फलक पे झूम रही साँवली घटाएँ हैं
मेघ सारे तेरे गेसुओं में उतर आये हैं
बहक रही फिजा में शोख हवायें हैं
उड़ा के तेरा आँचल नाज़ से इतराए हैं
बदरी जो बरस के आज इठलाये है
जुल्फों के पेंचोखम तेरे भटकाए हैं
भटकते आवारा बादलों की छटाएँ हैं
गोरी के मुखड़े को क्यूँ लजाएँ हैं
रिमझिम के गीत हर दिल ने गाये हैं
लबों पर तेरे सभी उतर आये हैं
अदायें तेरी बिजलियाँ सी गिरायें हैं
खोई- खोई सी तेरी सब अदायें हैं
मुखड़े पर छाई शोख चंचल अदायें हैं
अरमाँ सारे तेरे आगोश में सिमट आये हैं
फलक पर झूमते सभी सितारे हैं
तेरे रूप के आगे सभी शरमाये हैं
रुखसार पर छाए मोहब्बत के साये हैं
नैनों में तेरी मेरे अहसास उतर आये हैं
तेरे रूप पर फ़िदा सारी फिजायें हैं
ये किस मोड़ पे हालात ले आये हैं
कुछ ख्याल तेरे निगाहों में उतर आये हैं
हम इक ज़िन्दगी वहाँ गुजार आये हैं
अँखियों के पेंच जब से लड़ाए हैं
सुबहो शाम तेरे नाम लिख आये हैं
प्रीत के दीप देहरी पर सजाये हैं
आस की बाती से सभी जगमगाए हैं
उमड़- घुमड़ कर बदरा जब छाए हैं
पिय मिलन को सजनिया अकुलाये हैं
फलक पे झूम रही साँवली घटाएँ हैं
रह -रह कर यादें उनकी सताएँ हैं
दोस्तों ,
सबसे पहली लाइन पंकज सुबीर जी के ब्लॉग से ली है क्यूंकि वहाँ उन्होंने मुशायरा रखा हुआ है और हमारा उस विधा में हाथ तंग है ----नुक्ता,बहर , मात्रा इन सबसे हम तो अंजान हैं इसलिए वहाँ भेजने का तो सवाल ही नहीं उठता था मगर उस दिन जैसे ही ये पहली पंक्ति पढ़ी दिल झूम उठा और कुछ ख्याल उसी दिन दिल से निकले और कागजों पर उतर आये --------अब इसमें सिर्फ भावों को ही देखियेगा शायरी की रूह मत खोजियेगा क्यूंकि यहाँ तो जो भी लिखा जाता है सिर्फ भावों से ही लिखा जाता है --------उम्मीद है पसंद आएगी .
27 टिप्पणियां:
saavan aise jhoom kar aaya hai ...
kaise naa bhayegi gazal ...
saavan aise jhoom kar aaya hai ...
kaise naa bhayegi gazal ...
वाह वाह ....आज तो बहुत गज़ब का अंदाज़ है ....बहुत रूमानी सी गज़ल ..सुन्दर..
क्या बात है सावन में झाम झाम करता खूबसूरत गीत ..पंकज जी कि पंक्तियाँ भी लाजबाब हैं .
आपने सही कहा शायरी के कड़े नियमों को अगर ताक पर रख दें तो आपकी रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं...आप में भरपूर प्रतिभा है जब आप इतना सुन्दर लिख सकती हैं तो शायरी के नियमानुसार आपके लिए लिखना अधिक मुश्किल नहीं होना चाहिए...कोशिश कीजिये आपको सफलता जरूर मिलेगी...
