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शनिवार, 5 अगस्त 2017

ये बेहया बेशर्म औरतों का ज़माना है

कल तक बात की जाती थी फलानी को पुरस्कार मिला तो वो पुरस्कार देने वाले के साथ सोयी होगी .....आज जब किसी फलाने को मिला तो कहा जा रहा है उसे तब मिला जब वो देने वाली के साथ सोया होगा ........ये किस तरफ धकेला जा रहा है साहित्य को ? क्या एक स्त्री को कभी सेक्स से अलग कर देखा ही नहीं जा सकता? क्या स्त्री सिवाय सेक्स मटेरियल के और कुछ नहीं ? और तब कहते हैं खुद को साहित्य के खैर ख्वाह......अरे बात करनी थी किसी को भी तो सिर्फ कविता पर करते लेकिन स्त्री को निशाना बनाकर अपनी कुत्सित मानसिकता के कौन से झंडे गाड़ रहे हैं ये लोग?

छि: , धिक्कार है ऐसी जड़ सोच के पुरोधाओं पर ......जाने अपने घर की औरतों को किस दृष्टि से देखते होंगे और उनके साथ क्या व्यवहार करते होंगा......स्त्री सिर्फ जंघा के बीच आने वाला सामान नहीं ......किसी को भी किसी भी स्त्री का अपमान करने का अधिकार नहीं मिलता.......जब भी बात करिए उसके लेखन की करिए , उसके निर्णय की करिए न कि उस पर आक्षेप लगाइए ......वर्ना एक दिन यही स्त्रियाँ एकत्र हो कर देंगी तुम्हें साहित्य से निष्कासित .....फिर कोई कितना भी बड़ा साहित्य का दरोगा ही क्यों न हो .......अब समय आ गया है सबको एकत्र हो इसी तरह हर कुंठित मानसिकता को जवाब देने का ....

साहेब
ये बेहया बेशर्म औरतों का ज़माना है
जो नहीं आतीं जंघा के नीचे
फिसल जाती हैं मछली सी
तुम्हारी सोच के दायरे से

बेशक नवाज़ दो तुम उन्हें
अपनी कुंठित सोच के तमगों से
उनकी बुलंद सोच
बुलंद आवाज़
कर ही देगी खारिज तुम्हें
न केवल साहित्य से
बल्कि तुम्हें तुम्हारी नज़र से भी

ये आज की स्त्रियाँ हैं
जो नहीं करवातीं अब चीरहरण शब्दों से भी
और तुम तुले हो
एक बार फिर द्रौपदी बनाने पर
संभल कर रहना
निकल पड़ी है
बेहयाओं की फ़ौज लेकर झंडा
अपनी खुदमुख्तारी का

सुनो
बेहया शब्द तुम्हारी सोच का पर्याय है
स्त्री की नहीं
वो कल भी हयादार थी , आज भी है और कल भी रहेगी
बस तुम सोचो
कैसे खुद को बचा सकोगे कुंठा के कुएं में डूबने से
कि फिर अपना चेहरा ही न पहचान सको

सुनो
मर्यादा का घूँघट इस बार डाल कर ही रहेंगी ये स्त्रियाँ ...तुम्हारी जुबान पर
 
डिसक्लेमर :
ये पोस्ट पूर्णतया कॉपीराइट प्रोटेक्टेड है, ये किसी भी अन्य लेख या बौद्धिक संम्पति की नकल नहीं है।
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta  
 

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-08-2017) को "जीवन में है मित्रता, पावन और पवित्र" (चर्चा अंक 2688 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

बहुत सही कहा आपने

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

अच्छी कविता . तमाचा मारती हुई