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शुक्रवार, 29 मई 2009

बेदर्द मौसम

मौसम का क्या है
बदलता ही रहता है
और फिर लौट कर
भी आता रहता है
मगर कुछ मौसम
ऐसे भी होते हैं
एक बार जो चले जायें
फिर कभी लौट कर नही आते
फिर कितना भी पुकारो
कितने ही पैगाम भेजो
बंजर जमीन की तरह
फिर वहां कोई फूल नही खिलता
बड़े बेदर्द मौसम होते हैं कुछ
यादों में ही बरसते हैं
यादों में ही उलझते हैं
कभी सर्द रातों की तरह
तो कभी धूप की चादर की तरह
कभी मौसमी बरसात की तरह
तो कभी पतझड़ में ठूंठ हुए
पेड़ की तरह
ये बेदर्द मौसम
सिर्फ़ दर्द देकर चले जाते हैं
ऊम्र भर का
लौट कर फिर न आने के लिए।

22 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

मौसम का एक वृत बना है आते हैं हर साल।
दर्द तो यादों की थाती है कविता बनी कमाल।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सब मौसम बेदर्द नही होते हैं।
दुनियाँ में सब मर्द नही होते हैं।
बिन बादल ही जो, रिम-झिम बरसा करते हैं।
वो सावन में बून्द-बून्द को तरसा करते हैं।
पतझड़ में भी कभी बहारें आ जाती है।
दुख में भी सुखभरी बयारें आ जाती हैं।।

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

boht dard hai aapki kavita me...mousam ka to bhana tha....yado ko kisi tarah btana tha....

अजय कुमार झा ने कहा…

wah...achhee shikaayat hai...mausam se.....bahut hee sundar likhaa....

अजय कुमार झा ने कहा…

waah...mausam se badi pyari shaikaat kee aapne....sunder rachnaa...vandana jee....likhtee rahein...

अनिल कान्त ने कहा…

achchhi rachna

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

बहुत ही गहेरी भावना है मन में छिपी हुई,
ये मौसम ये आसुओं की बरसात ..........
बहुत अच्छा लिखा है.........
दिल को छुता हुआ..........
lekin itna dard kyun ye nahi pata bahut gehra aur daba hua marm hai........

अक्षय-मन

रानी पात्रिक ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता है। वैसे दुःख देने वाले मौसम वापस ना ही आएं तो अच्छा है।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कुछ मौसम ऐसे ही होते हैं.........सहेज कर रखने पढ़ते हैं............खूबसूरत रचना है आपकी.........

Asha Joglekar ने कहा…

कुछ मौसम ऐसे होते हैं जो लौट कर नही आते । आते हैं सिर्फ यादों में और दर्द दे के जाते हैं । बिल्कुल सही कहा आपने ।

प्रिया ने कहा…

bahut acchi rachna!

vijay kumar sappatti ने कहा…

vandana ji , kuch mausam to bus aise hi hote hai ...

dil ko choo jaayte hai aur phir chale jaate hai .. kabhi bhi na aane ke liye ..... tarsaane ke liye ...tadpaane ke liyee...


bahut acchi rachna ..
badhai ..

vijay

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

यादों में ही बरसते हैं
यादों में ही उलझते हैं
कभी सर्द रातों की तरह
तो कभी धूप की चादर की तरह

bahut khoob...kya baat hai..

निर्मला कपिला ने कहा…

bahut hee bhaavmay kavita hai aur yahee jindagee hai

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

mausam ko mat kosiye, mausam julmi nay
gaali usko dijiye jo karke gaya na bye

vandana ji, hamesha ki tarah ek sunder kavita padhkar achcha laga aur jo man men aaya likh diya.asha hai bura nahin lagega.

Vinay ने कहा…

बहुत बढ़िया ख़्यालात

daanish ने कहा…

bahut hi achhi aur sachchi rachnaa
umarhatee bhaavnaaon ki sundar tasveer
badhaaee

---MUFLIS---

ओम आर्य ने कहा…

bah.ut sundar aap jo bhi likha hai ......hakikat bahut hai

जयंत - समर शेष ने कहा…

यादोने में ही बरसते हैं... यादोने में ही उलझाते हैं..

वाह वाह...

~जयंत

(बहुत बहुत धन्यवाद, मेरे ब्लॉग पर आने का और "अनुसरण": करने का... आपने इस लायक समझा.. मेरा मान bada.."

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

गज़ब की रचना ...बहुत अच्छी लगी...!सच में कुछ मौसम कहाँ लौट के आते है???एक बार जाने के बाद उम्मीद में ही पूरा जीवन गुजर जाता है...

KK Yadav ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आपने..साधुवाद !!
__________________________
विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!

vijay kumar sappatti ने कहा…

vanadana ..... antim pankhtiyaan jaan ban gayi hai is poem ki ....