आज क्यूँ है खड़ी, ये उदासी बड़ी
सुलगे क्यूँ हैंअरमान, बेबसी है कड़ी
ज़िन्दगी दुल्हन बनी, बेजारी की घडी
राख क्यूँ है पड़ी, मासूमियत है झड़ी
रूह क्यूँ है मरी, बेसाख्ताअट्टहास करी
लाश पे लाश पे लाश, आखिर क्यूँ है गिरी
कब्र में क्यूँ है दबी, वो खामोश सिसकी
अनारकली जब भी चिनी, क्यूँ है जिंदा चिनी
रात क्यूँ है खड़ी, इंतज़ार में हर पल मरी
सुबह आएगी बड़ी, क्यूँ ऐतबार में पड़ी
बेटी क्यूँ है जनी, सुन सुन माँ रो ही पड़ी
बलात्कार की शिकार, चक्रव्यूह में क्यूँ है फँसी
रात क्यूँ है आधी रही, रवायत जारी रही
बात आधी रही, राजनीति की मारी रही
शिकन क्यूँ है तारी रही, किस बात की खुमारी रही
बेहयाई के दौर की, कैसी ये गैंगवारी रही
उड़ा क्यूँ है दुपट्टा मलमल का,आँखों में यही सुर्ख लाली रही
सोच में सारी खुद्दारी रही , घोड़े पे क्यूँ न लगाम लगाई गयी
©वन्दना गुप्ता
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-04-2017) को "बातों में है बात" (चर्चा अंक-2947) (चर्चा अंक-2941) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 15 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
भूल सुधार.. "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
very nicely written .Excellent
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