आह! आज ना जाने क्या हुआ
धडकनों ने आज इक राग गाया है
बस इश्क इश्क इश्क ही फ़रमाया है
जो जुनून बन मेरे दिलो दिमाग पर छाया है
ये कोई असबाब या साया नहीं
बस इश्क का खुमार चढ आया है
इश्क को ही मैने अपना
मज़हब चुना है
तभी तो देखो
बंजारन बन कैसे अलख जगाती हूँ
और इश्क इश्क इश्क ही चिल्लाती हूँ
इश्क अन्दर जब उतरता है
सीसे सा पिघलता है
ना दर्द होता है
ना कोई अहसास होता है
बस मीठा मीठा सा सुरूर होता है
जिसमें तू और मैं हों जरूरी नहीं
क्योंकि
आज इश्क को खुदा बना लिया मैने
देख खुद को सूली पर चढा लिया मैने
जो दर्द उठा हुस्न के सीने में
अश्क इश्क की आँख से बह गये
मुकम्मल मोहब्बत में सराबोर
दो जिस्म इक जान हो गये………
अब बता और क्या तज़वीज़ करूँ
इश्क की और कौन सी माला जपूँ
जहाँ कुछ बचा ही नहीं
सिर्फ़ इश्क ने इश्क को आवाज़ दी
इश्क ही इश्क की दुल्हन बना
इश्क ने ही इश्क का घूँघट पल्टा
और इश्क ही इश्क में डूब गया
अब कौन कहाँ बचा
जिसका कोई सज़दा करे
ओ यारा मेरे……तभी तो
इश्क ही मेरी दीद बना
इश्क ही मेरी प्रीत बना
इश्क का ही मैने घूँट भरा
इश्क ही मेरा खुदा बना
अब और कौन सा नया मज़हब ढूँढूं
जब इश्क ही मेरा मज़हब बना
जब इश्क ही मेरा मज़हब बना ………
धडकनों ने आज इक राग गाया है
बस इश्क इश्क इश्क ही फ़रमाया है
जो जुनून बन मेरे दिलो दिमाग पर छाया है
ये कोई असबाब या साया नहीं
बस इश्क का खुमार चढ आया है
इश्क को ही मैने अपना
मज़हब चुना है
तभी तो देखो
बंजारन बन कैसे अलख जगाती हूँ
और इश्क इश्क इश्क ही चिल्लाती हूँ
इश्क अन्दर जब उतरता है
सीसे सा पिघलता है
ना दर्द होता है
ना कोई अहसास होता है
बस मीठा मीठा सा सुरूर होता है
जिसमें तू और मैं हों जरूरी नहीं
क्योंकि
आज इश्क को खुदा बना लिया मैने
देख खुद को सूली पर चढा लिया मैने
जो दर्द उठा हुस्न के सीने में
अश्क इश्क की आँख से बह गये
मुकम्मल मोहब्बत में सराबोर
दो जिस्म इक जान हो गये………
अब बता और क्या तज़वीज़ करूँ
इश्क की और कौन सी माला जपूँ
जहाँ कुछ बचा ही नहीं
सिर्फ़ इश्क ने इश्क को आवाज़ दी
इश्क ही इश्क की दुल्हन बना
इश्क ने ही इश्क का घूँघट पल्टा
और इश्क ही इश्क में डूब गया
अब कौन कहाँ बचा
जिसका कोई सज़दा करे
ओ यारा मेरे……तभी तो
इश्क ही मेरी दीद बना
इश्क ही मेरी प्रीत बना
इश्क का ही मैने घूँट भरा
इश्क ही मेरा खुदा बना
अब और कौन सा नया मज़हब ढूँढूं
जब इश्क ही मेरा मज़हब बना
जब इश्क ही मेरा मज़हब बना ………
20 टिप्पणियां:
वाह ... बहुत खूब
इश्क़ से बड़ा कोई मज़हब नहीं .... पर लोग मज़हब के नाम पर इश्क़ कुर्बान करते हैं ...गहन प्रस्तुति
उत्कृष्ट लेखन
waah..great creation...
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ उम्दा भाव सुन्दर प्रस्तुति
अरुन शर्मा
RECENT POST शीत डाले ठंडी बोरियाँ
गहराई में डूबे हुए शब्द, अद्भुत, लाजवाब....
बेहतर लेखन !!!
:)
उत्कृष्ट लेख,सीसे सा पिघलता है मेरा मज़हब ****^^^^^***** धडकनों ने आज इक राग गाया है
बस इश्क इश्क इश्क ही फ़रमाया है
जो जुनून बन मेरे दिलो दिमाग पर छाया है
ये कोई असबाब या साया नहीं
बस इश्क का खुमार चढ आया है
इश्क को ही मैने अपना
मज़हब चुना है
प्यार से बढ़कर कुछ भी तो नहीं।
खुबसूरत अभिवयक्ति....
मानना पड़ेगा आपके लेखन को प्रणाम
काश प्यार ही सबका धर्म होता. ना ये नफरत की दीवारें होती और ना ही क़त्ल-ओ-खून का ये आलम. ना ही ये आलाम रह रह के मकतल बनता.सुंदर भाव.
बहुत सुन्दर......
एक और बेहतरीन अभिव्यक्ति...
सस्नेह
अनु
सुन्दर अभिव्यक्ति 1
बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
प्रेम के अलावा जीवन को चाहिए भी क्या
प्रेम के अलावा जीवन और है ही क्या!!
इश्क मजहब हो जाए तो जीवन जोगन हो जाता है ... अलख जग जाती है ... सुन्दर भाव ..
वाह ... बहुत खूब
उत्कृष्ट रचना !!
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