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मंगलवार, 26 मई 2009

एक दास्ताँ ये भी ..........भाग २

आज मौन को तोड़ती हूँ
और बताती हूँ तुम्हें
हम तो सिर्फ़ अहसास हैं
ख्यालों में आस पास हैं
रिश्ता नही कहूँगी इसे
वरना बंधन बन जाएगा
एक बेनामी सा अहसास है
तू कभी मेरा था ही नही
और न ही मैं कभी तेरी
फिर भी ख्यालों में अपने- अपने
हम दोनों पास-पास हैं
मैंने तो कोई वादा किया ही नही
कभी कोई कसम खायी ही नही
और तू जानता है ये
तुझे कभी चाहा भी नही
फिर भी एक अहसास है तू मेरा
जिसे खो भी नही सकती
और पा भी नही सकती
न तूने मुझे देखा
न मैंने तुझे देखा
ऐ मेरे बिन देखे अहसास
न भटक इस मृगतृष्णा में
तुझसे दूर होकर भी पास हूँ मैं
फिर भी न जाने क्यूँ
तुमने या कहो
तेरी चाहत ने खुदा बनाया मुझे
तेरे अनकहे जज़्बात
तेरी भटकती भावनाएं
तेरे खामोश अल्फाज़
तेरे दर्द की इम्तिहान कह जाते हैं
तेरी चाहत का इल्म करा जाते हैं
फिर क्यूँ तू उन्हें
शब्दों में ढालना चाहता है
शब्दों का जामा पहनाकर
इक नया रूप देना चाहता है
कुछ तार दिल से बंधे होते हैं
शब्द जहाँ गौन हो जाते हैं
बंधन दिल के होते हैं
शब्दों के नही
फिर क्यूँ तू मुझे अपनी
ख्याली चाहत में बांधना चाहता है
क्यूँ हर बात का इकरार चाहता है
कुछ बातें बिना किए भी होती हैं
कुछ चाहतें खामोश भी हुआ करती हैं
बिना किसी आडम्बर के
बिना किसी बंधन के
बिना किसी वादे के
और तुम हो कि
चाहत को बाँध रहे हो
शब्दों के तराजू में
तोल रहे हो
क्या हर बात का
इकरार जरूरी होता है
शब्दों में बांधने का
व्यापार जरूरी होता है
मेरे अनकहे जज्बातों को
तुझे समझना होगा
मुझे मुझसे छीनने का जूनून
तुझे छोड़ना होगा
अपने ख्यालों के बंधन में
न बांधना होगा
कुछ मेरे जज्बातों को भी
समझना होगा
चाहत के रंग को
बदलना होगा
मुझे खुदा बनाने वाले
अब तुझे ख़ुद बदलना होगा
क्या अपने खुदा की
एक बात नही मानोगे
सिर्फ़ अहसासों में
चाहत को समेटना होगा
दिल की बात को
जुबान पर न लाना होगा
खामोश रहकर चाहत को
निभाना होगा
तेरी चाहत न रुसवा कर दे मुझको
अब अपनी चाहत को
तुझे दफ़न करना होगा
अरमानों की कब्र सजानी होगी
क्या ये इम्तिहान दे पायेगा
इश्क के इम्तिहान दुनिया ने लिए
आज तेरा इम्तिहान है
तेरे इश्क का इम्तिहान है
जहाँ इश्क तुझसे
तेरी चाहत का
तेरे जूनून का
तेरे सब्र का
इम्तिहान लेगा
तेरी चाहत को
दोस्ती का कफ़न उढाकर
उसे एक नया रूप देगा
क्या इतना तू कर पायेगा
चाहत को दोस्ती में
बदल पायेगा
गर तू ऐसा कर पाया
तो तेरा नाम भी
इश्क की किताब में
अमर हो जाएगा

15 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

bahut bakhoobi se aapne ek chitra sa kheench diya..... dil ki kashmkash

ishq bhi na kambakht .....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वन्दना जी!
आपने बड़ी खूबी से मन के जज्बात को अपनी कविता में पिरोया है। इतनी विशद व्याख्या के साथ दूसरा भाग पूरा किया है कि पहला भाग बार-बार पढ़ने को मन करता है। गम्भीरता लिए हुए अच्छी गवेषणा है।
बधाई।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मन के ज़ज्बातों को इतनी खूबसूरती से उतारा है आपने की क्या कहूं..............शब्द मौन हो गए हैं...........रिश्तों को खामोशी से............मौन की भाषा में समझाया है ..........लाजवाब लिखा है

Preeti tailor ने कहा…

बहुत ही गहराईसे लिखी रचना है लेकिन एक आम इंसान के लिए समज पाना शायद मुश्किल हो !!! जिंदगी बहुत गहरी है और हम रिश्ते बनाते है तब हमारी क्या हमें चाहिए उसकी लिस्ट ज्यादा लम्बी होती है और देने की बहुत ही कम .......फिर भी एक बेहद गहरी रचना पढना अच्छा लगा ....

सुशील छौक्कर ने कहा…

नि:शब्द सा हो गया हूँ। फिर जरुर आऊँगा।

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

vandana ji , aap maun ko tod rahi hain aur aapki rachna padh kar meri vani maun ho gai hai.

samajh nahi aaraha kya kahun, itna hi bahut bahut samjhen.

शोभना चौरे ने कहा…

bhut ghri kvita hai.

satish kundan ने कहा…

इक दास्ताँ ये भी ....जब मैं पढ़ रहा था...जैसे अपने होशो-हवास में नहीं था...एकदम से डूब गया आपकी रचना में...मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है आपकी प्रशंसा के लिए...मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है...

satish kundan ने कहा…

इक दास्ताँ ये भी ....जब मैं पढ़ रहा था...जैसे अपने होशो-हवास में नहीं था...एकदम से डूब गया आपकी रचना में...मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है आपकी प्रशंसा के लिए...मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है...

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

chahat ko dosti me badlana boht mushkil hai.....jaise boht age ja ke wapis lotna ho..jisko bhi dena hoga boht bada imtiha dena hoga...kavita ki tareef ke liye shabad nahi hai...

admin ने कहा…

ख्यालों को आपने बखूबी बांधा है। प्रेम को बखूबी बयां करती है आपकी कविता।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

श्यामल सुमन ने कहा…

कुछ तार दिल से बँधे होते हैं
जहाँ शब्द मौन हो जाते हैं।

वाह वन्दना जी। गहरी संवेदनाओं से भरी आपकी यह लम्बी रचना अच्छी लगी। किसी शायर ने कहा है कि-

खुशबू तेरे बदन की मेरे साथ साथ है।
कह दो जरा हवा से तन्हा नहीं हूँ मैं।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

रिश्ता नहीं कहूंगी इसे वरना बंधन बन जायेगा...
यही पंक्ति ले लेता हूं क्यूंकि सबसे पहले दिल में यही बसी है...
फिर तो पता नहीं कहाँ ले गए आप अपने इन शब्दों के साथ .....
एक बात कहूं आपसे मैंने बहुतों को पढ़ा पर आपके शब्द मेरे दिल में उतर जाते हैं और हकीक़त बनकर मेरे साथ रहते हैं......

अक्षय-मन

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जबरदस्त रचना,एक-एक शब्द दिल को छूते हैं

प्रिया ने कहा…

bahut . bahut, bahut achcha...issey jyada kuch nahi kah sakti