी सी कोई लगती है
सुंदर अभिव्यक्ति है ... बेहद लाजवाब है ...
वन्दना जी . सावन का मानवीकरण प्रशंसनीय है । विवशता और विरह की अभिव्यक्ति शिल्प सहित है । रचना को बार बार पढें तो आप स्वयं लयता आ जाएगी ।
वन्दना जी . सावन का मानवीकरण प्रशंसनीय है । विवशता और विरह की अभिव्यक्ति शिल्प सहित है । रचना को बार बार पढें तो आप स्वयं लयता आ जाएगी ।
वन्दना जी . सावन का मानवीकरण प्रशंसनीय है । विवशता और विरह की अभिव्यक्ति शिल्प सहित है । रचना को बार बार पढें तो आप स्वयं लयता आ जाएगी ।
savan bhi reeta beet gaya
armanon ke muhane par ...
wah kya baat hai ji bahut pasand aai kavita .
kitna achchha likhti ho aap
badhai.
आज अन्दाज़ जुदा लगता है,
आज कुछ बात है, क्या बात हुई
जाने क्यूँ मन में बहुत देर तलक घुमड़ा कुछ,
और फिर टूट के बरसात हुई।
ऐसा…
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