चाँदनी से झुलसे जिस्म को
जब चाँदनी भी जलाने लगे
रूह पर पड़ते फालों पर
आहों की सुइयाँ गुबने लगें
पाँव में छाले पड़ने लगें
छालों को अश्कों से सींचने लगें
तब किस आग से सहलाऊँ
कौन सा वो दीप जलाऊँ कि
छालों पर भी छाले पड़ने लगें
तेरी दी हर सौगात पर
चाहे जिस्म सारा सिसकने लगे
रूह भी फ़ना होने लगे
दर्द के सीने पर पाँव रखकर
दर्द जब हद से गुजरने लगे
हर अहसास दफ़न होने लगे
मौत से बड़ी सौगात मिली हो जिसे
उसे दर्द का अहसास कैसे मिले?
31 टिप्पणियां:
"दर्द -भरी कविता..."
वाह ! सुन्दर रचना !
रूह पर पड़ते फालों पर
आहों की सुइयाँ गुबने लगें
क्या बात है !
बहुत सुन्दर रचना ,,, और एक दर्द भरी प्रस्तुति
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
uff..itnaa dard....kavita sundar hai.
दर्द की इन अनुभूतियों को कैसे जियें !
Sabdon ko bade achhe dhang se piroyan hain aapne, jisse dard ka ahsaas kuch jyada hi hota hai.
kavita pasand aai. Aur iske liye aapko BADHAAI.
Sabdon ko bade achhe dhang se piroyan hain aapne, jisse dard ka ahsaas kuch jyada hi hota hai.
kavita pasand aai. Aur iske liye aapko BADHAAI.
मौत के सामने तो हर शै छोटी पड़ जाती है ... दर्द की तो क्या हैसियत .... सुंदर लिखा है ...
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति. से लबरेज रचना...आभार ...
एक एक शब्द ...में दर्द का अहसास ......है इस रचना में .......बहुत खूब .
दर्द हद से गुज़र जाये तो दवा होता है.....बहुत सुन्दर रचना...
मौत से बड़ी सौगात मिली हो जिसे
उसे दर्द का अहसास कैसे मिले?
दर्द को घनीभूत करती रचना ..
बहुत सुन्दर रचना|
मौत से बड़ी सौगात मिली हो जिसे
उसे दर्द का अहसास कैसे मिले?
--
दार्शनिकता से परिपूर्ण रचना!
--
बहुत ही मार्मिक और यथार्थ का चित्रण!
तब किस आग से सहलाऊँ
कौन सा वो दीप जलाऊँ कि
बेहद दर्द भरे अल्फाज.....
regards
दिल की गहराईयों से निकली हुई एक अच्छी रचना. बहुत खूब!
सुंदर रचना
वंदना जी की प्रस्तुत कविता के आधार पर मैंने उसे दो भागों में बांटा है। उनकी अनुमति से (जो उन्होंने दी है) मैं इन्हें यहां प्रस्तुत कर रहा हूं-
।।एक।।
तपन से झुलसे जिस्म को
जब चाँदनी भी जलाने लगे
रूह पर पड़ते फालों पर
आह सुइयाँ गपाने लगें
पाँव में पड़ते छालों में
जब अश्क यूं जाने लगें
लगाऊं कौन सा मरहम
कि चैन मुझको आने लगे
।।दो।।
किस आग में अब नहाऊं
कौन सा दीप अब जलाऊं
तेरी दी हर सौगात मेरी
किससे मन तेरा बहलाऊं
जिस्म चाहे सिसकने लगे
क्यों होंठ अपने न हिलाऊं
दर्द जो सीने पर रखे पांव
सुख को किस तरह मनाऊं
हर अहसास दफ़न होता है
इस को किस तरह भुलाऊं
वंदना जी इतना दर्द कहां से लेकर आई है आप.
मैं तो खामोश हो गया हूं
बेहतर.. शानदार.
दर्द को सुन्दर अल्फाज में बांधा...यह भी एक कला है.
ओह कमाल का लिखा है...मौत से बढ़कर भी सौगात तो अथाह दर्द का ही हो सकता है...दिल को झकझोर देने वाली रचना...
मौत से बड़ी सौगात मिली हो जिसे
उसे दर्द का अहसास कैसे मिले?
वाह वन्दना जी .....इतनी अच्छी अभिव्यक्ति .....इतने गहरे भाव ....
bahut hi khubsurat rachna......
बेहद सशक्त प्रस्तुति. अत्यंत ही सुन्दर. बधाई.
our sweetest songs are those
which tell us saddest notes.
बहुत सुंदर नज़्म ......!!
दर्द जगाती कविता है.. दर्द जगा गई..
रूह पर पड़ते फालों पर
आहों की सुइयाँ गुबने लगें
पाँव में छाले पड़ने लगें
छालों को अश्कों से सींचने लगें
तब किस आग से सहलाऊँ
कौन सा वो दीप जलाऊँ कि
छालों पर भी छाले पड़ने लगें
दर्द और एहसास से परिपूर्ण एक भावपूर्ण रचना....बधाई
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति।
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति।
रूह पर पड़ते फालों पर
आहों की सुइयाँ गुबने लगें
दर्द की पराकाष्ठा । शुभकामनायें
गहरे भाव लिये हुये सुन्दर प्रस्तुति ।
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