आज हैवानियत के अट्टहास पर
इंसानियत किसी बेवा के सफ़ेद लिबास सी
नज़रबंद हो गयी है
ये तुम्हारे वक्त की सबसे बड़ी तौहीन है
कि तुम नंगे हाथों अपनों की कब्र खोद रहे हो
और तुम मजबूर हो ऐसा तुम सोचते हो
मगर क्या ये वाकई एक सच है ?
क्या वाकई तुम मजबूर हो ?
या मजबूर होने की दुहाई की आड़ में
मुंह छुपा रहे हो
गंदले चेहरों के नकाब हटाने की हिम्मत नहीं
या सूरत जो सामने आएगी
उससे मुंह चुराने का माद्दा नहीं
न न वक्त रहम नहीं किया करता कभी खुद पर भी
तो तुम क्यों उम्मीद के धागे के सहारे उड़ा रहे हो पतंग
सुनो
अब अपील दलील का समय निकल चुका है
बस फैसले की घडी है
तो क्या है तुममे इतना साहस
जो दिखा सको सूरज को कंदील
हाँ हाँ .........आज हैवानियत के सूरज से ग्रस्त है मनुष्यता
और तुम्हारी कंदील ही काफी है
इस भयावह समय में रौशनी की किरण बनकर
मगर जरूरत है तो सिर्फ
तुम्हारे साहस से परचम लहराने की
और पहला कदम उठाने की
क्या तैयार हो तुम ...............?
या फिर एक बार
अपनी विवशताओं की दुहाई देना भर है
तुम्हारे पलायन का सुगम साधन ?
निर्णय करो
वर्ना इस अपंग समय के जिम्मेदार कहलाओगे
तुम्हारी बुजदिली कायरता को ढांपने को
नहीं बचा है किसी भी माँ का आँचल
छातियों में सूखे दूध की कसम है तुम्हें
या तो करो क्रान्ति
नहीं तो स्वीकार लो
एक अपंग समय के साझीदार हो तुम
जो इतना नहीं कर सकते
तो फिर मत कहना
समय तुम अपंग हो गए हो
9 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना शनिवार 20 दिसंबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
या तो करो क्रान्ति
नहीं तो स्वीकार लो
एक अपंग समय के साझीदार हो तुम
..समय की मांग यही है ....चुप बैठने से कुछ हासिल नहीं होने वाला ....नापाक हौसलों को जितनी जल्दी कुचला जाय उतना अच्छा है मनुष्य जाति के लिए ..
सटीक सामयिक प्रस्तुति
या तो करो क्रान्ति
नहीं तो स्वीकार लो
एक अपंग समय के साझीदार हो तुम
..समय की मांग यही है ....चुप बैठने से कुछ हासिल नहीं होने वाला ....नापाक हौसलों को जितनी जल्दी कुचला जाय उतना अच्छा है मनुष्य जाति के लिए ..
सटीक सामयिक प्रस्तुति
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-12-2014) को "नये साल में मौसम सूफ़ी गाएगा" (चर्चा-1833)) पर भी होगी।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
समय नही हम हुए हैं अपंग।
सटीक व सार्थक प्रस्तुति
आज की आवाज यही है.
देखना है—कानों में उंगली दिये क्या उंगलियां
हटाएंगे?
समय तुम अपंग हो गए हो....बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने। बधाई
आपके लेखन कि शुरू से कायल हूँ दी | सच कह रहे आप समय सच में अपंग हो गया है |
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