विरह दंश से
पीड़ित धड़कन
तेरे नाम से ही
धड़क जाती है
सोच ज़रा
क्या होगा
उस पल जब
युगों के चक्रव्यूह
में फँसी
जन्म -जन्मान्तरों
से भटकती रूहों
का मिलन होगा
और दीदार को
तरसते नैन
चार होंगे
जब प्रेम अपने
चरम पर होगा
उस चिर प्रतीक्षित
क्षणिक पल में
धड़कन रूक नही जाएगी
साँस थम नही जाएगी
और एक बार फिर
प्रेम , विरह और मिलन
के चक्रव्यूह में
अगले कई युगों तक
कई जन्मो के लिए
रूहें हमारी
फिर उसी दलदल में
फँस नही जाएँगी
19 टिप्पणियां:
sachmen ek khubsurat kalpana hai ..thodi dari.. thodi sahmi...
jo har pyar ke saath hoti hi hai ..
nice
प्रेम विरह के चक्र से निकलना भी कौन चाहता है ....... इस दलदल में डूबने का मज़ा जिसने लिया वो इसका ही हो कर रह जाता है .........
प्रेम , विरह और मिलन
के चक्रव्यूह में
अगले कई युगों तक
कई जन्मो के लिए
रूहें हमारी
फिर उसी दलदल में
फँस नही जाएँगी
वाह,,,!
बहुत गहरा मन्थन और संवेदनाओं का चिन्तन
आपकी रचना में बहुत बढ़िया संगम रहा दोनों का!
vandana ji bhavnaon ki ati uttam abhivyakti hai.
Behad sundar rachana!
यी जानते हुये भी कि इस चक्रव्यूह को भीद पाना कठिन है फिर भी इन्सान इस मे जाने से घबराता नही है । बहुत अच्छी लगी ये रचना बधाई
बहुत सुन्दर तरिके से विरह की दशा बताई आपने...आभार!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
सुन्दर रचना । धन्यवाद ।
सोच ज़रा
क्या होगा
उस पल जब
युगों के चक्रव्यूह
में फँसी
जन्म -जन्मान्तरों
से भटकती रूहों
का मिलन होगा
------
अनबोले स्वरों में बात होगी तब
शायद खुद से मुलाकात होगी तब
nice
prem,virah aur milna ke chakrvyooh ko badi achhi tarah bayaan kiya hai...yah daldal hi to hai...ji se nikal pana kitna mushkilo hai...sundar rachna
विरह को दर्शाती एक अच्छी रचना
अच्छा लगा पढ़ कर
waah kya baat hai !!!!!!!
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत ही ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस शानदार और उम्दा रचना के लिए बधाई!
सुंदर शीर्षक के साथ..... लाजवाब और सुंदर रचना....
aaj hi lauta hoon....deri se aane ke liye .... maafi chahta hoon....
वाह !!......बहुत बढ़िया .......विरह होता ही कुछ ऐसा .
आपने दर्शन को प्रेम में और प्रेम को दर्शन में कुछ इस तरह लिपटा है की पूछिए ही मत... ऐसे ही खूबसूरत कवितायन बनती हैं..
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...
एक टिप्पणी भेजें