यादों की सूनी
पगडण्डी पर
जो कदम पड़ा
दूर -दूर तक
एक सन्नाटा ही
बिखरा पड़ा था
कहीं सूखे
पत्तों के नीचे
यादों का मलबा
दबा हुआ था
तो कहीं
किसी शाख से लिपटी
कोई अधूरी - सी ,
बिखरी - सी याद
अपनी बेबसी पर
आंसू बहाती मिली
कोई याद वक्त के
शोलों में जलती मिली
तो कोई याद
मन के रसातल में
दबी-सिसकती मिली
मगर फिर भी
उनका सन्नाटा
उनकी सिसकियाँ
भी न तोड़ पायीं
न जाने कैसी
वो यादें थीं
और कैसा
घनघोर सन्नाटा था
शायद यादों के
अंतस का सन्नाटा था
जहाँ कभी कोई
दिया जला न पाया था
किसी चाँद की चांदनी
वहां तक कभी
पहुँच ही ना पाई थी
सिर्फ़ सन्नाटा
यादों को सीने से लगाये
उनके दर्द को,
उनके ज़ख्मों को
अपनी ख़ामोशी से
सहला रहा था
29 टिप्पणियां:
सिर्फ़ सन्नाटा
यादों को सीने से लगाये
उनके दर्द को,
उनके ज़ख्मों को
अपनी ख़ामोशी से
सहला रहा था
भावपूर्ण रचना पसंद आई .शुक्रिया
पत्तो के नीचे कही
यादो का मालवा दबा हुआ था
तो कही किसी साख से लिपटी को
कोई बिखरी सी अधूरी सी याद !
बहुत सुन्दर !
सिर्फ़ सन्नाटा
यादों को सीने से लगाये
उनके दर्द को,
उनके ज़ख्मों को
अपनी ख़ामोशी से
सहला रहा था
बहुत सुंदर लगी यह रचना .. अच्छी प्रस्तुति !!
सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
सिर्फ़ सन्नाटा
यादों को सीने से लगाये
उनके दर्द को,
उनके ज़ख्मों को
अपनी ख़ामोशी से
सहला रहा था
वाह... बहुत खूव!
सन्नाटों में ही यादों को गले से लगाया जाता है!
बिल्कुल सही दिशा में तीर छोड़ा है!
बेहतरीन। बधाई।
सुन्दर और भावपूर्ण रचना
उनका सन्नाटा
उनकी सिसकियाँ
भी न तोड़ पायीं
न जाने कैसी
वो यादें थीं
और कैसा
घनघोर सन्नाटा था
शायद यादों के
यह पंक्तियाँ दिल के अन्दर तक उतर गयीं..... बेहद भावपूर्ण शब्दों के साथ ..... बहुत ही खूबसूरत रचना....
सिर्फ़ सन्नाटा
यादों को सीने से लगाये
उनके दर्द को,
उनके ज़ख्मों को
अपनी ख़ामोशी से
सहला रहा था
vandana ji , bhavon ko bahut sunder shabdon se abhivyakt kiya hai.
सुंदर रचना.
यादों के सन्नाटे में झांकना आसान नहीं होता
हर कोई हिमाकत भी नहीं करता।
--ब्लाग में आया तो ज़िन्दगी की राहें फूलों भरी दिखीं
कविताएं पढ़ीं तो दर्द से हैरान रह गया।
नि:शब्द अनुभूति
बिखरा पड़ा था
कहीं सूखे
पत्तों के नीचे
यादों का मलबा
दबा हुआ था
तो कहीं
किसी शाख से लिपटी
कोई अधूरी - सी ,
बिखरी - सी याद
बेहतरीन शब्द दिये है आपने अभिव्यक्ति के लिये.
'यादों का मलबा' वाह क्या कहने. और फिर इन यादो के मलबे से सुगन्ध भी तो उठती होगी.
बहुत बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
ओह ! बहुत गहरी पीड़ा छुपाये एक कविता !
दूर -दूर तक
एक सन्नाटा ही
बिखरा पड़ा था
कहीं सूखे
पत्तों के नीचे
यादों का मलबा
दबा हुआ था...
सच कहा है यादें अक्सर इंसान को खींच कर ले जाती हैं ..... सन्नाटे में जहा फिर उनके सिवा कोई हमसफ़र नही होता ... अच्छी रचना है ........
sannata......bahut kuch kah gaya,gahre bhawon ko tarasha hai
bahut hi umda kavita......
दूर -दूर तक
एक सन्नाटा ही
बिखरा पड़ा था
कहीं सूखे
पत्तों के नीचे
यादों का मलबा
दबा हुआ था...
बहुत भावनात्मक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
बहुत ही सुंदर भाव और गहराई के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना सराहनीय है! बधाई!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 02-02 -20 12 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज...गम भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब .
बहुत बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
सस्नेह.
बहुत ही कोमल अहसासों को अभिव्यक्ति दी है वन्दना जी ! हर पंक्ति मन को छूती है और गहरे तक उतर जाती है ! आभार आपका !
vandna ji bahut hi komal aur bhavuk karnewali , marm ko chhuti rachna ki panktiyan .........sukriya
वाह ..बहुत ही बढि़या।
सु्न्दर ,गहरी भावाभिव्यक्ति
sundar bhavabhivyakti..
कल 07/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सन्नाटे के भावों को बखूबी बयाँ करती रचना !!
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