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शुक्रवार, 15 मई 2009

जिस्म के रिश्ते

प्यार यहाँ होता है कहाँ
सिर्फ़ शरीरों का व्या
पार  होता है यहाँ
रोटी , कपड़ा और मकान के बदले
सिर्फ़ शरीरों के सौदे होते हैं यहाँ
सौदों का बाज़ार सजा है
जिस्म जहाँ व्यापार बना है
जरूरत के बाज़ार में सिर्फ़
जरूरतों के सौदे होते हैं
कीमत चुकाकर शरीरों की
आत्मा को बेचा जाता है
प्यार की कीमत न जाने कोई
शरीरों को जाना जाता है
जिस्म की भूख से पीड़ित जो
वो रूह की भूख को क्या जाने
ये शरीर के भूखे भेडिये
दिलों की आवाज़ कब सुन पाते हैं
शरीरों को चाहने वाले कब
प्यार को पहचान पाते हैं
जिस्मों के बाज़ार में
प्यार का कोई मोल नही
ख़ुद को मिटा देती है जो
उसके अरमानों का कोई मोल नही
जिस्म खुदा बन जाए जहाँ
वहां जज्बातों का मोल कहाँ
ये जिस्मों से बंधे जिस्मों के रिश्ते
जिस्मों के बाज़ार में ख़रीदे बेचे जाते हैं
जिस्मफरोशी की रूह भी काँपे जहाँ
ये इतनी क़यामत ढाते हैं
ये जिस्मों के रिश्ते
जिस्मों पर ही सिमट जाते हैं 

आत्मा को ना छू पाते हैं 

21 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

कैसी है वन्दना जी आप? कविता की तारीफ़ के लिए शब्द नहीं मिल रहे

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

anupam.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वन्दना जी!
आपने सत्य को उजागर करती पोस्ट लगाई हैं।
इस रचना में तो
आपने दर्पण को ही दर्पण दिखा दिया है।
बधाई।

आज समय का कुटिल,
चक्र चल निकला है,
संस्कार का दुनिया भर में,
दर्जा सबसे निचला है।
नैतिकता के स्वर की लहरी मंद हो गयी।
इसीलिए नूतन पीढ़ी, स्वच्छन्द हो गयी।।

राकेश जैन ने कहा…

BAHUT VIDROH HAI APKE MAN ME....CHITRANKAN KAHTA HAI!

राकेश जैन ने कहा…

KAFI AKROSH HAI KAVITA MAIN. TEEKHA CHIRANKAN. BADHAI!

निर्मला कपिला ने कहा…

ितनि तीखि अभिव्यक्ति आज के सच की

AMBRISH MISRA ( अम्बरीष मिश्रा ) ने कहा…

केवल दो ब्लॉग
जिन्दगी और जखम
जिन्दगी में जिस्म और उसी में जखम
अच्छा है
यूँ प्यार सभी को नही मिलता
पर एक सवाल प्यार से क्या मिलता है ?
आज के बाजार में ..........
प्यार सच्चा हुआ तो धोखा
प्यार झोठा तो पैसा ......

सब की कहानी एक है
बस शब्द अलग अलग ,.......

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दुखी और विद्रोही मन से लिखी रचना है वन्दना जी ......यथार्थ और आज का सत्य लिखा है.............पर धीरे धीरे समय जरूर बदलेगा............मेरी ऐसी आशा है

Udan Tashtari ने कहा…

क्या कहें-अतिश्योक्ति कहना भी इस वक्त उचित न होगा!!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह...बहुत खूब...मगर आपने तो प्यार को एकदम नकार दिया है!प्यार का वजूद भी होता है ये भी सच है,ये अलग बात है कि आप की बात सही है कि अब प्यार सिर्फ़ जिस्म की जरूरत सा दिखता है.....

Asha Joglekar ने कहा…

बहुत सही कहा । आजकल झी ून पर एकसीरीयल आरहा है " अबकी जनम मोहे बिटिया ही कीजो लगता है उसीको कविता रूप दे दिया है आपने या वह आपकी कविता का दर्शन है । काफी तीखापन लिये आक्रोश भरी कविता । पर हौसला रखिये उम्मीद की किरणें फूट रही हैं ।

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

"ये जिस्मों के रिश्ते जिस्मों पर ही सिमट जाते हैं ," रिश्ते तो सारे मन से ही होते हैं वंदना जी बाकी तो सब व्यापर ही है ! अच्छा
परिभाषित किया है आपने इसे ! लेखन में निरंतरता बनाये रखियेगा !

Prem Farukhabadi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कडुवासच ने कहा…

... बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति, ... प्यार, जज्बात, भावनाएँ ये सभी-भी जिस्म की देन हैं अन्दरुनी हैं, ... शायद अब लोग जिस्म के माध्यम से ही ये सभी पा लेना चाहते हैं और भूल जाते हैं कि जिस्मानी सुख क्षणिक होता है!!!

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

आज रिश्ते ,प्यार,वफ़ा..आदि..चीज़ें रही ही कहाँ है?हाँ हम जैसे कुछ लोग इनकी अपेक्षा जरूर करते है पर..अब सब रिश्ते जिस्म बन गए है...,व्यापार हो गए है...

Preeti tailor ने कहा…

kuchh nasur bankar aate hai pal aise ,
to taklif behad hoti hai ,
na vasna kabhi rahti hai kayam ,
kuchh nayab palonme sachchi mohbbat bhi hoti hai ...

Prem Farukhabadi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अनुपम अग्रवाल ने कहा…

ज़िन्दगी की एक व्यथा को शब्दों में अर्थ देती रचना

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

वंदना जी ! आपकी रचना पर मैंने १६ मई को ही टिप्पणी कर दी थी ,शायद आप देख नहीं पायीं ! आपकी एक एक पंक्ति सत्यता का बयान है " ज़रुरत के बाज़ार में सिर्फ ज़रूरतों के सौदे होते हैं "........."...... वो रूह कि भूख को क्या जाने "..............
मेरी रचनाओं पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद ( कभी फुर्सत हो तो पुरानी पोस्ट भी पढें )

vijay kumar sappatti ने कहा…

vandan , i am just speechless about this poem . this is an amazing work of words..

aapne jeevan ki bahut gahrai me utar kar apne shabdo se is kavita ki maal apiroyi hai ...

mere paas is sacchai ki tareef ke liye shbad nahi hai

bus yahi kahunga ki anupam kriti hai ye aapki ...

meri dil se badhai sweekar kariyenga

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

सुशील छौक्कर ने कहा…

वंदना जी, आज के एक सच को सही शब्दों से कह दिया। बहुत ही बेहतरीन। देरी के लिए माफी।