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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

समय तुम अपंग हो गए हो

आज हैवानियत के अट्टहास पर 
इंसानियत किसी बेवा के सफ़ेद लिबास सी 
नज़रबंद हो गयी है 
ये तुम्हारे वक्त की सबसे बड़ी तौहीन है 
कि तुम नंगे हाथों अपनों की कब्र खोद रहे हो 
और तुम  मजबूर हो  ऐसा  तुम सोचते हो 
मगर क्या ये वाकई एक सच है ?
क्या वाकई तुम मजबूर हो  ?
या मजबूर होने की दुहाई की आड़ में 
मुंह छुपा रहे हो 
गंदले चेहरों के नकाब हटाने की हिम्मत नहीं 
या सूरत जो सामने आएगी 
उससे मुंह चुराने का माद्दा नहीं 

न न वक्त रहम नहीं किया करता कभी खुद पर भी 
तो तुम क्यों उम्मीद के धागे के सहारे उड़ा रहे हो पतंग 

सुनो 
अब अपील दलील का समय निकल चुका है 
बस फैसले की घडी है 
तो क्या है तुममे इतना साहस 
जो दिखा सको सूरज को कंदील 
हाँ हाँ .........आज हैवानियत के सूरज से ग्रस्त है मनुष्यता 
और तुम्हारी कंदील ही काफी है 
इस भयावह समय में रौशनी की किरण बनकर 
मगर जरूरत है तो सिर्फ 
तुम्हारे साहस से परचम लहराने की 
और पहला कदम उठाने की 
क्या तैयार हो तुम ...............?

या फिर एक बार 
अपनी विवशताओं की दुहाई देना भर है 
तुम्हारे पलायन का सुगम साधन ?

निर्णय करो 
वर्ना इस अपंग समय के जिम्मेदार कहलाओगे 
तुम्हारी बुजदिली कायरता को ढांपने को 
नहीं बचा है किसी भी माँ का आँचल 
छातियों में सूखे दूध की कसम है तुम्हें 
या तो करो क्रान्ति 
नहीं तो स्वीकार लो 
एक अपंग समय के साझीदार हो तुम 

जो इतना नहीं कर सकते 
तो फिर मत कहना 
समय तुम अपंग हो गए हो 



9 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना शनिवार 20 दिसंबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

कविता रावत ने कहा…

या तो करो क्रान्ति
नहीं तो स्वीकार लो
एक अपंग समय के साझीदार हो तुम
..समय की मांग यही है ....चुप बैठने से कुछ हासिल नहीं होने वाला ....नापाक हौसलों को जितनी जल्दी कुचला जाय उतना अच्छा है मनुष्य जाति के लिए ..
सटीक सामयिक प्रस्तुति

कविता रावत ने कहा…

या तो करो क्रान्ति
नहीं तो स्वीकार लो
एक अपंग समय के साझीदार हो तुम
..समय की मांग यही है ....चुप बैठने से कुछ हासिल नहीं होने वाला ....नापाक हौसलों को जितनी जल्दी कुचला जाय उतना अच्छा है मनुष्य जाति के लिए ..
सटीक सामयिक प्रस्तुति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-12-2014) को "नये साल में मौसम सूफ़ी गाएगा" (चर्चा-1833)) पर भी होगी।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Asha Joglekar ने कहा…

समय नही हम हुए हैं अपंग।

Onkar ने कहा…

सटीक व सार्थक प्रस्तुति

मन के - मनके ने कहा…


आज की आवाज यही है.
देखना है—कानों में उंगली दिये क्या उंगलियां
हटाएंगे?

रश्मि शर्मा ने कहा…

समय तुम अपंग हो गए हो....बहुत ही बढ़ि‍या लि‍खा है आपने। बधाई

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

आपके लेखन कि शुरू से कायल हूँ दी | सच कह रहे आप समय सच में अपंग हो गया है |