नीरज
वंदना जी आपके साथ सुर मिलाकर हम यही कह सकते हैं-
शब्द तेरे हमारे मन को भाए हैं
तभी तो लौटलौटकर यहां आए हैं।
मेरे लिये तो आपकी कई उम्दा कविताये गजलो की भान्ति खूबसूरत रही है,मै इस विधा मे आपको पहले से ही सुनता रहा हू, इस बार एक साथ सुन्दर गजलो को देख मे मन [रफुल्लित हो गया, इनमे से से कई तो जैसे भीतर तक छू गयी-
कुछ ख्याल तेरे निगाहों में उतर आये हैं
हम इक ज़िन्दगी वहाँ गुजार आये हैं
कितनी बडी बात कही है इन दो पन्क्तियो मे, यदि इसकी व्याख्या करू तो शायद पन्ने भर जाये. लेकिन टिप्पणी की सीमाओ को ध्यान मे रखते हुये इतना ही कहून्गा, अत्यन्त उम्दा, बस इसे और पैना कीजीये.
ये सांवली घटायें होती ही इतनी चंचल कि सब का दिल झूम उठे। अच्छी लगी रचना बधाई
उमड़ते घुमड़ते हैं विचार, जगते हैं मन मे भाव। रचना स्वत: लेखनी का दामन थाम लेती है, फिर आव देखा जाता न ताव। बढ़िया ग़ज़ल।
बढ़िया भाव लिए है आपकी यह रचना ! बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
Vandana jee, mujhe to ye technical terms ka to ekdum pata nahi hai......bas aap jaiso ko padh kar ye koshish karta hoon ki kaise emotions ko pen ke through paper pe laya jata hai......:)
उमड़- घुमड़ कर बदरा जब छाए हैं
पिय मिलन को सजनिया अकुलाये हैं
isko padh kar aur Delhi ke mausam ko dekh kar.......koi bhi sajaniya/sajan se milne ko aatur ho sakta hai........:)
aap bahut achchha likhti hain.....!
प्रीत के दीप देहरी पर सजाये हैं
आस की बाती से सभी जगमगाए हैं
गीत बहुत ही बढ़िया हैं...आभार.
yahi gazal yahan ke baadal bhi suna rahe hain......
और भाव तो झमाझम बरस रहे हैं,
तर कर रहे हैं
एकदम भिगो डाला!
ग़ज़ल के भाव तो बहुत कमाल के हैं ही ... थोड़ी सी मेहनत से ग़ज़ल की बारीक़ियाँ भी आ जाती हैं ... आप प्रयास तो करें .. पंकज जी का ब्लॉग तो सागर है जहाँ से कोई भी बूँद भर सकता है ...
भाव है तो सब कुछ है
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
mujhe yah baat achchhi lagi ki aapne-ghazal ke mamale mey- saty ko sveekaraa. aisaa bahut kam log karte hai. abhyaas aadmi ko hunarmand banaateta hai. khair, fir bhi aapne jo bhavanaaye vyakt kee hain, ve sundar hai. pahale bhaav zarooree hai, shilp to baad mey aa hi jataa hai.
सुंदर भाव हैं.
बहुत सुंदर भाव ..
सुंदर भाव...वंदना जी सुंदर भाव और विचार होते है फिर तो धीरे धीरे बहर और लय भी आ जाती है....बढ़िया प्रस्तुति...धन्यवाद
बदरी जो बरस के आज इठलाये है
जुल्फों के पेंचोखम तेरे भटकाए हैं
वाह क्या बात है ... बारिश का मौसम हो और उसपे पिया मिलन की आस ...
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार सहित बधाई ।
बहुत ही रूमानियत भरी ग़ज़ल लिखी है....एक एक पंक्ति पर मन झूम गया..बारिश का जिक्र जो है...बेहद ख़ूबसूरत रचना
वाह बहुत खूब एक अलग से अहसास में डूबी हुई रचना
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
Sabhi.. viduanon ne itni achhi-achhi baaten aapki kavita ke baare men kahi hai ..ki kuchh kahne ko bacha hi nahin.
Itna zaroor kahunga ki padhkar maza aa gaya.
saavan kavita me utar aaya hai.
अच्छा प्रयास. आपका सत्य कथन मुझे भी अच्छा लगा..
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