तेरे रूप के सागर में
उछलती -मचलती
लहरों सी
चंचल चितवन
जब तिरछी होकर
नयन बाण चलाती है
ह्रदय बिंध- बिंध जाता है
धडकनें सुरों के सागर पर
प्रेम राग बरसाती हैं
केशों का बादल
जब लहराता है
सावन के कजरारे
मेघ छा जाते हैं
अधरों की अठखेलियाँ
कमल पर ठहरी ओस -सी
बहका- बहका जाती हैं
क़दमों की हरकत पर तो
मौसम भी थिरक जाते हैं
ऋतुओं के रंग भी
बदल- बदल जाते हैं
रूप- लावण्य की
अप्रतिम राशि पर तो
चांदनी भी शरमा जाती है
फिर कैसे धीरज
रख पाया होगा
तुझे रचकर विधाता
कुछ पल ठिठक गया होगा
और सोच रहा होगा
लय और ताल के बीच
किसके सुरों में सजाऊँ इसे
किस शिल्पकार की
कृति बनाऊँ इसे
किस अनूठे संसार में
बसाऊँ इसे
किसके ह्रदय आँगन में
सजाऊँ इसे
किस भोर की उजास
बनाऊँ इसे
किस श्याम की राधा
बनाऊँ इसे
33 टिप्पणियां:
तुझे रचकर विधाता
कुछ पल ठिठक गया होगा
और सोच रहा होगा
लय और ताल के बीच
किसके सुरों में सजाऊँ इसे
किस शिल्पकार की
कृति बनाऊँ इसे
किस अनूठे संसार में
बसाऊँ इसे
कल्पना का सुन्दर रूप सजाया है आपने अपने इस नवगीत में।।
बधाई!
वन्दना बहुत ही सुन्दर रचना है बधाई
क्या रूप की स्वर्णिम अनुपम मूरत के बारे में जिसे आपने शब्दों में रचा है...
बेहद सुंदर रचना है... आपकी रचना की नायिका को देखने को मन मचलता है...
मीत
सुखद अनुभूति , बहुत सुंदर रचना
behatarin kavita..dhanyabad
बहुत ही बढ़िया
Wah! Harek lafz lavanymayi....rachnako sajata hua..apne roopse nikharta hua!
लय और ताल के बीच
किसके सुरों में सजाऊँ इसे
किस शिल्पकार की
कृति बनाऊँ इसे
किस अनूठे संसार में
बसाऊँ इसे
सुन्दर भावनात्मक कविता !
तुझे रचकर विधाता
कुछ पल ठिठक गया होगा
और सोच रहा होगा
लय और ताल के बीच
किसके सुरों में सजाऊँ इसे
रचना अच्छी लगी।
वन्दना जी, बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
फिर कैसे धीरज
रख पाया होगा
तुझे रचकर विधाता
कुछ पल ठिठक गया होगा
और सोच रहा होगा
लय और ताल के बीच
किसके सुरों में सजाऊँ इसे
किस शिल्पकार की
कृति बनाऊँ इसे
बहुत सुन्दर भावों से रचाई है ये रचना....बधाई
वंदना जी आपके ब्लॉग से कॉपी पेस्ट नहीं हो रहा तो जो पंक्तियाँ संगीता जी ने लिखी हैं मुझे भी बहुत ज्यादा पसंद आई...बहुत ही खुबसूरत रचना रची है आपने..बधाई स्वीकारें.
बेहतरीन रचना
बहुत -२ हार्दिक शुभ कामनाएं
सौन्दर्यानुभूति की सुन्दर कविता
दिल को छू लेने वाले भाव।
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जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
Wahwa...achhi kavita....
बहुत बढ़िया रचना.आनन्द आया.
bahut khoobsurat abhivyakti. khaskar ye panktian.
तुझे रचकर विधाता
कुछ पल ठिठक गया होगा
और सोच रहा होगा
लय और ताल के बीच
किसके सुरों में सजाऊँ इसे. umda.
... sundar rachanaa, prasanshaneey !!!
इस जोरदार रचना के लिए
बहुत -२ बधाइयाँ
तुझे रचकर विधाता
कुछ पल ठिठक गया होगा
और सोच रहा होगा
लय और ताल के बीच
किसके सुरों में सजाऊँ इसे
कविता की ही तरह एक अद्भुत अद्वितीय अनूठी प्रेयसी की तस्वीर
vandana ji pahli baar padha magar baar- baar padhne ko mann karta hai. apka mere blog par bhi swagat hai.
बहुत ही सुंदर रचना है। ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
pls visit....
www.dweepanter.blogspot.com
बहुत से सवाल.
सुंदर अनुभूति
शब्द चयन के लिए प्रशंसा करूं, कल्पना की उड़ान को सराहूं, शिल्प की तारीफ की जाये या बुनावट के लिए, समझ पाना मुश्किल है. कविता संसार के लिए आप एक उपलब्धि हैं. मैं खुद को बदकिस्मत समझ रहा हूँ जो आप तक इतनी देरी से पहुंचा. आप में आग है, इसे और दह्काएं. मैं इस रचना के लिए आपको मुबारकबाद पेश करता हूँ.
बहुत ही सुन्दर शब्द विन्यास और उससे भी सुन्दर भाव और उनका प्रस्तुतिकरण । बहुत बहुत बधाई !
बहुत खूबसूरत रचना है .. बधाई आपको !!
विधाता की रची इस अनुपम कृति को बहुत सुंदर शब्दों में बँधा है आपने ..........
सुंदर चित्र खींचा है आपने अपनी कलम से
बधाई।
रूप- लावण्य की
अप्रतिम राशि पर तो
चांदनी भी शरमा जाती है
फिर कैसे धीरज
रख पाया होगा
तुझे रचकर विधाता
वाह...वंदना जी वाह...इस बेहद खूबसूरत एहसास वाली रचना के लिए आपकी जितनी प्रशंशा करूं कम है...वाह
नीरज
अच्छी रचना है..
वाह! भावों की बहुत लाज़वाब अभिव्यक्ति...
वंदना जी ,आपकी कल्पना की,प्रेम भाव की ,लेखन शैली की जवाब नहीं :बधाई
नई पोस्ट में :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in
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